हमारे अपने
मैं ,बड़ा हो गया हूँ फिर भी कुछ बातें आज भी मेरा पीछा नहीं छोड़तीं ,माँ कहती थीं -सुबह उठते ही ईश्वर को प्रणाम करो ,अपने बुजुर्गों को चरण स्पर्श करो ,छोटो को कभी परेशान मत करो। यह उपदेश पुरे समाज ,देश ,नगर ,शहर और दुनियां पर लागू होते थे। माँ तो ,कहती थीं हम सब एक ही हैं ,सोचा करता था माँ ठीक ही तो ,कहती है। बगल में रहने वाले रहीम काका कितने अच्छे हैं ,मुझे मीठी गोली खाने को देते हैं। मेरे सिर पर हाथ घुमा देते हैं। उनकी बेगम बड़ी जालिम हैं ,जब भी मेरी गेंद अंदर जाती है ,बड़बड़ाती हैं। बोलती हैं आज तेरी गेंद निकाल दूंगी ,मेरी ओर आना चाहती हैं तभी उनका पैर अपनी ही सलवार में अटक गया ,धड़ाम से गिरीं वरना मुझे पकड़ ही लेती। मैं ,खड़ा हंस रहा था ,साहिबा दीदी ने मुझे भागने का इशारा किया।
हमारे आस -पास के सभी लोग किसी भी जाती ,धर्म से हों ,सभी काका ,चाचा ,ताऊ और दादा ही हैं। माँ ,कभी जोर से मारती तो सिलाई करने वाले जुम्मन काका ही बचाने आते थे ,भाभी जान बच्चे की जान ही लोगी क्या ? अपने साथ ले जाते ,खिलाते और छोड़ जाते। माँ को पता भी नहीं रहता कि हम कहाँ हैं। रिश्तों की डोरी इतनी पाक और मजबूत थी कि नकारात्मक बात कोई सोच नहीं सकता था।
मैं ,बड़ा होता गया ,मैं बदल रहा था और समाज भी। एक दिन पता चला गणेश मंदिर के पास किसी ने गाय मार दी। पुलिस आ गई शहर में फसाद शुरू हो गया। सारे रिश्ते ख़ाक हो रहे थे। एक बुर्ज की जान चली गई ,दसियों लोग घायल हो गए तब ,जाकर शांति हुई। मैं ,संस्कारों की पट्टी पर कुछ परत चढ़ने नहीं देना चाहता था ,अकस्मात् इन झगड़ों से आहात जरूर हुआ।
एक दिन दोस्त के साथ विचारों की लड़ियों को खोलते -बांधते मैं ,हवा से बातें करता गाड़ी चला रहा था। खेतों में लहराती फसल ,बहता पानी ,जंगलों को निहारता जा रहा था ,अचानक ब्रेक पर पैर चला गया ,चाय पीने का मन हुआ ,दोस्त भी तैयार हो गया। सड़क के पार ,पान की दूकान पर कुछ लोग बनाकर कुछ चर्चा कर रहे थे ,उन्हें देखकर कुछ अच्छा नहीं लगा ,हम जाने लगे तभी बोर्ड पर लिखा हुआ दिखा -हिन्दू -मुस्लिम भाई -भाई ,तिरंगा भी लगा था। मुझे लगा गलत क्यों सोच लिया मैंने।
दोस्त से अपनी गिरह खोल रहा था कि मुझे क्या हुआ जो गलत ,सोचने लगा ?हम देर तक सामजिक गतिविधियों पर चर्चा करते रहे। अभी हम शहर की देहरी लांघ ही रहे थे कि पता चला हमारे शहर में पांच जगह ब्लास्ट हुए हैं ,बहुत लोग घायल हुए हैं। बिना मंजिल पर पहुंचे हम लोग वापस हो लिए अपनों की मदद करने।
रेनू शर्मा
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