Thursday, May 30, 2024

 वो ,पहचान गई 

  हमारा गांव कहने को शहर में था ,पर विकास के नाम पर बिजली ही आई है। हमें याद है कि पिताजी सिया को भेजते थे कि जाओ ,देखकर आओ बिहारी ने लालटेन जलाया कि नहीं। ये सब काम गांव के सहयोग से होता था। सुबह उसे बंद किया जाता था। गांव की गलियां अभी कच्ची थीं ,मुख्य सड़क पक्की थी लेकिन आवागमन के साधन कम ही थे। उस ज़माने में सरकारी नौकरी मिलना आसान था। सुबह सायकिल लेकर निकलता और रात तक वापस आ जाता। 

जब रविवार आता तब खेत पर हिसाब करने चले जाता ,आकाशवाणी उस समय बड़े सुरीले गाने सुनाती थी तो किसी और माध्यम की आवश्यकता ही नहीं थी। कभी राजाराम की बगीची पर जाकर दोस्तों से गप्पें मार लीन ,कभी गाय को पुचकार कर दूध निकाल लेता। यही सब चलता रहता था। कभी हमारे पूर्वज अफ्रीकी देश में खदानों में काम करने गए थे ,उनके नाती एक दिन अचानक से गांव आ गए। गांव भर में हल्ला मच गया विदेशी आये हैं। गांव भर के लोग घर में एकत्र हो गए। मन्त्र -मुग्ध डॉक्टर तिवारी सभी के फोटो खींच रहे थे। शाम तक यही चलता रहा होटल का पता देकर वे लोग चले गए। 

कई महीनों तक हमारे घर में उन्हीं की बातें होती रहीं। महीने भर बाद उनके भेजे कुछ फोटो हमें मिले। बड़ा अच्छा लगा। हरी राम ने अपने परिवार की तजा तस्वीर के साथ एक खत उनके पते पर भेज दिया। ये सिलसिला चल निकला। कई बरस के बाद एक परिवार फिर भारत आया और हमसे मिलने गांव भी आया। एक दिन जरुरी काम से ऑफिस में व्यस्त था तो वे लोग सीधे ऑफिस ही पहुँच गए। चपरासी ने आकर बताया साब !! आपको कुछ विदेशी खोज रहे हैं। औरतें भी हैं ,कह रहीं थीं कि आप उनके भाई हो। चपरासी हंस रहा था ,साब कहाँ आप और कहाँ वो लोग ,क्या कहना है ? बाहर गेट पर सुरक्षा कर्मियों ने भीतर नहीं आने दिया ,हरिराम दोस्तों के साथ गेट तक गया ,तभी एक महिला भीतर दौड़ती हुई आई और हरी से लिपट गई भइया !! कभी माथा चूमती ,कभी हाथ चूमती। वे लोग आपस में बहस कर रहे थे कि तुमने अपने भाई को देखा नहीं तो कैसे पहचानोगी ? सभी लोग तमाशा देख रहे थे। हरिराम हक्का -बक्का सा गायत्री जी से अपने को जोड़ रहे थे। 

अपने मेहमानों को जलपान कराया फिर होटल तक छोड़कर आया। हजारों दुआए आज भी हरी के चारो ओर घूमती हैं। आत्मबल से गायत्री ने हरी को पहचाना। जब उन्हें बताया कि हरी हमेशा से खत डालता था तो उन्होंने बताया कि उनके पिता सभी खत अपने पास रखते थे। उनको लगता था कि हम लोग भारत नहीं जायेंगे। उनकी मृत्यु के बाद हमें खत मिले। तभी निश्चय किया कि हम भारत अवश्य जायेंगे। आज भी हरिराम का रिश्ता उन लोगों से बना हुआ है जो, भारत आकर हमारे घर की मिटटी इसलिए ले  जाते हैं ताकि पूर्वजों को नमन कर सकें। हरिराम अभी इस दुनिया में नहीं हैं ,उन रिश्तों को जीवित करने वाले जाने कब सामने आएंगे। इन्जार रहेगा। 

रेनू शर्मा 







































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