आत्मीयता
पद्मा घर के भीतर कभी नहीं बैठ पाती थी ,जब देखो बाहर बरांडे में ,टेबल पर कागज बिखरे रहते थे। एक तरफ पेन खुला पड़ा है ,दूसरे कौन पर किताब के पैन फड़फड़ा रहे हैं। एक साथ कितने काम चाय पीना ,किताब पढ़ना ,कलम चलाना ,सामने पहाड़ी पर चरते गाय ,बकरी के झुण्ड को देखना ,दूर पगडण्डी पर डंडे का सहारा लेकर खड़े चरवाहे को देखकर उसकी थकान का अनुमान लगाना सब पदमा कर लेती थी। अगर बादल घिर आये तो तो बार -बार कहना बेचारे के पास छाता नहीं है। सुन दीपू !! अबकी बार वो दिखे तो ,उसे छाता दे देना।
पदमा हर दिन इसी तरह का बखेड़ा खड़ा कर देती थी। जबसे दीपू घर आया है उसका काम बंट गया है। कितने बरस बीत गए दिन में सोये हुए। विचार इतने सुलगते रहते हैं कि उन्हें ठंडा करने कागज पर उकेरना पड़ता है। बिखरा पड़ा बरंडा उसका अध्ययन कक्ष है। पदमा जब लिखती है तो ,सबको सुनती भी है ,कभी किसी ने तारीफ करदी तो ,बस क्या कहने ,उसका सीना चौड़ा हो जाता है। दूसरे दिन अधिक लिखने का प्रयास करती है। कभी मनु को कोचिंग छोड़ना है ,कभी दौनों को स्वीमिंगपूल ले जाना है ,हर समय मशीन सी नाचती रहती है। इस पर भी जब ,शाम को जुबिन कह दे कि क्या करती रहती हो दिन भर तो ,उसे खुंदक छूटती है। अच्छा एक दिन घर में रुको ,तब पता चलेगा। क्या काम होता है ,क्या नहीं। चाय तक तो बनाना आता नहीं है ,बात करते हैं।
आज पदमा बाहर नहीं जाना चाहती लेकिन मनु पढ़ने गया है तो उसे लाना है। झट से तैयार होकर निकल पड़ती है। हरी भरी वादियों को निहारती तालाब के किनारे चली जा रही थी तभी किसी गाड़ी ने पीछे से हॉर्न बजा दिया ,पदमा लड़खड़ा गई और सड़क किनारे घिसटती हुई मील के पत्थर के पास रुक गई। वहां कोई नहीं था लेकिन गिरते ही कई लोग उठाने आ गए। किसी तरह उठकर चश्मा ठीक किया ,आँख के पास खून निकल रहा था। किसी तरह घर तक आ गई। बेहद पीड़ा और दर्द की पोटली लिए पदमा सोफे में धंस गई। दीपू दरवाजे पर खड़ी माँ का इन्तजार कर रही थी ,अरे ! क्या हुआ माँ ! आपको खून निकला है ? माँ लो ठंडा पानी पी लो ,ये लो बर्फ लगा दूँ ,खून रुक जायेगा। बेटा !! पापा को फ़ोन कर दो ,पदमा कष्ट के साथ ही आत्मीयता का भोग भी कर रही थी। घर आते ही लगा ,मानो सुरक्षित हाथों में आ गई हो। नन्हे हाथ उसका उपचार कर रहे थे। आँखें डबडबा रहीं थीं। दीपू का सहारा उसे ऊर्जा भी दे रहा था।
जुबिन डॉक्टर को लेकर आये थे। पहले सफाई की फिर दवा लगाईं। दवा खाकर पदमा सो गई। जुबिन बच्चों के खाने की व्यवस्था कर उन्हें सुलाने की कोशिश कर रहे थे। बरांडे में उड़ते कागजों को एक तह लगाते जुबिन सोच रहे थे कि कहानी ,कविताओं का जाल बनाने वाली आज प्रकृति का शिकार हो गई। पदमा के सिर पर हाथ घूमाते हुए पदमा की अंगुली पर लगी स्याही को देखकर जुबिन कहने लगा ,अब ,ठीक हो जाओ और पहाड़ी तुम्हारा इन्तजार कर रही है।
रेनू शर्मा
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