Wednesday, January 10, 2024

सुहागरात 

आँगन में महिलाओं का मेला सा लगा है ,बाहर बरांडे में पुरुष अपनी चर्चाओं में व्यस्त हैं। बच्चे थके -मादे सोने की जिद कर रहे हैं। तभी बाहर गाड़ी का हॉर्न सुनाई देता है अरे !! सुनो -बहु आ गई ,अभी तक तो ,द्वार -चार की तैयारी नहीं हुई। क्या कर रहीं हैं ? ये औरतें ,इन पर कोई काम नहीं ,पंचायत ही ख़तम नहीं होती ,किसी बुजुर्ग ने सभी को फटकार लगा दी। महिलाएं बधाई गीत गाने लगीं- आज मोरे अंगना बधाई ,बजत है ---

कोई दरवाजे पर कलश रखती है ,कोई स्वस्तिक बनाती है ,कोई पूजा का थाल लिए खड़ी  है। एक भोली सी लड़की ,जो चूड़ीदार पजामा और कुरता पहने है ,दरवाजे पर अड़ जाती है ,बहु दरवाजे पर लाई  जाती है। बहु !! इधर से आओ ,जरा घूँघट नीचे रखो ,देखो -पहले सीधे तरफ पूजना ,यहाँ जल चढ़ाना है। बृद्ध महिला पति से बोली -बेटा तुहैं भी यही करना है दूल्हा भी उनके इशारों पर पूजा करता रहा। 

जैसे ही सीधा पैर अंदर रखा ,पतली सी दूल्हे की बहन सामने खड़ी हो गई ,भाभी शगुन दो तभी ,भीतर जा पाओगी। भाई बोला  चल हट ,जाने दे ,बाद में लेना ,नहीं भाई !! आज तो हिसाब ,अभी होगा ,दादी का चेहरा मुस्कराने लगा ,बहु ने पांच सौ का नोट  निकाला ,छोरी को पकड़ा दिया ,लड़की चली गई। 

एक महिला बहु को भीतर कमरे तक ले गई ,तुम यहाँ आराम करो ,बाथरूम इधर है ,अगर जाना हो तो ,कोई ठहाके लगा रहा है ,कोई जोक सुना रहा है ,कोई चाय के लिए बोल रहा है ,कुल मिलाकर घर्र -घेंच मची है। इन्हीं फुर्सतियों के बीच दूल्हा बैठा ,सुलग रहा है ,मैं भी तो थका हूँ ,मुझे भी आराम करना है। 

बहु अभी पीहर का मोह भुला नहीं पाई है ,लम्बी साँस खींच लेती है। रस्मों -रिवाज करते हुए सबके पास होकर भी ,कहीं से दूर हो रही है। तभी एक महिला आई ,चलो बहु !! कंगन खुलवा लो ,आज अच्छा दिन है। बहु ,सिमटी दुबकी  सी आँगन में बिछी दरी पर बैठ गई। वहीँ दूल्हा बैठ जाता है दौनों पास बैठे हैं ,यही सोचकर बहु खुश है। 

एक बड़े बर्तन में दूध मिलाकर पानी डालकर ,उनके पास रखकर ,दौनों के कंगन { धागे के पवित्र साक्ष्य } और एक अंगूठी बर्तन में डालकर घुमा देते हैं। दौनों को अंगूठी खोजनी है ,जो पहले खोजेगा ,वही विजेता होगा जीवन का भी। ऐसा माना जाता है कोई सत्य नहीं है। बहु अंगूठी खोज लेती है ,यही दूल्हे का पहला प्यार था। ऐसा बहु ने समझा। सब कुछ ,हँसते हुए निबट गया ,शाम के खाने की तैयारी होने लगी। 

बहु ! अंततः अपने कमरे में गई ,साड़ी बदलकर सलवार कुरता पहन लिया ,खाना भी वहीँ खा लिया ,क्या खाया याद नहीं। तकिये के किनारे से सर रखा और सिकुड़कर गठरी सी बन गई। माँ ,क्या कर रही होगी ? बहनें बिखरे घर को समेट रही होंगीं। यही सोचते हुए नींद आ गई। कोई महिला आई और चादर दे गई ,कोई एक बजा होगा ,दूल्हा अभी भीतर नहीं आया था ,बहु को लगा बाहर सो गया होगा ,किससे  पूछे ?देर रात किसी ने भीतर आकर कुण्डी लगाई ,बिस्तर की खाली जगह पर कब्ज़ा किया और बहु के जागने की राह ताकने लगा। बहु ,चुप पड़ी रही ,देखूं क्या बोलता है ? सोच रहा था लम्बा घूँघट डालकर बैठी होगी ,ये तो ,सोई है। जेब से अंगूठी निकाली और बहु का हाथ पकड़कर पहना दी। बहु भी कम न थी ,सोने की चेन दूल्हे को पहना दी ,ये पत्नी का पहला प्यार था। 

अभी दौनों के बीच उधेड़ -बुन चल ही रही थी कि बहु बोली -आपने मेरे खत का जवाब नहीं दिया ,अरे !!पगली ये बातें अभी नहीं ,बहु को अपने सीने से लगा लिया ,कुछ पल के लिए कमरे में निश्तब्धता सी छा गई। बहु पुराने गाने जो विवाह पूर्व गाती  थी ,गुनगुनाने लगी। दूल्हा भी कम न था ,जितने गाने याद थे ,सब दुल्हिन को सुना दिए। खिड़की से दिखने वाला चाँद अब गायब था ,बाहर से खटपट की आवाजें आ रहीं थीं। इस रास -लीला में रात  निकल गई। 

दूसरा दिन रसोई पूजन में निकल गया ,बहु अब कुछ हिल -मिल गई थी। दूसरी रात दूल्हे से दोस्ती परवान चढ़ गई। दूल्हे से पति बना पति अब ,पत्नी से लम्बी बातें और वादे कर रहा था। साथ मरना और साथ जीना है। तुम्हीं से दिन होगा और  रात होगी।  मेरी संगिनी तुम्ही हो और न जाने क्या -क्या। पहली रात का नशा ,दूसरी रात को चढ़ गया। अल्हड ,नादान पत्नी गृहस्त की उठा -पटक को समझे बिना ही जीवन पर्यन्त के लिए समर्पित हो गई। खुद से ही वादा कर बैठी ,कभी साथ नहीं छोडूंगी। 

हौले -हौले जीवन पटरी पर चलने लगा ,हर दिन और रात सुहागरात की तरह संगीत बनकर महकने लगे। खुद से किये वायदे पत्नी के जहन पर ,गोदने जैसे गुद गए। स्वप्न में भी ,विश्वासघात ,झूंठ ,धोखा ,फरेब जैसे शब्द उसे उलझा नहीं सकते। सुहागरात के तारों  भरी रात ,चाँद के सामने कसमें खाना तुम कैसे भूले ? मैं ,आज भी खरी हूँ ,तुम कहाँ हो ?








































































 

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