माँ का जल दाह
महुआ बदहवाश सी भटक रही है ,भाई किसी गली में सब्जी बेचने निकल गया है ,माँ बीमार है ,सरकार का भोंपू बता रहा है कि गांव खली करदो किसी भी समय नदी का पानी भर जायेगा। माँ ने कहा था माही को बुला ,तुम दौनों शहर निकल जाना। कितना चढ़ेगा पानी ,चल महुआ ऊपर आटा ,लकड़ी ,तेल ,कपडे सब रख दे ,मैं यही रहूंगी। माँ ! क्या गढ़ा है यहाँ ,मुझे बताओ खोद लेते हैं। माँ की आँखें अलग सी चमक रहीं थीं मानो पक्का इरादा कर लिया अब ,जाना नहीं है।
क्या बताऊँ ? जब चौदह बरस की थी तब ,तेरे बापू ब्याह कर लाये थे। हर दिन घर लीप -पोतकर रखती ,जबसे मैं ,आई बापू का धंधा बढ़ने लगा ,पड़ोसिन तारीफ करती थीं। कच्चे घर से एक कमरा पक्का कर लिया ,अभी आगे काम लगता तभी तेरे बापू को खांसी ने घेर लिया ,खूब इलाज करा लिया पर ठीक नहीं हुए ,एक दिन चले गए। सास ठेला लगाने लगी ,धीरे से काम चल निकला ,जब दादी बीमार हुई तब ,माही को सब्जी बेचनी पड़ी ,पढाई छोड़ दी।
सब ओर से चीख -पुकार मची है ,कोई किसी की बात नहीं सुन पा रहा ,माँ का सीना धौकनी सा हो रहा है ,बुखार चढ़ रहा है ,तभी माही का दोस्त उसे बुलाने चला गया। दरवाजे तक पानी आ गया है ,माँ ! हम कहीं नहीं जा रहे हैं ,साथ रहेंगे। छत पर त्रिपाल डाल दिया है ,बारिश भी लगातार हो रही है ,माही सब्जी बेच चुका था ,ठेला बाहर बांध दिया। रातभर पानी बरसता रहा ,किसी को नींद नहीं आई। सुबह आँख खुली तो आधा घर पानी से भरा था।
सामने गली में किसी के चीखने की आवाज आई ,माँ बताया -बेटा मौलवी के घर से है ,माँ !तैरना पड़ेगा ,अरे !जवान होकर कैसी बात करता है ,जा देख। माही पानी में कूद गया ,आधा घंटे के बाद मौलवी और उनकी बेगम को छत पर ले आया। मोती रोटी बनाई ,अचार से सभी ने खाना खाया। सलमा बी माँ के पैर दवा रहीं थीं ,आप ठीक हो जाओ। हमें तो सब छोड़ गए आज माही न होता तो ,क्या होता ?तभी दीवार गिरने की आवाज आई। ठेला और कच्चा घर पानी में बाह गया। माही ने जाना चाहा तो माँ ने रोक लिया जाने दे बेटा !! अब ,मत जाना।
दो दिन तक कोई किसी की खबर लेने नहीं आया ,जोर से आवाज लगाकर आस -पास वालों की खैरियत पता कर लेते थे। पानी ख़तम हो गया ,माँ की दवा ख़तम थी ,माही का दोस्त भी हमारी छत पर आ गया ,उसका घर भी गिर गया। मौलवी की छत पर आटा रखा था ,माही और सोनू लेकर आये। महुआ बता रही थी माँ ! छत पर सांप का जोड़ा चिपका हुआ है ,बेटा छेड़ना मत। माँ को अदरक वाली चाय पिलाई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। तीन दिन से माँ ने कुछ खाया। सलमा बी माँ की सेवा कर रहीं हैं।
सभी लोग नाव के आने का इन्तजार कर रहे हैं ,एक ही चारपाई पर तीन लोग पड़े हैं ,मौलवी सलमा बी और सोनू नीचे दरी पर लेटे हैं। बेबस नींद ने सभी को अपने आगोश में घेर लिया है लेकिन काल की देवी आई और गौना को अपने साथ ले गई ,जब कोई हल चल नहीं हुई तब पता चला माँ ,चली गई। माही चीख पड़ा -कोसी मैया मेरी माँ को छीन लिया। पडोसी तैर कर माही की छत पर आ गए। सलमा बी बच्चों को सीने से लगाए थीं।
तभी एक नाव दिखाई दी ,एक औरत मर गई है ,हाँ आते हैं और नाव चली गई। माही ने बांस को बाँधा और माँ को उस पर लिटा दिया ,धीरे से पानी में बहा कर कोसी की तरफ चल दिया। उसके दोस्त साथ थे ,माही आगे नहीं जाना लेकिन माही अंदर तक माँ को कोसी जल धारा में समर्पित करके आया। माँ को याद करते हुए दस दिन छत पर ही निकाल दिए तब नाव आ पाई और शहर पाए।
रेनू शर्मा
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