गाइड
ऐतिहासिक शहर का निवासी होने के अपने फायदे भी हैं और नुक्सान भी। हर व्यक्ति उस शहर की मशहूर इमारतें ,पार्कों ,नदियों ,बाग़ -बगीचों सबसे वाकिफ रहता है। सब जानते हैं ताजमहल कब ,किसने बनवाया था। उनकी बेगम का नाम क्या था ? साठ के दशक में मुरारी लाल किले पर चपरासी का काम करने लगा। बड़े साब के घर एक बार गेहूं के बोर रखने गया था ,साब मुरारी की मेहनत पर बहुत खुश हुए और दूसरे दिन काम पर बुला लिया।
पहली बार जब किले के दरवाजे से मुरारी सायकिल लेकर जा रहे थे तब ,उनको लगा मानो कोई शहंशाह बड़े रथ पर बैठ कर जा रहे हों। सीना चौड़ा हो गया ,डर भी था पता नहीं क्या काम करना पड़े। ऑफिस में गया और नाम बता दिया ,पहले दिन शर्मा जी ने काम समझा दिया और बोला जाकर किला घूम लो। एक बूढ़ा गोपी मुरारी के साथ कर दिया ,जाओ -रस्ते ,महल ,दरवाजे ,कुए ,बाबड़ी सब देख लो और नाम याद कर लो।
डरता हुआ सा गोपी के पीछे चल दिया ,पहली बार किसी किले को इतनी पास से देख रहा था। गोपी ,किसी पुरानी डरावनी फिल्म के रहस्य्मय पात्र की तरह आँखें मटकाता हुआ बताता -यहाँ सेना के घोड़े ,हाथी बांधे जाते थे ,यहाँ तोप लगी रहती थी। बारूद भरने का काम हमारे परदादा करते थे। यहाँ रानियां श्रृंगार किया करती थीं। यह बादशाह का दरवार हुआ करता था। गुप्त दरवाजे से राजा आता था और अंदर ही चला जाता था। रानियां यहाँ स्नान किया करतीं थीं। जाने कितनी रानियां ,दासियाँ यहाँ कूद कर अपनी जान दे चुकी होंगी। गोपी ,बताते हुए लाल गोल आँखें मुरारी की तरफ घुमा देता ,बाबड़ी में उतरना मुरारी को भारी पड़ गया।
एक पुराने नीम के पेड़ की ओर इशारा करते हुए गोपी रुक गया -देख मुरारी !! यह पेड़ बादशाह के ज़माने का है ,दादा बताते थे राजा इसी पेड़ से दातुन करता था। दौनों हंस पड़े। पहली बार गोपी हंसा था। चल मुरारी ! शीश महल देखते हैं ,हाँ चलो। वहां तो मुरारी हक्का -बक्का रह गया ,दादा क्या जगह है ? यहाँ तो बादशाह अनारकली की तरह नृत्य किया करता था ,सब तरफ अपना ही अक्श देखता था। दादा आप कितना चलते हो ,भैया रोज एक चक्कर तो हो ही जाता है। चल ऊपर चल ,वहां भी देख ले ,यहाँ से बादशाह ताजमहल देखा करता था ,यह यमुना जी हैं। किले के चारोओर चौड़ा नाला है इसे कोई पार नहीं कर सकता। चल ,थोड़ी देर बैठते हैं। गोपी ! हर जगह मुरारी को दिखाता रहा ,पूरा इतिहास समझाता रहा। लेकिन मुरारी बाबू तुम्हें तो साब का झाड़ू -खटका करना पड़ेगा। पानी पिलाओ ,पंखा झेल दो ,पूरे दिन गाइड बनकर लोगों को किला घुमाते रहो ,सौ -पचास तो रोज मिल ही जायेंगे।
पहला दिन थकाने वाला था ,हर नए दिन मुरारी अच्छा काम करता रहा। जब साब दौरे से आते तो ,उनका काम करता ,बाद में गाइड बन जाता। कक्षा पांच तक पढ़ा मुरारी अब ,फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने लगा था। फ्रेंच के शब्द भी समझ लेता था. किले का इतिहास ,राजा ,रानियां ,तारिख ,जगह सब मुंह जवानी याद था। रात की पारी वाले लोग ,वहां बनी छोटी कोठरियों में रहते भी थे ,पुलिस भी रहती थी। गोपी को गुजरे बरसों बीत गए। पिछले दिनों मुरारी छुट्टी पर था ,इस बीच साब का तबादला हो गया। नए साब आ गए तो ,मुरारी रात की पारी पर आने लगा।
दिन में तो मुरारी पूरा किला जानता था लेकिन रात की बात अलग थी। देर रात तक नींद नहीं आई क्योंकि बुखार अभी गया नहीं था। बरांडे से निकलकर दीना के पास जाने को मुडा ही था कि गोपी ने कन्धा पकड़ लिया। अरे !! मुरारी कहाँ थे ? आज रात को क्यों आये ?हजारों सवाल कर दिए ,अरे !! दादा आप ,हाँ ,मैं यहीं रहता हूँ। क्या करते हो ? गाइड हूँ। देखते नहीं कितने लोग घूम रहे हैं। इन्हें कौन बताएगा कि कहाँ जाना है ?दादा !मैं चलता हूँ ,कहाँ दीना के पास। हाँ ,चले जाना तुझे तहखाना दिखा दूँ। नहीं दादा !!आज नहीं ,फिर कभी। बात चीत करते हुए दौनों काफी दूर निकल गए। गोपी का चेहरा देखा ,तो वही गोल आँखें ,अंदर तक काँप गया मुरारी। हनुमान चालीसा का पाठ करने लगा।
दीना देख रहा था कि मुरारी किसी से बात करता हुआ बाबड़ी की मुड़ गया है। उसे कुछ संदेह हुआ ,टॉर्च की रौशनी मुरारी के ऊपर डाली तो ,वहीँ थम गया। वहीँ गिर गया ,दो सिपाही दौड़कर उसे भीतर लाये ,शरीर गर्म था ,आँखें लाल थीं। जब होश आया तब , गोपी दादा का पूरा किस्सा सुना दिया। देर तक सब गोपी को याद करते रहे। मुरारी नौकरी छोड़कर घर आ गया। उसका बेटा अब ,बाबू बन गया है। बरसों तक गाइड बन ,सब कुछ सीखा लेकिन गोपी की तरह मरकर भी गाइड नहीं बनना चाहता। अभी अपने घर गाइड मुरारी।
रेनू शर्मा
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