Sunday, May 26, 2024

शहीद की माँ 

माँ ,से नजरें मिलीं 
तो ,कम्पित हो रहीं थीं
उसकी पलकें ,
मेरे ललाट को ,
एकटक निहार रहीं थीं। 
उसका कलेजा फटा जा
रहा था ,होंठ लरज रहे थे ,
उँगलियाँ काँप रही थीं। 
ठन्डे नाजुक हाथों से ,
मुझे सीने में छुपा लिया। 
उसकी धड़कन बेकाबू थी ,
पिंजरे के पंछी सी माँ 
फड़फड़ा रही थी। 
फिर भी ,मेरी पेशानी 
चूमते हुए बोली -बेटा 
जल्दी आना ,माँ के 
क़दमों पर ,मंदिर की देहरी 
समझ झुक गया ,
तू !! झुक मत ,उठ वीर !!
मेरे सीने में समाया है ,
तुझसे ही मेरी दृष्टि 
रोशन है ,धरती का लाल ,
भूदेवी को प्रणाम कर। 
अश्रु बनकर माँ ,मुझसे 
प्रवाहित हो  रही थी। 
प्रकम्पित दीये की लौ सी ,
माँ ,मेरी आँखों में 
बंद  हो गई। 
रेनू शर्मा 


































 

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