Saturday, May 25, 2024

दास्तां -ए -चोरी 

चमकता हुआ सूरज ,खिड़की से सीधे मेरे तकिये पर दस्तक दे रहा है ,अब तो उठो। आँखें मलते हुए सूर्य देव को प्रणाम कर बिस्तर छोड़ना पड़ा। अखबार को एक ऐसे परिवार की कथा भेजनी है जो पिछले तीन महीने से चोरी हो जाने की पीड़ा को झेल रहे हैं। जानेके लिए गाड़ी उठाई ही थी तभी फोन आ गया ,सरिता जी !जरा जल्दी करिये वरना  दूसरी न्यूज़  देनी पड़ेगी। ठीक है ,कहकर निजकल गई ,परिवार गांव से अभी शहर आकर बसा है ,मैं ,समझ सकती हूँ क्योंकि कॉलेज में एक बार मेरी फीस किसी लड़की ने पार की थी। तो ,खोने का दुःख मुझे है। 

बाबा ,अकेले काम करने वाले ,घर में चार लोग ,मैं ,न बाबा से कह पाई ,न माँ को बता पाई कि फीस चोरी हो गई। वो तो ,माँ हमेशा दस बीस रूपये देती रहती थीं तो ,काम चल गया। उधेड़ -बुन करते हुए उनके घर पहुँच गई। घंटी बजाई तो ,एक बुजुर्ग ने द्वार खोला ,समझ गई पिता ही होंगे। मैं ,सरिता अख़बार से ,जी आइये ,मैं ,भीतर कुर्सी पर देवी जैसी स्थापित हो गई। उनकी पत्नी शकुंतला जी ने मेरा स्वागत किया ,पानी लेकर आईं। बेटी नयना को बोला  जा ,चाय बना ला। 

पिता लाल जी अधीर हो रहे थे अपनी पीड़ा बाँटने के लिए ,हमारी एक छोटी सी दुकान थी , गाड़ियों की मरम्मत कर किसी तरह घर चला रहे थे। जो गाड़ी की बैटरियां ठीक होने को रखीं थीं वही ,उठा ले गया। तभी पत्नी बीच में बोल पढ़ी -बेटा !हमने कहा था वहां कुछ न रखो। अरे !!तुम चुप रहो ,हम बता रहे हैं। लड़का शहर गया था ,उसने पुलिस को बताया ,अब पुलिस कहती है किस पर शक है ,बताओ। हमें तो ,कबाड़ी पर शक है ,किससे  झगड़ा मोल लें। एक दिन दरोगा बाबू घर आ धमके ,तबसे मोहल्ला वाले कहने लगे हम तो बड़ा आदमी हूँ। अरे !बिटिया इनकी मति मारी गई जो ,उस कबाड़ी का नाम ले लिए। बदमाश है वो ,किसी दिन घुस पड़ेगा घर में। तभी नयना बोल पड़ी -दीदी !बाबा ने हजारों रुपया उधार कर लिए जबसे ,एक सामान  नहीं मिला। 

उनकी नोक -झोंक पर मुझे हंसी भी आ रही थी पर ,उनकी बात सुनना जरुरी था। हम बताएं दीदी ! एक बार कबाड़ी को पुलिस पकड़कर ले गई ,बाबा खुश हुए ,पर अम्मा बोली -भगवन बा कबाड़ी को पुलिस छोड़ दे तो अच्छा। कोई निर्दोष न फंसे। तभी ,माँ बोल पड़ी -बेटी !! हम नहीं देखे उसे चोरी करते तो काहे नाम लें। अब ,देखो हमारे घर वाले ही चोर न पकड़ने दे रहे। दो महीना से बाबा ,फ़कीर सब हो रा है ,पर कुछ ना हुआ। 

एक बार बिटिया !! का बताएं दोस्त की गाड़ी में दो लीटर पेट्रोल भरवाया ,खेत -खेत ले गया कि देवी आती है ,बाबा सब सच बता देंगे ,लेकिन नर्मदा स्नान कर वापस आ गए ,कछु ना हुआ। थाने वाले साब बोले -जब तुझे सपना आये तब ,हमें बताना। दो रात का समय  दे दिया ,मुझे तो रात भर नींद ना आई ,सुबह बेटी पूछ बैठी -बाबा सपना देखा क्या ?मुझे तो हंसी आ गई। तभी ,शकुंतला बोल पड़ी -हमने कहा था ,न करो ये नाटक ,कुछ नहीं होगा ,गांठ की नींद और चली गई। हम सभी लोग खुलकर हँसते रहे। 

कितना मस्त परिवार है और फालतू लफड़े में पिस  रहा है।पुलिस अफसरों तक शिकायत की पर ,कुछ नहीं हुआ तब ,गांव छोड़ना पड़ा। तभी शकुंतला बोल पड़ी -भला हो चोर का ,आज हम लोग साथ तो हैं वरना मुझे दो बार पूजा करनी होती थी गांव की अलग और शहर की अलग। एक बार एक आदमी बोला -चमेली का तेल हाथ पर लगा लो तो ,चोर की फिल्म दिखेगी ,कुछ ना हुआ। कबाड़ी को भी एक दिन थाने में रखा और छोड़ दिया। माँ को पता चला  कबाड़ी को छोड़ दिया तो माँ  , मंदिर में प्रसाद चढ़ा रही थी। इस बीच मैं भी ठहाके लगा रही थी क्योंकि चोरी का रंज उनके चेहरे से जाता रहा था। अब ,तो ये था चोर पकड़ा कैसे  जाता है? ख़राब समय का सब मजाक उड़ा रहे थे। बेटी नयना ,बड़ी खुश थी शहर आकर ,पढ़ने की तयारी कर रही थी। दीदी जब माँ ,गांव में थीं हम लोग शहर में थे तब ,भगवान  से बोलती जाओ ,शहर यहाँ का  काम है ? बच्चों का ध्यान रखना। जब हम लोग गांव आ जाते तो बोलतीं जाओ ,अब दो चार दिना छुट्टी ,कही घूम आओ। इनकी तो लीला ही न्यारी है ,न चोर पकड़ने दिया ,न कुछ काम हुआ। 

चाय के दौर चलते रहे मैं ,एक खुशहाल परिवार के साथ भूल गई। समझ ही नहीं आ रहा था इस कहानी में  पीड़ा है ,दर्द है या दर्द से निपटने की दवा है। एक -एक लम्हे  जिंदगी जीने वाले लोग रीते होकर भी ,भरे हुए थे प्यार ,संवेदना और इंसानियत से। हँसते ,मुस्कराते चेहरों को छोड़कर ,मैं बढ़ चली अपनी मंजिल की ओर। 

रेनू  शर्मा 






























 

























































 

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