सुबह का इंतजार
गाँव की उबड़ -खाबड़ पगडंडियों ,मेड़ों ,सकरी गलियों की गोबर भरी गंध से निकलकर ,शहर की चमचमाती सड़कों पर फर्राटे से साईकिल चलाना चाहता था। ऊँचे लेम्प पोस्ट के नीचे परीक्षा की तयारी करना चाहता था ,पर इस बार खेतों में पानी नहीं लग पाया। पिछली बार शहर चला गया तो धनीराम ने बम्बा का पानी काट लिया था। हमारे खेत दस दिन के लिए प्यासे रह गए थे। एक बरस पहले चाचा गांव आये थे ,बोल गए मथुरा आ जाना ,वहां दाखिला दिलवा देंगे।
मुझे पता है ,अगर मैं ,चाचा के पास गया तो सुबह से ही बोलेंगे -जा किशोरी !! मंदिर का चबूतरा साफ़ करदे , पुण्य लगेगा ,जा किशोरी !!ताजे फूलों की माला बनादे ,रंग जी महाराज कृपा करेंगे। जा किशोरी !! दुकान का टाला खोल दे वरना ग्राहक लौट जायेंगे। मैं ,नहीं चाहता गांव की मुश्किलों से निकलूं तो ,शहर में अटक जाऊँ।
चार महीने पहले आगरा वाले ताऊ आये थे ,बोल रहे थे कि यूर्निवर्सिटी घर के पास है ,पढता रहियो। लायब्रेरी का चपरासी उनकी पहचान का है तो ,किताबें भी मिल जावेंगी। पर अभी तो बारहवीं भी न हुआ मेरा। कुंए की मुंडेर लांघता हुआ सूरज चिल्लाता हुआ क्यों दौड़ रहा है ?आ गया ,आ गया क्या हुआ तोतले !! भैया तुम्हारा रिजल्ट आ गया ,नंबर देखो ,मथुरा से अखबार लाया हूँ ,पूरे पचास रूपया में मिलो है। दस रुपया दे देना ,पहले तुम देख लो फिर दूसरे मोहल्ले में दिखा दूंगा।
चल मिला नंबर ,भैया जे तीसरी डिवीजन में नाय ,दूसरी में देखूं ,हाँ चल पहली में देख ,भाई ये तो पहली में आई है। सुन रे !! दादा भइया पास है गयो। सुनहरी मुस्कान के साथ दाद्दु ने पोपला मुंह कुछ ठीक किया मानो शाम को गुड़ का शरबत तो मिलेगा ही। दादा !! पाँय लागूं ,अरे खुश रहो ,खूब पढ़ो -लिखो ,बाबू बनो। गांव के बुजुर्गों के अंतहीन आशीर्वाद मिलना शुरू हो गए। जो दोस्त हमेशा भैस चराते थे और बता देते थे कि भैंस क्या सोच रही है वे ,मुझे हीरो बनाकर ,कन्धों पर बिठाकर गांव की गलियों में घुमा रहे थे।देवी मैया के मंदिर पर छोड़कर बोले -आज तो मुंह मीठा करा ही दे।
अचानक मिली इस ख़ुशी से मैं ,हतप्रभ था। आगे क्या ? सोचकर परेशान भी था। बनवारी की दुकान से सात रूपये का आधा किलो गुड़ आ गया ,मैया के चरणों में मत्था टिका रहा था तभी बापू आ गए ,क्यों बे पट्ठे !! सुना है पास हो गया ,ये ले पैसे ,शहर जा ,सनीमा देख जो मन करे सो कर। तभी ठंडी हवा का एक झोंका माँ का अहसास करा गया। गांव का राजा बनकर दो दिन बाद आगरा चला गया। वो दिन था ,और आज का दिन कभी पढाई से जी नहीं चुराया ,सरकारी दफ्तर में बाबू हो गया। शहर आकर बच्चों को पढ़ाता भी था।
