ठेका
सभी कहते हैं ,इक्कीसवीं सदी आ गई लेकिन जब ,अपने आस -पास देखती हूँ तो ,कतई नहीं लगता कि कुछ बदला है। गरीब का माई -बाप वही होता है जो काम देता है। पहले राजा सबका माई -बाप था ,फिर जमींदार आ गए ,फिर पांच परमेश्वर बन गए अब ये ठेकेदार आ गए। शरवती अपनी गोल -मटोल आँखें मटकाती बिना संकोच के बोलती चली जा रही थी। कभी नीचे खिसके आँचल को समेटती ,कभी फटी चोली को थकने का प्रयास करती ,कभी फटी विवाई वाले रूखे पैरों की अँगुलियों में पड़े बिछियों को उल्टा -सीधा करती ,मानो विवाह मूल्यों को बदल देना चाहती हो। कभी ऊपर देखकर कह उठती है बाई साब !! और क्या बताऊँ ? आप तो समझदार हो ,हम लोग तो ,खाना बदोश हैं ,जहाँ काम मिला वहीँ चले जाते हैं। मैं ,उसका हाथ छूते हुए उठ जाती हूँ , शरबती !!
रस्ते भर सोचती रही कितने ऐसे लोग होंगे जो ,जीवन को समझ ही नहीं पाते। देश की निर्माण प्रक्रिया में लगे होकर भी ,उनके पास छत नहीं होती। शरबती अभी बाइस बरस की है ,पति भी मजदूरी करता है ,दो बच्चे हैं लेकिन तीखी निगाहें डालने वाले दोनो को साथ काम नहीं करने देते। उसका मर्द दारू पीटा है कभी गोला भी खाता है ,कभी पुड़िया भी लेता है क्योंकि सब व्यवस्था मजदूरों के पास कराई जाती है। कैसे रह पाती होगी ऐसे मर्द के साथ, यही सोच रही थी कि देव ने ब्रेक लगाते हुए गाड़ी रोक दी ,मैडम घर आ गया।
मोना ! जरा अच्छी सी चाय पिला ,कोई फोन आया क्या ? नहीं मैडम। साब का खाना बनेगा क्या ? नहीं उन्हें तो दिल्ली से दो दिन बाद आना है। दिमाग से शरबती का चेहरा हटता ही नहीं ,कितनी हिम्मत है उसके पास ,थोड़ी डरे में ही खुल जाती है ,आँखों से बात करने लगती है। सांवली -सलोनी ,तीखे नाक -नक्श ,चार क्लास पढ़ी है। अंग्रेजी समझ लेती है जब ,उससे मिली थी तब चने की पुड़िया वाले अखबार को पढ़ रही थी। अच्छा लगा कोई मजदूरन काम के बीच अपना वजूद जिन्दा रखे है।
इनके बच्चे मिटटी में खेलते हुए ही बड़े हो जाते हैं। शरबती चाहती है कोई बच्चों को पढ़ाया करे ,अपने पास रखे ,पचास रूपया तक दे सकती है। मोना की आवाज आई मैडम दरवाजा बंद करलो मैं जाती। सोफे से उठकर मैं ,रात की खुमारी में समाती चली गई। दूसरे दिन शरबती को ढूंढ रही हूँ ,कहाँ गई ?तभी पता,चला नीचे झुग्गी में रहती है ,ऊँची -नीची गन्दी नालियों को पार कर मैं ,एक झोपड़ी के पास जाकर पता लगा रही थी ,शरबती कहाँ रही है ?भागते हुए एक लड़के ने इशारा किया इसी घर में ,कुण्डी खटका दी ,खांसते हुए आवाज आई ,कौन है ?आओ भीतर ,अरे ! मैडम आप !! उसने स्टूल मेरे पास खिसका दिया। बड़े करीने से कमरा सजा था ,एक कौन में टी वी चल रहा था ,पुराने गाने सुन रही थी ,बीच में डबल बैड रखा था। कपड़ों को समेटती हुई बोली -पानी लेंगी आप ? नहीं। बच्चे नहीं दिख रहे ? बड़ा बेटा आठ साल का है तो ,घर का खटका -झाड़ू करने लगा दिया है।
बाई साब !! मैं ,जब चौदह बरस की थी तब ,बाप ने एक हजार रुपये में इस मरद को बेच दिया था। तब ,से काम कर रही हूँ। अरे ! मैं ,बोल रही थी आज काम पर क्यों नहीं आई ? मैडम !! आप अख़बार में काम करती ,आप पता करना चाहती हम लोग कैसे रहते ,क्या खाते ,क्या झेलती ? इसके साथ आई तब ,सारे मर्द मुझे टच करते थे। मर्द से बोला काम पर नहीं जाना , बोला साथ रहेगी तो बचेगी ,घर पर नहीं। एक बार ठेकेदार का बेटा आया ,सबको दारू पिलाई ,तब से इसको नशा लग गया। रात भर जिस्मानी मंडी में मेरा बाजार लगने लगा। उसी ने घर सजाया है। आता है कभी -कभी। उसके बाप को सब पता है।
अब ,आप कहोगी कि काम क्यों करती ,तो मर्द निकम्मा है ,खांसता डोलता है ,किसी दिन निकल गया तब मैं ,क्या करुँगी ?अभी तो कपडे ,मिठाई ,देशी दारू मिल जाती है ,यही मेरे जिस्म की कमाई है। दिन भर तसला भर कर डालती रहूं और रात को शहजादे की अग्नि बुझाऊ ,नहीं कर सकती। मैं ,उसका चेहरा देखती रह गई। कोई शर्म नहीं ,कोई शिकवा शिकायत नहीं ,बस बेधड़क बोलती जा रही थी। मेरी उत्सुकता पल भर में ध्वस्त हो गई। उसे कोई मलाल नहीं।
सब कुछ बदलना भी चाहती है लेकिन खुश है अपनी जिंदगी से। मैं ,उठ गई उसके कंधे को पकड़ा तो ,मेरे गले लग गई। उसके घर से निकल गई। सोच रही थी ,मिटटी में रहने वाली ,पक्के घर बनाती है और अमीर लोगों का आमिष बनती है ,जाने कितनी शरबती अपने बच्चों को इस ठेके से निकाल पाएंगी।
रेनू शर्मा
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