मनोवैज्ञानिक उपाय
सुगंधा वैसे तो ठहाके लगाने में माहिर है लेकिन कुछ समय से सुस्त नज़र आती है। मंदिर में देवी आरती की ध्वनि सुनाई दे रही है ,मन करता है दो -तीन घंटे वहां बैठूं ,जब पक्षी वापस अपने घोंसलों को लौटते हैं तब ,वापस आऊं। लेकिन ऐसा करना हर बार संभव भी नहीं। वहीँ ,एक दिन मेरी मुलाक़ात सुगंधा से हुई थी।
बेटा पढाई कर दिल्ली में जॉब कर रहा है ,बेटी अभी पढ़ रही है। पति सरकारी कर्मचारी हैं ,बस किसी तरह घर चल जाता है। सुगंधा ने बड़ी अच्छी तरह से सब संभाला हुआ है। अचानक दरवाजे की घंटी बजी ,सुगंधा खड़ी थी। आओ न ,पीछे चलकर बैठते हैं। आम और अमरुद के पेड़ों के नीचे चाय पीने पर ,आजादी का अनुभव होता है।
सुगंधा बताओ -क्या चल रहा है ? क्या बताऊँ ,रूही आजकल मुझे नाराज रहती है ,उसे लगता है भाई को ज्यादा प्यार करती हूँ ,लेकिन ऐसा कहाँ होता है ? दोनो बच्चे बराबर हैं। रात में बाहर जाने को मना करती हूँ तो गुस्सा करती है ,अभी एक दिन अपने पिता के सामने ही गरवा खेलने जाने का कह रही थी। सहेली के साथ ,पिता ने तुरंत हाँ कर दिया। अरे !! हम कुछ नहीं हैं क्या ? उन्ही का अच्छा -बुरा सोचकर बोलते हैं न ,चलो ठीक है ,अब बताओ गुस्सा क्यों आया ?कुछ नहीं प्रकाश से बात नहीं हो रही थी।
तुम नहीं समझती हो ऋचा ! रूही बहुत जिद्दी हो गई है ,ऊँचा बोलती है ,बच्चे माता -पिता को कुछ समझते ही नहीं। अपने को ग्यानी मानते हैं ,अरे ,कुछ नहीं ,प्यार से बात करो मान जाएगी। प्रकाश से बोल दिया इसकी शादी करो ,वहां पढेगी ,रोहन को बताया कि तुम्हारी बहन क्या करती है तो ,बोला सब ठीक हो जायेगा। माँ ,आप ज्यादा चिंता करती हो। सुगंधा ! बेटी को अकेलापन लगता होगा ,काहे का अकेलापन ?टीवी ,कम्प्यूटर ,फोन सब तो यूज होते हैं ,दोस्तों से बात चलती रहती है। ठीक है ,नई पीढ़ी है ,कुछ तो नयापन होगा ही। तुम याद करो ,जब हमारी सीमा पढ़ती थी ,तब दोस्तों की मंडली साथ पढ़ने आती थी। इसके पापा को नहीं सुहाता था तो ,भड़क जाती थी। शादी करदी कि वहां पढाई करना लेकिन अब ,बच्चे संभल रही है। दुःख होता है। चलो सुगंधा ,अंदर चाय पीते हैं ,तुम जब तक टीवी देखो ,वहां कोई मनोवैज्ञानिक बैठे बता रहे थे कि बच्चों की चिड़चिड़ाहट के पीछे माता -पिता का आपसी झगड़ा भी हो सकता है। सुगंधा सोच रही थी कहीं हमारी रूही इस कारन तो जिद नहीं करती ?ऋचा ,ये तो ,सोचा था ,लेकिन हमारा झगड़ा भी तो बच्चों के कारण होता है।
सुगंधा अब ,समझ गई थी कि नो टेंसन ,सुगंधा को दरवाजे तक छोड़ा और सोफे पर बैठते हुए सोचने लगी क्या पता ,हमारे बच्चे भी कहीं अवसाद में न हों। सीमा से बात करती हूँ तब मेरी आँखें भीगने लगती हैं।
रेनू शर्मा
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