शिक्षा दान
सावित्री अभी बाजार से सामान लाकर घर में घुसी ही थी कि देवी ने कहा -माँ ,आपने शिक्षा दान का नाम सुना है ,हाँ जा पहले ,चाय बनाकर ला ,फिर सुनती हूँ। तभी राहुल बोला -माँ दीदी जरूर आपसे कुछ मांगेगी ,देख लेना। चाय लेकर देवी आ गई। माँ !! मेरी एक दोस्त है शिवानी ,उसकी माँ पास वाली झुग्गी में जो स्कूल है ,वहां प्रिंसिपल हैं। वे कह रहीं थीं कि हम उनके बच्चों को खाली समय में अंग्रेजी पढ़ा दिया करें। वहां चौकीदार भी है ,एक कमरा खुलवा देंगी। राहुल मैथ्स पढ़ा देगा।
देवी जी ,चार बजे तक तो ,क्लास ही चलती हैं। हाँ , उसकी माँ बच्चों से बात कर लेंगी। जो बच्चे पढ़ना चाहेंगे वे अवश्य रुक जायेंगे। माँ ,यही शिक्षा दान होता है। शाम को बच्चे आ गए ,सावित्री ने कहा -अगर जरुरत पड़े तो कितने बच्चे झुग्गियों में जाकर गरीब बच्चों को पढ़ा सकते हो। चार हाथ उठ गए थे। सावित्री ने शर्मा जी से बात की ,क्या वे अपना खाली गैरेज बच्चों को दे सकते हैं ? उनके हाँ बोलते ही तैयारी शुरू हो गईं। एक बड़ी दरी बिछा दी गई ,बोर्ड लग गया। जो बच्चे पढ़ना चाहते थे उनके माता -पिता से आज्ञा ली गई ,दूसरे शाम से पढाई शुरू हो गई। कभी कोई ,कभी कोई बच्चा क्लास लेने लगा जिससे उनकी पढ़ाईमें भी खलल न आये। अथक परिश्रम रंग लाया इस बार बच्चे अच्छे नम्बरों से पास हुए थे। बच्चे अधिक संख्या में आने लगे तो ,शनिवार रविवार को अधिक समय पढ़ाया जाने लगा।
बच्चों को समाज के प्रति जिम्मेदार नागरिक की भूमिका समझ आ रही थी। सावित्री उस मोहल्ले की जानी -मानी मौसी बन गईं थीं।
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