दोस्त बीतरागी सी नंदनी सोफे के कौने में बैठी बुदबुदाती जा रही है ,कितने सैलून बाद मिली है लेकिन बिलकुल नहीं बदली ,वही बिंदास अंदाज ,खुलकर हँसाना ,किसी की भी गलती उसी समय बता देना ,पर अभी जबसे आई है उदास है। जाने क्या बखेड़ा समेटे बैठी है ? क्यों नंदू !! क्या हुआ ?अब तो चाय भी पी ली ,बता न क्या हुआ ? क्या बताऊँ यार ! औरतें आज भी सदियों पहले की तरह आधी गुलाम ही हैं। कुछ भी नहीं बदला ,कहने को सब पढ़ -लिख गईं ,जॉब भी कर रहीं हैं ,घर -परिवार को सँभालते हुए भी मान -सम्मान नहीं मिलता। हाँ ,सही कहा लेकिन आप क्यों दुखी हैं ?मैं ,अपनी बात ही कर रही हूँ।
तुझे याद है जब ,बीके का फोटो माँ ने मुझे दिखाया था तब ,माँ तो धुप में रखा सामान उठाने में लगी थीं लेकिन मैं ,सोच रही थी ,ये बंदा मेरे नसीब में लिखा है क्या ?पल भर के लिए खुश हुई मानो इसे पहचाल गई लेकिन दूसरे ही पल हताश हो गई थी। झक्की ,जिद्दी सा लगता है। भीतर तक सिहर गई थी। तुमने उस समय पूछा भी था कि मैं ,खुश नहीं क्या ?मैं ,मुस्करा कर रह गई थी। रेखा !! आज सोचती हूँ पूर्वाभास ठीक ही हुआ था। जिन बातों से मुझे घृणा थी वही सब वो करता है। पंछी की तरह डाल -डाल उड़ना चाहता है।
तुम कुछ भी समझ नहीं रही हो ,कभी लगता है सब छोड़कर कहीं चली जाऊं ,लेकिन मैंने दो बच्चे पैदा किये हैं जिन्हें छोड़कर कहाँ जाऊं ?बच्चे ही मुझे भोगने के लिए बांधे हुए हैं। हाँ ,अब मैं ,समझ गई ,चल बाहर बैठकर चाय पिएंगे। रेखा तुम्हारी रसोई कितनी साफ़ -सुथरी है ,हाँ मेरी बेटी ध्यान रखती है। अगले साल उसका रिश्ता भी हो जायेगा ,यह तो है स्त्री के साथ होना ही है ,क्या नई बात है ?रेखा मैं ,सोचती थी कि बुढ़ापे में लोग हमारे नाम को याद किया करेंगे कि देखो नंदनी और बीके जैसा होना चाहिए। उसे तो अपने दोस्त ,पार्टी के अलावा कुछ नहीं याद रहता।
नंदू ! तूने बताया कि मेरे पास आ रही है ,नहीं। तुम बहन ! किताबें पढ़ो ,लिखो ,गाने गाओ ,मस्त रहा करो क्यों अपना दिमाग खराब रखती है ?नदी की तरह बहा कर ,रुक मत जाना वरना सड जाएगी। समझी कि नहीं। पति ही तो समझ पायेगा ,आज नहीं तो कल। मुझे देख जॉब करती हूँ ,घर संभालती हूँ फिर भी शक किया जाता है। क्या करूँ ? बाहर जाउंगी तो ,पुरुषों से भी बात तो होगी न ,दुनियां दुखों का खजाना है। खोजने पर ही सुख मिलता है। इसलिए नंदनी ! मस्त रहो। चाय के बर्तन उठाकर भीतर आ गई ,रेडियो पर गाना चल रहा था -लो आ गई उनकी याद वो नहीं आये ---तभी तो फुदक रही हो ,अभी तक।
नंदू !आज किसी पुराने दोस्त को डिनर पर बुलाया है ,तुम रुको अभी ,उनसे मिल लेना ,अच्छे इंसान हैं। क्या खाना बनाऊं ?दही आलू ,बैगन ,चटनी ,खीर बस हो गया. तूने अपनी पसंद का खाना बता दिया ,अच्छा नंदू ! जरा मिस्सा आता गूंथ दे ,ठीक है। मैं जरा कमरा ठीक कर दूँ ,मैं ,साक्षात् तेरे साथ हूँ और तू दोस्त के लिए तैयारी कर रही है ,चल मैं ,जाती हूँ ,अरे !! जल कुकड़ी ! मिल तो ले ,मेरे दोस्त से ,फिर चली जाना।
सखियों की मस्ती चल ही रही थी दरवाजे पर घंटी बज गई ,रेखा दौड़कर गई ,बीके को बाहर बिठाया और पानी दे आई ,नंदनी रसोई से निकली ,बाथरूम में चली गई। इस बीच रेखा ने दोस्त को हड़का लिया था ,यार तुम दौनों मुझे माफ़ करो। आगे कुछ नहीं होगा। तभी गुलाबी साडी में लिपटी नंदनी विंड सॉन्ग की खुशबु बिखेरती ड्राइंगरूम में आ गई। मध्यम लाइट में अखबार में मुंह छिपाये बैठे पति ने नंदू को बाँहों में भर लिया। अरे ! ये सब क्या है ?रेखा दूर खड़ी हंस रही थी। तुम यहाँ कैसे ? मेरी दोस्त के घर तुम कैसे ?सॉरी ,मुझे रेखा ने खाने पर बुलाया है। चलो नंदू !खाना लगा लें।
आंसू भरी आँखों से नंदनी रेखा से लिपट गई ,थेंक्स रेखा। ठीक है अब ,ऐसा ही खाना बनाया करो। अच्छा हुआ रेखा तुम्हारा फ़ोन आ गया ,नहीं तो माँ को फोन करने वाला था। दौनों थोड़ी देर बाद निकल गए ,रेखा बर्तन उठाकर सिंक में रख रही थी और खुश थी दोस्त को खुश देखकर।
रेनू शर्मा
No comments:
Post a Comment