अपराजिता
महाशिवरात्रि हो ,रक्षाबंधन हो ,या होली का त्यौहार हो ,शारदा के लिए हर समय बसंत ही होता था। बाबूजी का तो याद नहीं कब ,इस दुनियां से चले गए ,हाँ माँ की याद है ,कभी माँ बनती ,कभी बाबूजी बन जाती। हर दिन नया खेल खेलती रहती। स्कूल का समय कब निकल गया ,ज्यादा पता नहीं चला। शारदा कॉलेज में दाखिला लेने गई तो ,पुरानी सहेलियां वहीँ मस्ती करते मिल गईं। नई फिल्म देखने जाना ,पार्टी करना ,रैगिंग करना सब आवारगी के काम चल रहे थे।
शारदा को पढाई का खर्चा भाई भेज देता है ,बाकी माँ से हथिया लेती है। एक गली पीछे उसकी सहेली नीलू रहती है। उसने कई बार समझाया है शालू पढाई पर ध्यान दे लेकिन शारदा ध्यान नहीं देती। नीलू अपने चाचा चची के पास रह कर पढ़ रही है ,जब दोनो फिल्म देखकर आतीं हैं तब ,शालू माँ के साथ काम करने लगती है ,जब ,माँ दिन भर के काम से थक कर बिस्तर पर जाती हैं तब ,शालू उन्हें कहानी सुनाती है। माँ ,शहरों की दुनिया हमारे जैसी नहीं है। पता है ,लड़कियां जॉब करती हैं ,पेंट शर्ट पहनती हैं। बाहर जाना पड़ता है। मुझे मत समझाओ कि क्या बदल गया है ,चुपचाप पढाई करो और जब बाबूजी बोलें शादी करनी है ,उसके बाद जो करना हो करो।
आज कौन सा सिनेमा देखा है ? आपको कैसे पता चला ? मुझे सब पता है ,तुम पढाई पर ध्यान दो ,नहीं तो भाई को बता दूंगी ,इसे पैसे मत दिया कर। माँ !! आप इतना जुल्म मत करो ,मुझे पता है लड़कियों को घर ही सँभालने पड़ते हैं। माँ सुबह उठकर काम पर लग जाती हैं ,शारदा कॉलेज के लिए तैयार हो रही है तभी नीलू का फ़ोन आता है आज भी कॉलेज नहीं जाउंगी। दुपट्टा खींचती हुई और एक पैर में चप्पल पहनती हुई शालू बोलती है माँ ,अभी आती हूँ ,नीलू के घर से। देवकी उसे जाते हुए देखती है ,बाल लम्बे होकर कमर तक लहरा गए हैं। अभी तो मैं देखती हूँ ,जब न रहूंगी तो ,कौन देखेगा ? माँ ,दो चोटी बना दो ,एक से सर दुखता है। देवकी गली तक शालू को जाते हुए देखती रही फिर अंदर आ गई।
शारदा उसे कॉलेज जाने को राजी कर लेती है ,तभी पता चला कि नीतू का रिश्ता तय हो गया है और अगले महीने शादी भी है। अरे !! तो मुझे बताती न ,पगली घर में घुस कर बैठी है। सरे दोस्तों को गांव आने का न्योता देकर नीतू छुट्टी पर चली गई ,अब एग्जाम के समय ही आएगी। शारदा को मानसिक रूप से अकेला पन महसूस होने लगा ,अब दोस्तों के साथ मस्ती कम हो रही थी।
बीए का रिजल्ट निकलते ही ,शारदा का रिश्ता भी तय हो गया। माँ ,शादी कार्डो लेकिन अभी पढूंगी और इसी बात को मानते हुए विवाह हो गया। ससुराल में काम करते हुए पढाई करना मुश्किल हो रहा था ,पति के नखरे देखना ,खाना बनाना ,कॉलेज जाना सब भारी हो रहा था। पति देव जरा ,विचित्र से प्राणी लगे ,उन्हें कोई बातें नहीं करनी होतीं बस घर में न दिखू तो सासुजी से पूछ लेंगे ,शारदा कहाँ है ? आज तो देव को समझा दिया है ,देखो जी माँ के घर कोई काम नहीं किया अब ,काम के साथ पढाई नहीं हो पा रही तो ,आप जब चाहो मेरे पास आना लेकिन मुझे घर जाने दो ,एक महीने के लिए।
सामान एक तरफ पटका और सोफे में धंस गई। माँ !! दो दिन तक सोना है ,फिर पढाई शुरू करुँगी ,मुझे कुछ मत कहना। ससुराल कैदखाना होती है माँ ,आपने कैसे किया सब ? पति घर से बाहर निकला नहीं कि शारदा क्या बना रही हो ? शारदा धोबी आया है ,शारदा चाय बना लो। बहु को घर का काम करने की मशीन समझते हैं। पढाई कर मैं जॉब भी करुँगी ,भाई की तरह एक महीने में नहीं ,हफ्ते में आया करुँगी आपके पास।
अब ,कॉलेज में देव आने लगे। पढाई बंक करो और कभी फिल्म ,कभी घूमना चलने लगा। किसी तरह बीएड भी हो गया। देव का तबादला हो गया वो दिल्ली चले गए। गर्भ में नन्ही जान को लिए शारदा इंटरव्यू देकर जयपुर के सरकारी स्कूल में पढ़ाने लगी। एक दिन पता चला कि देव का जॉब छूट गया है कुछ इन्क्वारी चल रही है। शारदा पूछती रह गई लेकिन कुछ पता नहीं चला। बच्चा होने के समय माँ के पास आ गई ,वहीँ बच्चे को छोड़कर जॉब पर चली गई।
अजीब सिरफिरा आदमी है ?पिता के न रहने पर ,गांव वाले घर पर रहने लगा। शुरू में उसकी माँ ,पैसे दे रही थी अब ,शारदा के पास आने लगा। बचपन की कहानियां ,फिल्म देखना ,मस्ती करना ,दोस्तों से बातें करना सब ,एक परीलोक जैसा बनकर रह गया। एक सीख हमेशा साथ रहती है कि कभी हार नहीं माननी है। कभी पराजित नहीं होना है। मेरी माँ का प्यार रग -रग में समाया है तो ,मां को अपने भीतर से मरने नहीं दूंगी। शारदा उदाहरण है कैसे परिस्थितियों को मोड़ा जा सकता है।
रेनू शर्मा
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