Wednesday, January 10, 2024

अदृश्य गुनाहों की कोठरी 

किसनी जब छोटी थी तब ,सुबह से लेकर रात तक काम में लगी रहती थी। सुबह स्कूल जाना ,चाय बनाना ,झाड़ू लगाना ,बिस्तर ठीक करना ,स्कूल से लौटकर फिर से खाना बनाना ,कभी बर्तन साफ़ करना। वो तो गनीमत थी कि लालो उसके साथ काम करती थी। चल ,किसनी जल्दी काम कर फिर पढ़नों है ,माँ ,बाबा ने कभी न सोचा कि छोरी को पढ़ना भी है। किसनी चाय बना ले ,किसनी पकोड़ा बना ले ,किसनी आज पूआ बना ले ,किसनी ग्वार की फली के संग आज भिंडी भी डाल दीयो। माँ बहु ,के सामने हुकुम चलाइयो तब ,पतों चलेगो। जा ,काम कर। मोह मत जोरे। माँ ,सुना देती थी। 

ऐसा भी नहीं था कि माँ ने काम नहीं किया ,पर उनको लगता था कि बेटियों को सब आना चाहिए। घर कौ एक छोरा है कान्हा ,बाते कछु नाय कहें ,किसनी उसको भी कानों बोल देती है। दोनो लड़ने लगते हैं ,माँ हमें समझती हैं। किसनी जब बी. ए में आई तभी ते ,छोरा देखे जाबे लगे। बाबा के दोस्त तिवारी ने एक छोरा बताया ,भाई !! बड़ो घर -खानदान है ,बड़ो परिवार है ,बाप बड़े अधिकारी हैं ,गांव में खेत -खलहान है और का चाहिए। छोरा लम्बो -चौड़ा है ,वकील है। किसनी बोली -इनके घरे सब बड़ो है ,कछु छोटो नाय ?चुपकर किसनी ,तू भीतर जा। 

हमें तो राजी है ,मिलवे को दिन तय करलो ,लड़का देख ले ,हम तो हाँ कर रहे ,माँ अपनी राय दे रहीं थीं। लालो सब सुन रही थी। किसनी को बताया -बहन !! आज तो कहूं हीरा लाल देख लिए ,ब्याह की बात है रही है। किसनी कुछ अचम्भित हुई ,माँ खाने का मुझसे बनवाती है ,का बनेगो ? ये बना ,वो बना। आज दूल्हा की बात चली तो किसनी से कछु ना बात करी। लालो ठीक बता मेरी बार करी  थी या काई और की। तू ही तो है ,सांड सी ,लम्बी चौड़ी। अभी रुक। पहले तोई है देख लूँ। अब ,अइयो  चाय पीबे ,लालो भाग जाती है। 

जे चुहल चल ही रही थी कि कानों आ गया ,आज तो कोई छोरी हमारे घर ते भगायवे की बात है रही है। तू ही तो नाय ,किसनी ? हाँ तोय तो ,पतों चलेगो जब मैं सच में ,चली जाउंगी। यहाँ तो कद्दूकस सी लगी रहती हूँ तो ,कछु मोल नाय। काने !! तोय तो मैं देखूंगी जब ,पनफते लीलवे कूं आवेगो। माँ ,सब सुन रही थी। किसनी को बुलाया -लाली !! परसों चलेंगे मंदिर। अपने कपडा देख लीयो। छोरा की माँ ,दादी ,बाबा सब आवेंगे। माँ !! अभी तो मेरे एग्जाम होने हैं ,पहले पूछ लेती न। अरे ! तोते का पुछबो ? बाबा ने कह दई ,तो हाँ है। 

