Tuesday, May 28, 2024

बरसात 

काली कोयलिया बड़ी जोरों से कूंक रही है माँ लेकिन ,ये दिखाई क्यों नहीं देती ? घने नीम के पत्तों के बीच छिपी बैठी होगी ,वैसे भी बादल घिर रहे हैं ,पानी बरसने वाला है ,शायद आज जम कर बरस जाए ,माँ बोलती गई लेकिन ,राधा जानती है ,मौसम तो सुहाना हो गया लेकिन, आज खाना कैसे बनेगा ?छत से पानी टपकेगा तो लकड़ी गीली हो जाएगी ,बाहर रखे कंडे भी भीग जायेंगे। टीन की छत छेद वाली है ,खिन से भी पानी आने लगता है। माँ बार -बार पटटा सरकाती है ,आटा किनारे रखती है। बारिश थमने का इन्तजार करती है। बाबा हर बरस भरोसा दिलाते हैं ,इस बार जरूर छत बन जाएगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। 

ऐसा लग रहा है ,प्रकृति का सफाई अभियान चल रहा है ,ऊँची इमारतें ,पेड़ -पौधे ,सड़कें सब धुल रहा है। मुश्किलें बढ़ाती हुई भी बरसात अच्छी लगती है। आँगन में सभी लोग सोये थे ,अचानक बादल गरजने लगे ,आंधी आ गई। सुबह देखा पानी भरा हुआ था ,माँ ने बच्चों को भीतर सुला दिया था। एक रात  सब लोग छत पर तारे गिन रहे थे ,अचानक मौसम बदल गया हम लोग छत पर ही दुछत्ती पर चले गए ,अँधेरे मैं ही चारपाई पर बिस्तर लगाकर सो गए। राधा पानी का लोटा उठाने की कोशिश करती है तभी सामने नाग देवता फन फैलाये इधर -उधर देख रहे थे ,माँ जोर से चीखी ,सब बाहर भागे ,देर तक वहीँ बैठे रहे ,सबेरा होने पर छत की सफाई की गई ,गोबर से लिपाई की गई ,माँ ने बताया सांप केंचुल छोड़कर गया है। 

माँ हमेशा मना करती थी कि बारिश के पानी में नहीं जाना है ,फोड़े -फुंसी हो जाता है लेकिन बार -बार दूकान से सामान लाने बच्चे दौड़ पड़ते थे। कीचड में ईंट रखकर ,एक पैर से संतुलन बनाकर चलना पड़ता था। स्कूल की दीवार पर बैठकर बच्चे पानी में गिरने वालों को देखकर हँसते रहते थे। आम की गुठलियां जब अंकुरित हो जाती तब ,उसकी कोंपल तोड़कर सीटी बनाई जाती थी। कभी बड़ा पत्ता तोड़कर भी पीं -पीं आवाज बच्चे निकालते थे ,बारिश के यही खेल थे। 

कोई एक समस्या हो तो ,बताया जाय कीचड वाली ,पतली गलियों से पानी भरा हुआ घड़ा सिर पर रहता ,हाथ में बाल्टी और रस्सी ,उसके बाद रस्ते पर बेलेंस बनाना पड़ता था। राधा ये काम बखूबी करती थी। घर के सामने नाली के बहते पानी में कागज की नाव बनाकर बहाई जाती थी। बारिश थमने पर राम की गुड़िया ,गिजाइयों का मोहल्ला ,पंछियों का कलरव खोजना सब स्मृति पर दस्तक दे रहा है। 

रेनू शर्मा 

























  

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