लौटती ख़ुशी
कस्तूरी मृग को तलाशता शिकारी घने जंगल में दिग्भर्मित हो जाता है ,उसी तरह शीला का हर दिन उल्लास भरा रहता है ,कोई भरम नहीं। पच्चीस साल का वैवाहिक जीवन कल की सी बात लगती है। जब ,ससुराल आई थी ,दबी सहमी सी ,सबके चेहरे पढ़ती रहती थी। कभी सासुजी नाराज हो जतिन तो कभी कोई और। अरे !! शीला कभी भगवान के सामने घंटी बजा लिया कर ,मांजी !! आपका नाती उठ जायेगा। शीला को लगता घर से बाहर तक चाटुकारिता ,उत्कोचभाव ,प्यार ,सम्मान हजारों भाव व्यक्ति पर पहरा सा बिठा देते हैं। शीला कागज की नाव पर सागर पार करने का जतन कर रही थी।
शीला दो बेटों की माँ है ,खेती का काम उसके पति महेश जी देख लेते हैं ,लड़के पढ़ लिखकर जॉब करें तो ठीक ,अगर नहीं भी करें तो अपना काम देखेंगे। मजदूरों को देखने वाला भी तो ,होना चाहिए वरना वे तो बीड़ी फूंकते रहेंगे। महेश ने कई बार कालू को काम से निकाला है क्योंकि सोता रहता है लेकिन जब ,रोटी नहीं मिलती तब फिर आ जाता है। शीला की सोच जुगाली जैसी है ,आठवीं तक पढ़ी है। बेटे बड़े हो गए बहु आ गई ,लेकिन बाग़ पर आकर भूरा को घेर लेती है ,क्यों रे !! अमरुद अभी तक नहीं पके ,क्या करता रहता है। बथुआ घर भिजवा देना। भूरा सफाई रखाकर भाई ,तभी महेश ने आवाज लगा दी -आओ जी !! भोजन करो। कभी अपने बच्चों को भी बोलै करो खेत पर आएं ,यहाँ की हरियाली देखें। तुम खाना खाओ।
रविवार को बच्चों सहित खलिहान पर खाना तय था लेकिन बारह बजे तक बहु सोती रहती है। शीला को शहरी रहन -सहन पसंद नहीं ,खेत पर आकर भूरा के साथ खाना भी बन गया। इंतजार कर रहे थे तभी टोनी अपने दोस्तों के साथ आ गया। हम भी खाना खाएंगे ,चलो हाथ पैर साफ़ करो और बैठो। शाम को जब घर पहुंचे तब राहुल और बहु दोस्तों के साथ बीयर पार्टी कर रहे थे। शीला तो दंग रह गई। गांव के ठाकुर महेश को लगा मानो ,भरी सभा में नंगा कर दिया हो।
सुबह होते ही महेश ने सभी को आँगन में बुलाया और समझा दिया -शाम तक अपना सामान बांधो और तीनों घर खाली करो। मेरे घर में तुम लोगों की आवारगी नहीं चलेगी। शाम तक राहुल और रिंकी चले गए ,शीला को दुःख हुआ क्या करती ,महेश बहुत ज्यादा पीड़ा में थे। टोनी अपने दोस्त के साथ चला गया। शाम को जब महेश घर आये तब घर खाली था। उन्हें पता था कितने दिन बाहर रह सकते हैं। लौटकर तो आना ही पड़ेगा। शीला तुम चिंता मत करो मैंने ,पता कर लिया है तीनों ठीक हैं। अभी एक हफ्ता भी नहीं हुआ घंटी बजी तो ,शीला दौड़कर गई ,दरवाजा खोला तो बहु बेटा सामने खड़े थे माँ हमें माफ़ करदो ,अब कभी गलती नहीं होगी। पिताजी !! के चरणों में झुक गए। दूसरे दिन टोनी भी आ गया।
चलो शीला बच्चों के लिए खाना बनवाओ ,हम सब साथ भोजन करेंगे। पिता ने कोई रंज नहीं रखा और बच्चों को उनकी जिम्मेदारी समझा दी। अब ,कोई कोताही नहीं होनी चाहिए। हम कब तक खेत देखते रहेंगे ? तुम दौनों बाहर देखो और रिंकी घर का काम तुम देखोगी शीला नहीं। जी पिताजी। सुबह पता चला कि बहु गर्भ वती है तो शीला की ख़ुशी में चार चाँद लग गए।
रेनू शर्मा
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