Sunday, June 23, 2024

साक्षात्कार  

 पढाई पूरी हुई तो सोचा ,कुछ काम किया जाए। पी एच डी के बाद कुछ खास नहीं बचता ,अगर विषय हिंदी है तो जरुरी नहीं कि अंग्रेजी भी अच्छी हो। लेकिन समझ में सब आता था ,बोलना भी आता था। कभी लगता बाबा ने अंग्रेजी ही क्यों नहीं पढ़ाई ? आज -कल तो यही विषय जरुरी है। उन्होंने कभी सोचा नहीं होगा कि बेटी ससुराल जाकर पढ़ लेगी और जॉब करना चाहेगी। हजारों बार रोहित ने कहा भी ,मैडम कुछ इंग्लिश में हाथ साफ़ करलो लेकिन ध्यान ही नहीं दिया ,आती तो है। 

एक बार रोहित के सामने ही कुछ गलत पढ़ दिया ,फिर जो डांट लगी तो ,सीधे डायरी निकल आई और अंग्रजी के टेंस याद होने लगे। उसका असर ये हुआ कि बच्चों को पढाने लगी ,क्योकि मातृ भाषा हिंदी है और सोचने की भाषा भी हिंदी है ,पढाई भी हिंदी में हुई है तो ,सोचना इंग्लिश में नहीं हो पा ता। ऐसा मुझे लगता था। कुछ दिन बाद एक साक्षात्कार के लिए मेल आया ,एक इंटर स्कूल के लिए हिंदी  पढ़ाना था। रोहित के साथ गई ,बहुत लड़कियां और  थीं। 

जब मुझे बुलाया गया ,भीतर कम उम्र का एक लड़का बैठा था ,मुझे नहीं लगता वो संस्कृत या हिंदी अच्छी जानता होगा ,दो चार सवाल इधर -उधर के  किये और सभी को लिखित परीक्षा के लिए क्लास रूम में भेज दिया गया। एक प्रश्न पत्र था जिसमें कुछ सामान्य ज्ञान के सवाल ,कुछ मैथ्स के और अंग्रेजी में दो पेज किसी टॉपिक पर लिखने थे। पहले सोचा इस लिखित परीक्षा में एक भी प्रश्न पढ़ाई से सम्बंधित नहीं है। तभी लगा ,किसी को रख लिया होगा ,हम लोगों को पागल बनाया जा रहा है। 

एक दिन पता चला विश्व विद्द्यालय में जगह निकली है ,तैयारी की गई। जब ,एग्जाम होना था ,वहां साक्षात्कार भी हुआ फिर क्लास रूम में एम् ए की कक्षा को पढ़ाया भी लेकिन वही ढाक के तीन पात। सामने बोर्ड पर हमारा नाम था कि सिलेक्ट हुए हैं लेकिन कोई पत्र नहीं आया। ज्ञात हुआ किसी और का हुआ है। हमारी शिक्षा व्यवस्था कैसे ठीक होगी जब ,सभी जगह व्यवस्था खराब है। 

रेनू शर्मा 































 

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