किसनी भीतर जाकर देर तक रोती रही ,जीजी को तो देर में करो ,मोय ते ही दुश्मनी है। कान्हा थोड़ी देर बाद किसनी के पास आया और बोला पगली रोती क्यों है ? मैं ,दिलवाऊंगा तेरे एग्जाम ,आया करूँगा तेरे पास ,रोटी तो खिलाएगी कि नाय। अभी तो हाँ कर ,कान्हा तू जा अभी ,मेरो सिर मत खा। नौक -झौंक करते शादी के दिन आ गए ,घने लम्बे बालों में किसनी ने जूड़ा बनाकर ,फूल लगाए और सिल्क की साड़ी पहनी तो ,किसी परी से कम नहीं लग रही थी। सास ने झट से अंगूठी पहना दी ,उन्होंने भी छोरा ते नाय पूँछी। फिर सास बोली -बेटा !! खाना बनाना आता है ? माँ ,ने बताया सब जानती है हमारी किसना। शगुन का आदान -प्रदान होते ही रिश्ता तय हो गया। 

एग्जाम के बाद शादी का धूम -धड़ाका शुरू हो गया ,आइली -भायली कौने -कुचारे में छिपकर बातें बनाती थीं। रात भर मस्ती चलती थी। माँ ,मेहमानों को देख रही थी ,बाबा बाहर का काम संभाल रहे थे। कानों तो मस्त हतो ,शाम ते गीतन वारी आ जातीं हैं ,उनके बधाई ,बरनी ,घोड़ी ,खेल के ,भजन देवता सब रात बारह बजे तक उधम चलता है। किसनी ने मन बना लिया एक दिन तो ,यह सब होना ही था। लालो दुखी है ,अकेली पड़ जाएगी। 

किसनी ससुराल चली गई ,पति दोस्तों के साथ आधी रात बिताकर घर में घुसा ,आकर सो गया। ये सुहागरात थी। सास माँ से थोड़ी अच्छी थी ,ससुर बाबा से थोड़े कड़क। शादी की भीड़ में सब अच्छा था ,किसनी जब दूसरी बार विदा होकर गई ,तब परीक्षा ख़तम करके ही गई। एम्ए हो गया। दूसरे बरस में एक बेटा भी हो गया ,सब खुश थे। 

माँ ,यदा -कदा किसनी को बुला लिया करती थी ,कान्हा का ब्याह भी रूपवती कानी से हो गया। उसने आकर माँ का चौका  लिया ,लालो भी अपने घर चली गई ,एक किसान परिवार में जाकर वो खुश थी। अचानक किसनी की सास को हार्ट अटैक आया वो स्वर्ग सिधार गईं ,अभी दस दिन भी न बीते थे किसनी के ससुर भी चले गए। दो महीना तक किसनी को कुछ पता नहीं ,कौन आया ,कौन गया। सरकारी घर छोड़कर दूसरी जगह चली गई। अब ,अन्ना को समझ आया कि परिवार मेहनत करने से चलता है। किसनी ने एक ऑफिस में काम करना शुरू किया ,बेटे को पढ़ाया। अन्ना ! हर दिन झगड़ा करने लगा ,दोस्तों के साथ शराब पीना आदत बन गई। किसनी को परेशान करने लगा तो ,किसनी बेटे के साथ अलग रहने लगी। 

लालो ! किसनी से मिलने आती तो ,थैला भरकर साग -सब्जी ,घी ,तेल जो उससे बनता सब ले आती। किसी तरह बेटा ,इंजीनियरिंग पास हुआ ,पुणे में जॉब करने लगा। माँ ! किसनी की बहुत सहायता करती थी ,जब -तब पैसे भिजवा देती थी। बाबा कहते रह जाते पर कान्हा ,कभी नहीं सुनता। कुछ दिनों में माँ -बाबा भी इस दुनिया को विदा कह गए। किसनी अकेली रह गई। जितनी दवंग थी किसनी उतनी ,कच्ची मिटटी की दीवार सी हो गई। 

विवाह के बाद से किसनी अदृश्य गुनाहों की पोटरी उठाये घूम रही थी। अन्ना ,कभी काम करता ,कभी घर में पड़ा रहता। कोई देखने वाला न था। किसनी ने जाने कितनी बार घर की दीवारों को अपनी व्यथा सुनाई होगी ,पर क्या हुआ ? अब ,बेटे के पास पुणे जा रही है। काम छोड़ दिया क्योकि बीमार रहने लगी है। शायद अब ,कुछ आराम कर सके। 







































































 

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