Thursday, June 20, 2024

लेखन की बंदिशें  

  हमेशा यही सुनने को आता है कि लेखिका घर -परिवार ,समाज ,स्त्री ,पुरुष ,बच्चे ,बुजुर्गों के रिश्तों के अलावा वे कुछ नया नहीं लिख पातीं। पुरुषों के पास अनगिनत किस्से होते हैं ,तब भी वे नहीं लिख पाते। ऑफिस ,बाजार ,दोस्त ,पार्टी कहीं से भी बात उठा सकते हैं। घरेलु महिलाओं को अपने आस -पास की बातें ही उद्वेलित करती हैं ,वहीँ से उनकी कलम चलना शुरू होती है। जिन महिलाओं के पति प्रेस में काम करते हैं उनकी है दो चार महीने में एक किताब आ जाती है। वरना सोच सकते हैं जो व्यक्ति पहले लिखेगा ,फिर टाइप होगा ,एडिटिंग होगी तब कहीं जाकर एक प्रिंट निकलकर आता है उसके बाद भी बहुत काम होता है। 

महिला कामकाजी हुई तो और भी अधिक समय लग सकता है ,उनको साहित्य में रूचि बनाये रखने के लिए साहित्यिक गोष्ठियों में जाना भी पड़ता है। दूसरे लोगों को सुनना भी अच्छे लेखक की पहचान है। हमेशा किताबें पढ़ते रहना चाहिए। कुछ लोग तो दूसरों की रचनाएँ चोरी करते हैं और अपने नाम से छपवा लेते हैं। अब ,इस लेखन को क्या कहा जाय ? एक महिला लेखिका ने बताया कि नेट पर सब मिलता है ,इधर -उधर ,काट -छांट करो और किताब तैयार। उपन्यास लिखना  कोई बच्चों का खेल नहीं है हर दो  महीने में उपन्यास तैयार ,कैसे होता है सब ? किसी वरिष्ठ लेखक ने मुझे सलाह दी थी ,बेड रूम की बातें डाला करो ,तब रचना सरस लगेगी। क्या यही साहित्य है ,समाज का दर्पण है ?

लेखन पर ग्रहण तो लग रहा है ,समाज में  रिश्तों की गरिमा भी तार -तार हो रही है। प्रेम करने का रोग सब जगह फ़ैल रहा है। लोग कहने लगते हैं सब ,तुम्हारी तरह चलेगा क्या ?कम से कम  माता -पिता की तरह तो चलो। सब कुछ एक रहस्य सा जान पड़ता है। लेखक की मर्यादा से बात शुरू हुई और समाज की अंतरंगता तक पहुँच गई।  लेखन में शिक्षा ,नैतिक ज्ञान और जागरूकता का ध्यान तो रखना  चाहिए। 

रेनू शर्मा 


 















     


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