Sunday, May 26, 2024

 वागर्थाविव सम्पृक्तौ 
वागर्थ प्रति पत्तये। 
जगत : पितरौ वन्दे 
पार्वती परमेश्वरौ।।
देव ,पितृ ,गुरु देव 
सब ठौर विराजे हैं। 
उड़न खटोला पर 
देवता से सवार 
बाबा साब ,दादी साब 
प्रीत बरसावत हैं। 
इत -उत जहाँ देखो 
बालक चहकत हैं। 
आभा सब रिश्तन की 
देखत ही बनत है। 
रात रानी बगिया में 
नाच नचावत हैं। 
आँगन के गगन में 
रस  रंग बरसत है। 
अंग -अंग मैया के 
उमंग रमकत है। 
मेहदी की महक में 
मद होश लाडो है। 
अँखियन की तिजोरी 
सपनों से भरी है।
कजरा की कटोरी लै 
भावज इतरावत है। 
हल्दी की थाली लै 
बहन भागी आवत है। 
फूलन की डलिया लै 
पिता मुस्कावत हैं। 
कर ले श्रृंगार आज 
सुगंध बरसत है। 
बाजे बधाई ,गावो गीत रे 
आज सखी जावत ससुराल है। 
रच देगी ,रंग देगी ,बसेगी 
अपने परायन में। 
ऐसो ही आशीर्वाद 
हम सब बरसावत हैं। 
रेनू शर्मा 
















































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