पुनर्जन्म
आँगन के बीच बिछी चारपाई पर बैठीं दो बुजुर्ग औरतें ,अपने गुबार निकाल रही हैं। कई सालों बाद मिलीं हैं। जीजी मुझे याद है ,जब मां मुझसे नाराज होती थी तब ,तुम मेरे साथं बर्तन साफ़ करवाती थीं। मीरा दी हमेशा बर्तनों का ढेर निकालती रहती थीं। सती एक के बाद एक किस्से बिन्नो को सुना रही थी।तभी ,मुंडेर पर कौए ने कांव -कांव की ,जा सती रोटी का टुकड़ा दाल दे। जाने किसका संदेसा लेकर जाता होगा या हो सके लाता होगा। जा कागा तू भी कालिदास के मेघ जैसा है जाने कौन तेरी राह तकती होगी ?
सती चहकने लगी ,जीजी याद है एक बार विश्वा जी आने वाले थे ,माँ के पास गई और बोली शायद विश्वा जी आ रहे हैं ? रात होते आ भी गए ,माँ सोच रही थीं कि जाने क्या खाएंगे ? मैंने बता दिया उन्हें मसाले वाली अरबी पसंद हैं। अरे !! तुझे कैसे पता ?तू तो कभी उनके घर गई भी नहीं। माँ को पता था कि मेरा पुनर्जन्म हुआ है। पहले मैं मीरा दी की बहन थी जो अभी मेरे ताऊ की बेटी हैं। विश्वा जी मेरे पति थे। मुझसे इस बात को छुपाया जाता था। अरे !! नहीं तुम छोटी थीं न ,इसलिए।
तभी ,मौली वहां फुदकती हुई आई और जीजी की गोद बैठते हुए बोली - क्या बातें हो रहीं हैं मुझे भी बताओ। मैं तो ,बाण भट्ट की कादंबरी की महाश्वेता जैसी उलझी हुई हूँ ,नहीं पता क्या चल रहा है। जा ,पहले चाय पीला ,कुछ खाने को ला तब ,बात होगी। बिन्नो जी आपको याद होगा एक बार विशवा जी बनारस से लौटकर आये थे ,भैया उन्हें पान खिलाने ले गए थे ,तब मैंने उनकी पेटी खोली थी ,उसमें साडी और कुछ गिफ्ट थे ,मुझे लगा सब फाड़ दूँ। मीरा दी मेरे साथ थीं ,उन्होंने मुझे रोका। पागल ऐसा नहीं करते तुम अब ,नहीं हो उनके साथ।
जीजी !! आज भी विश्वा जी के साथ बिताये दिन मुझे याद आते हैं। सती !! तू अब तो अपने बेटे बहु के साथ रहती है तो खुश रह। क्यों दुखी होती है ?हाँ उनकी साली बनकर फिर से उनके सामने आ गई। विश्वा जी आज भी उस रिश्ते को निभाते हैं। इसीलिए आते रहते हैं। बिन्नो जीजी ,मुझे याद है सफ़ेद झक्क गाय आँगन के कौने में बंधी रहती थी। बालटी भर दूध मैं खुद ही निकाल लेती थी। कभी जब खेत पर कोई नहीं होता तो ,हम ट्यूबैल की मोटी धार के नीचे नहाते थे। बरोसी में औटता दूध लाल पड़ जाता था ,एक गिलास पीकर वापस आते थे। मुझे कुछ नहीं भूलता जीजी।जबकि लाल जी की कोई बात याद नहीं आती। ले चाय पीले ,क्यों अपना मन खट्टा करती है। हलुआ कुछ ज्यादा मीठा नहीं कर दिया ,हाँ थोड़ा है तो।
बिन्नो दी !! आपको याद है ,जब मुझे लेने आये थे ,माँ ने कहा था ,अभी थोड़े दिन रहने देते लाली को तो ,नाराज हो गए नहीं ,अभी जाना है। वरना मैं कभी नहीं आऊंगा लेने। माँ कितना घबरा गई थीं। तुरंत नाइ को बुलाया और मेरा डोला सजवा दिया और पाग बंधवा दिया। नाइन जब मेरे पैर में महावर लगा रही थी तब ,मेरा जी कांप रहा था ,न जाने कब इस घर में आने को मिलेगा। मैं ,बहुत देर तक माँ के सीने से लगी रोती रही। सती तू भी अजीब है ,एक ही घर में दो बार जनम लेकर आ गई।
