Sunday, June 2, 2024

अंतिम विदाई   

 जीवन पर्यन्त घर -परिवार ,समाज से संघर्ष करने वाली सावित्री देवी आज पूज्या हैं। दूर -पास ,देश -विदेश सब रिश्तेदार आ गए हैं। ऐसा लगता है कि जीवन भर के गिले - शिकवे आंसुओं के साथ बह जायेंगे।पतली मखमली साडी में लिपटा उनका जिस्म एक तरफ फर्श पर रखा है। कोई हल चल नहीं ,सिर्फ ख़ामोशी व्याप्त है। तीखे नाक -नक्श ,गेहुंआ रंग ,इकहरा वदन ,छोटा कद जब घेरदार लहंगा चुन्नी में बलखाता आँगन से बरांडे तक दौड़ता होगा ,तब पूरा घर घुंघरुओं की ध्वनि से गुंजायमान हो जाता होगा। नैव दसक में भी उनकी कमर झुकी नहीं थी। कर्मठ ,स्नेही ,ममत्व बिखेरने वाली सावित्री जी अब शांत ,निष्पंद लेटीं हैं। प्रत्येक व्यक्ति उनसे अपनी बात कहना चाहता था लेकिन परम तत्व में विलीन उन परम श्रध्येय की अंतिम विदाई की तैयारियां चल रही हैं। 

कैसी बिडम्बना है कि मृत शरीर स्पर्श योग्य नहीं होता लेकिन कुछ समय पूर्व चिपके रहने वाले लोग अपने ,पराये सब दूर बैठे हैं। उनके पास बैठकर अब ,किसी बहु की चुगली नहीं की जा सकती। किसी समस्या का समाधान नहीं खोजा  जा सकता। भूली -बिसरि यादों को ताजा नहीं किया जा सकता। बे हिसाब चीख -पुकार का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा। आत्मा तो जा चुकी ,निश्चेतन शरीर अब मिटटी बन चुका है। 

बाहर पालकी सजाई जा रही है। विदाई को यादगार बनाने का प्रयास किया जा रहा है या कहें उनके प्रति अंतिम सम्मान का यही तरीका है। कोई पैर छूकर स्पर्श को संजोना चाहता है ,कोई आंसुओं के सैलाब को बड़ी सफाई से रोक लेना चाहता है। कोई विस्फारित होकर उनकी छबि को मन में बसा लेना चाहता है ,कोई उनके चरणों में मस्तक रखकर जाने -अनजाने अपराध के लिए क्षमा चाहता है। सभी अपने तरीके से उनसे एकाकार किये हैं। 

फूलों से सजी पालकी में उन्हें दुल्हन सा सजाकर लिटा दिया गया है ,पवित्र कलावे से उनका शरीर कस दिया गया है ,कहीं उनके अथाह स्नेह से भरे इस कुंड में उनका मन फिसल न जाय। बाहर जाते समय उन पर फूल बरसाए जा रहे हैं। उनकी यात्रा मंगल हो सभी यही सोचते होंगे। एक अजीब सी शक्ति के साथ सभी खिंच रहे हैं। मानवीय रिश्ते को टूटते या बिछड़ते हुए देखना कोई आसान बात नहीं ,पांच तत्व से बना शरीर वापस पांच तत्व में ही विलीन होने जा रहा है। नील -गगन में जाती आत्मा सबका प्यार ,मीठी यादें ,रिश्ते और बंधन सब लेकर जाती है। 

रिश्तों के कन्धों पर सवार होकर जाते अतीत को सभी अपलक देख रहे हैं। सब ओर बिखरे फूलों की महक ऐसे लगती है मानो माली ने खुद ही बगिया उजाड़ दी हो। इत्र -चन्दन की सुगंध वातावरण को महका रही है मानो उनका लाड -प्यार सब ओर बिखरा हो। कोई लुटा सा बैठा है ,कोई खम्बे के सहारे खड़ा अतीत में गोते लगा रहा है। 

कोई नहीं जानता कि वे आखिरी पलों में क्या सोच पा  रहीं थीं ,आगामी यात्रा का कौतुहल था या मोह -माया का बिछोह था। आत्मा और शरीर का ये रिश्ता बड़ा बेमानी सा लगा। पल भर में सब बिखर गया। नश्वर संसार में सब कुछ अनंत में विलीन होता जाता है। 

रेनू शर्मा 
















































 

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