उहापोह
जाने कैसे ,अटपटे उहापोह में
फंसी हूँ ,शब्द कांटे से ,
कंठ में अटकते हैं।
अर्थ ,आत्मा को घायल करता है ,
लहूलुहान सी रूह
छटपटाती है, भावार्थ
प्राण खींचते से हैं ,
फिर भी ,जड़ हूँ।
जाने कैसे ?भंवर में अटकी हूँ।
रेनू शर्मा
फंसी हूँ ,शब्द कांटे से ,
कंठ में अटकते हैं।
अर्थ ,आत्मा को घायल करता है ,
लहूलुहान सी रूह
छटपटाती है, भावार्थ
प्राण खींचते से हैं ,
फिर भी ,जड़ हूँ।
जाने कैसे ?भंवर में अटकी हूँ।
रेनू शर्मा
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