Saturday, June 29, 2024

 अंतर्जातीय विवाह  

सुलोचना उस दिन भी बहुत रोई थी ,जब पहली बार पता चला कि उसकी बेटी अपनी मर्जी से विवाह करना चाहती है। बात अंतर्जातीय की नहीं ,उसे लगता था ,जाने कैसे लोग होंगे ? क्या पता दहेज़ तो नहीं मांग करेंगे ? लड़का ठीक तो होगा ? कहीं धोखा तो नहीं देगा ? हजारों सवालों की लिस्ट उसके दिमाग में घूमती थी। सुलोचना एक माँ की तरह ही सोच रही थी। ईश्वर से लड़ रही थी ,क्या इसी दिन के लिए आपने मुझे बेटी दी है ,पंडित को पत्री दिखाई तो सत्तर प्रतिशत अपनी मर्जी और तीस प्रतिशत माता -पिता की मर्जी से विवाह होगा। कुल मिलाकर माता -पिता को झुकना ही पड़ा। 

सुलोचना बहुत मानसिक दबाव से गुजर रही थी ,सब कुछ बेटी के सुरक्षित भविष्य के लिए ही हो रहा था ,उसे पता था कि होगा वही जो ,होना होगा। एक दिन झूले पर बैठी सुल्लो ,चाय पी रही थी और अपनी बगिया के पेड़ों से सलाह मांग रही थी ,आप ही कुछ बताओ ? क्या करूँ ?रोज पेड़ -पौधों को प्रणाम करना उसकी आदत थी ,उनको अपने पूर्वजों के रूप में देखती थी। सुल्लो को मालुम है कि प्रकृति उचित ही सलाह देगी। तभी ,एक विचार कोंधा क्यों न ,लड़के से मिला जाय तब ,सोचते हैं क्या करना है। तभी मन हल्का हो गया। एक दिन लड़का आ गया ,जी भरकर सवाल जवाब हुए ,फिर सोच लिया सब ठीक ही होगा। 

सुलोचना ,बात करती रही और आंसू झरते रहे ,लड़के के माता -पिता का भी यही हाल था। शादी की तयारी होने लगीं। तन -मन से विवाह संपन्न हो गया ,जब ,बेटी विदा होकर जाने लगी तब ,बहुत खुश थी। सुलोचना अब ,भी जार -जार रो रही थी ऐसा लगा जैसे कोई शरीर का अंग काटकर ले जाता हो। प्रसव वेदना जैसा भाव आ रहा था। माँ ही क्यों दुखी होती है ? चाहे मिलना हो या बिछुड़ना हो। शायद माँ ही गरल सी इस पीड़ा को झेल सकती है। 

रेनू शर्मा 

























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