Tuesday, January 9, 2024

देर है ,अंधेर नहीं 

ईशवर के घर देर है ,अंधेर नहीं यह कहावत सच ही लगती है। अशोका जहाँ जाता वहां उसके दोस्तों की लाइन लगी रहती। चपरासी से लेकर अफसर तक साब को सलामी ठोकते थे। उसका मानना था बड़ी पोस्ट पर हो ,तो मौके का फायदा लो बस ,राजनीति  में मत पडो। 

रोज पार्टी देने ,लेने वालों का जमघट रहता था ,शराब के व्यापारी मुफ्त की पेटी  दे  जाते थे। कभी कोई होटल आबाद रहता था ,कभी घर तो ,कभी कोई फार्म हॉउस रंगीन हो जाता था। साब के साथ दो चार ,रसिया गायक ,नर्तक ,वादक सब रहते थे। 

दमयंती दो बच्चों के पालन में लगी रहती थी। कभी जब ,घर पर बिन बुलाये मेहमान आ धमकाते थे ,तब दमयंती खाना भी बनवाती थी ,ब्रज भाषा में ना जाने कितनी रसीली गा लियां भी खिलाती थी। जब ,मजमा उठ जाता तब ,दमयंती का रेडियो चालू हो जाता। अशोका जाकर सो जाता। दमयंती जब ,सनक जाती तब रात की वीरानियों में उसका कलेजा धधक जाता। सोते हुए अशोका को पहले तो कोसती ,फिर जी भरकर सुनाती तब ,जाकर बच्चों के पास सो रहती। कुछ बचा रहता तो ,सुबह उठते ही ,तुम्हारा मान रखती हूँ ,नौकर क्या सोचेंगे ? बच्चों का ख्याल रखती हूँ ,कभी किसी के सामने मुंह नहीं खोलती ,तुम मेरे ऊपर ही अफसरी दिखा रहे हो। क्या करूँ ? कहाँ जाऊँ ? कुछ समझ नहीं आता। 

बच्चे तो तुमसे बात ही नहीं करते ,तुम्हें तो पता भी नहीं बच्चे क्या पढ़ रहे हैं ?पूरा दिन कमरे में निकल जाता है ,साब का घर है ,मैडम को सब देख लेंगे ,पर साब तक ,किसी की नज़र नहीं जाएगी। कहने को साब बड़े संवेदनशील हैं। अंग्रेजी में किताबें लिख मारी हैं ,पर दोस्तों का जमावड़ा कहीं घर को बिखरा रहा है। दमयंती की अपनी दुनियां भी है जब ,ब्रजवासियों के बीच हंसी -ठहाका लगा लेती है तब ,एक दूसरी दुनियां उसे समेट लेती है। हर दूसरे दिन वही चलता है। 

औरत ही एक प्राणी है जो पति की हर बात को संभाल लेती है। छुट्टी वाला दिन साब का पहले से बुक रहता है। समय सीमा का बंधन भी नहीं ,सुबह से रात तक पिकनिक  चलती है। बेटी ने पढ़ाई की और नौकरी भी लग गई पर साब को पसंद नहीं आई। अचानक एक दिन साब की तबियत रात को खराब हो गई ,डॉक्टर ने बताया -अत्यधिक शराब खोरी से जान पर बन आई है ,किसी तरह पार्टी पर लगाम लग गई। लेकिन दोस्तों का झुण्ड पीछा ही  नहीं छोड़ रहा था। बेटी ,पुणे चली गई ,दूसरी बेटी भी दिल्ली चली गई। माँ की अनकही कहानी बेटी के दिल पर छ गई तो ,उसने विवाह करने से इंकार कर दिया। 

दमयंती एक साल बाद इंदौर चली गई ,घर बन गया लेकिन खुशियां तो बरसों पहले उजाड़ हो चुकी थीं। पिता अपनी जिंदगी जी रहा था ,माँ रातों को सुबक रही थी। विवाह की रस्मों से वादे ,साब बनकर भूल गए। जीवन की बखिया उधड़ गई ,औरत अपना वजूद तलासने कभी पति कभी बच्चों का सहारा लेती है लेकिन अंततः क्या मिलता है। अशोका का बूढ़ा शरीर ,शिथिल आत्मा ,पत्नी की विरक्ति ,बेटी का ब्रह्मचर्य ,उसे भीतर तक तोड़ रहा है। सच ही है ,देर है ,अंधेर नहीं। 





































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