कभी जब दोस्तों के साथ चौराहे पर चाय पीने जाता ,तब ताजगी आती वरना व्यस्त ही रहता। दो साल बाद शीला मेरी जिंदगी में आई और विवाह की रस्में भी संपन्न हो गई। घर गांव का खर्चा निकालकर भी पैसे बचा लेती थी। दो बेटे देकर ,अचानक से मुझसे बिछुड़ गई। जाने क्यों अपनी जिंदगी के पन्ने उधेड़ रहा हूँ ? बड़ा बेटा राहुल दिल्ली में जॉब करता है ,बहु को साथ ले गया बाबा !! खाने की दिक्कत होती है। छोटा बेटा ,सामने पान की दुकान पर सिगरेट से छल्ले बना रहा है सामने नीम के पेड़ के नीचे बैंच पर बैठ गया हूँ मैं ,जानता हूँ देर रात फिल्म देखकर ,दहकते जिस्मों के पिघलते लावा की वाष्प सकते ये युवा ,विकृत मानसिकता को जन्म देते घर की कुण्डी खटका देंगे। कितनी बार समझा चुका हूँ बेटा !! पहले अपने पैरों के नीचे जमीन पक्की करले ,फिर कश और दम लगाते रहना। लोग भी वहीँ उंगली उठाते हैं जहाँ ,आधार कमजोर होती है।
पिछले हफ्ते रोहित को उसके दोस्त बाहर बरांडे में ही सुला गए थे। कुछ पूछो तो बोलता है ,मेरे दोस्त खर्च करते हैं ,आप क्यों दुखी होते हो। बाबा ! आप डॉक्टर के पास गए थे क्या हुआ ? कुछ नहीं ,सब ठीक है। रेंगता हुआ सा मैं ,हर दिन घर आकर सो रहता हूँ।
बच्चे नहीं जानते कि पिता किस हालातों से गुजर रहा है। दर्द अब बढ़ने लगा है डॉक्टर कह रहा था कि सैकिण्ड स्टेज पर है कैंसर। एकाकी घर में आत्म बल के साथ रह रहा हूँ। अभी रात का एक बजा था कि रोहित का दोस्त घंटी बजा रहा है ,अंकल !! एक्सीडेंट हुआ है ,आप हमारे साथ चलो ,अस्पताल में भर्ती है। मैं ,निशब्द और निष्प्राण सा हो गया ,अब क्या करूँ ? राहुल को फ़ोन करूँ ?क्या करूँ। पैसे उठाने लगा ,चलो मैं आता हूँ। नहीं ,हमारे साथ चलिए। हाथ -पैर में पट्टी बंधी है ,बेहोश पड़ा है ,डॉक्टर ने बताया ठीक हो जायेगा ,आप चिंता न करो। मुझे पता है नशेड़ी को दवा का असर नहीं होगा ,मैं ,कैंसर पेशेंट हूँ इतना कहते -कहते जवान लड़खड़ा गई ,बेटे की तरफ दौड़ गया। क्या करूँ ? राहुल तो शनिवार को आने का बोल रहा है।
बाहर एक टैक्सी वाला चिल्ला रहा था ,साब मेरे पैसे देकर जाओ ,मेरा कलेजा मुंह को आ रहा था। उसके दोस्त भूत से सारी रात मेरे सिर पर मंडराते रहे। अंकल ये कुछ पैसे आप रख लो ,हम माफ़ी चाहते हैं। प्लीज अब ,कुछ नहीं करेंगे हम लोग। मैं ,अधमरा सा उन लफंगों की बातों से तंग आ चुका था। मैं ,चीख पड़ा ,तुम लोग जाओ यहाँ से मुझे अकेला छोड़ दो। मैं ,कभी रोहित को देखता ,कभी ड्रिप को देखता। तभी ,रोहित का एक दोस्त देवाशीष हाथ में प्रसाद लिए खड़ा था ,अंकल थोड़ा ले लो। रोहित अच्छा होगा। मैंने ,उसका चेहरा देखा -आँखें सूज रहीं थीं। मैं ,अपने को रोक नहीं पाया ,रोहित का हाथ पकड़कर फफक पड़ा। बाकी दोस्त भी दौड़कर भीतर आ गए ,सभी मुझसे लिपट गए। अब ,मुझे लगा मैं ,अकेला नहीं हूँ।
मैं ,इन सभी को आवारा चिराग कहता था। आज इनकी संवेदना ,संस्कार देखकर मेरी सोच बदल गई । रोहित को दो दिन अस्पताल में ही रहना होगा। उम्मीद करता हूँ सभी बच्चे अपने घरों की तरफ मुड़ जायेंगे। सभी बच्चे मेरे कंधे से कन्धा जोड़कर डटे रहे ,मेरे खींजने पर भी भागे नहीं। राहुल को मना कर दिया है मत आना। अब ,मैं ,शांत बैठा सुबह का इन्तजार कर रहा हूँ।
रेनू शर्मा
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