बिन्नो दी अरबी की सब्जी आप बना देना ,कोफ्ते मैं बना लुंगी। फुलके जब खाएंगे तभी बना लेंगे। जब ,विश्वा जी के स्वर्गवास की खबर आई थी तब माँ बहुत दुखी हुई थीं। मेरा तो खाना बंद हो गया था। जब साथ थे तब ,मैं बिछड़ गई ,जब मिली तो हम दूर थे। एक कसक सी हमेशा चुभती थी। फिर बाबूजी मेरे लिए रिश्ते देखने लगे। लाल जी ऐसे हीरो मिले कि कभी खुद से अलग नहीं करना चाहते थे। तभी बैठक से आवाज आई सती चार चाय भिजवा दो।
बिन्नो दी भीतर चलो ,कम्बल ओढ़कर बैठते हैं। छोटी खाना यहीं ला देना। जीजी एक बार भरी जेठ की गर्मी में ,एक छत पर देवर सो रहे थे परिवार सहित ,एक पर मैं सो रही थी लाल जी को आने में रोज दस बजता था ,ससुर जी बहुत नाराज होते ,खेत कोई नहीं देखना चाहता। गुस्सा होकर मंदिर पर जाकर सो जाते ,लाल जी कुंए की मुंडेर पर चढ़कर छत पर आते और चुपचाप आकर सो जाते। चलो ,खाना खाते हैं तुम लोग चार घंटे से बातें बनाने में लगी हो ,ये नहीं कि पानी भी ले आएं। लाली रोटी कुरकुरी बनाना ,लाली देख घी ज्यादा लगाना। मुझे कुछ नहीं बतातीं।
जीजी ,अभी गर्भ में धड़कनें सुनी ही थीं कि लाल जी हमेशा के लिए छोड़कर चले गए। अचेतन सी हो गई। गांव छोड़कर माँ के पास आ गई ,पढाई की और जब नौकरी लगी तब ,वो भी ससुराल के पास। बेटा हुआ सुनकर सास ससुर बहुत खुश हुए लेकिन देवर को लगा हिस्सेदार आ गया। अरी !! लाली सुन -ये बर्तन ले जा ,बाहर रख देना कोई पूछे तो बोल देना दोनो दीदी सो गई। जीजी ,चलो पान खाने चलें ,दोनो बाहर निकल गई।
जीजी एक दिन मैं ,स्कूल जाने के लिए निकली तो विशवा जी के छोटे भाई मिल गए ,घर आने का निमंत्रण दिया। बहुत खुश हो गई थी। जब घर गई तो वहां ,पहले जैसा कुछ नहीं था। मैं ,बोल पड़ी -अरे !! यहाँ तो गाय बंधा करती थी ,सब जगह जानी पहचानी सी लगी। देर तक अपना कमरा खोजती रही लेकिन नहीं ढूंढ पाई क्योकि नया बन गया था। जीजी ,मरे ने कितनी सुपारी डाल दी है ,चूना भी ज्यादा लगा दिया है।
जीजी, ये विश्वा जी तो मेरा पीछा नहीं छोड़ रहे ,उनके छोटे भाई की पत्नी मेरे साथ ही पढाती है।अभी तो न विश्वा जी रहे ,और न लाल जी रहे फिर भी अनगिनत बातें दोनो मिलकर कर लेती हैं। जीजी अगर मैं ,किसी और घर में होती तो ,क्या करती। दोहरी जिंदगी जीते हुए मैं ,न आज की रही न कल की। सती ,अब सो जा। कल जाना है। हाँ ,जीजी अब जाने कब मिलना हो। सती ,थोड़ी ही देर में खर्राटे लेने लगी।
रेनू शर्मा
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