मैं , रति कहने को तो , मदन की पत्नी हूँ पर पौराणिक मदन की नहीं ,उससे थोड़ी कम सुन्दर। इसीलिए दादी ने नाम दिया था ,हमारी लाली का रति ते कम है। पूरे खानदान मै रति का नाम मशहूर हो गया। पड़ौस की पुष्पा ने अपनी बेटी का नाम भी रति रख लिया ,दादी को यह सब नागवार गुजरा ,लड़ने चली गईं। बहु ,का बाबरी है गई है जो रति नाम रख लियो और कछु नाय मिलो ,ख़बरदार जो हमारी लाली को नाम ख़राब करो तो ,बाके नाक -नक्श देखो पारी सी लगे है घंटे भर तक दादी लड़ती रही। थक कर दादी वापस आ जाती। पुष्पा पीड़ा डाल देती ,दादी !! बैठो ,गुस्सा न करो ,हम नाम बदल देंगे ,चाय बनाऊं ,पर दादी कुछ न सुनती।
लौटकर देखती रति झूले में अपने ही हाथों से खेल रही है ,दादी ख़ुशी से निहारती ,लाली !! जेई घर मिलो हतो आबेकुं ,चलो माँ के पास जाओ ,ओ ,विद्या लाली को ले जा और मैं माँ के पास आ जाती ,माँ ,कुछ खिलाती -पिलाती फिर से काम पर लग जाती। मैं ,शायद बैठने लगी थी माँ कभी दलीय ,कभी खिचड़ी खिलाती थीं, कभी दूध रोटी भी खिलाती थीं। दादी की रति गोल -मटोल हो चली थी। भाई पढ़ने जाता था ,खेलता था एक सुधा दी आती थी जो मेरे साथ खेलती थी
मैं जब भी ,स्वयं को देखती अकेला ही पाती ,अब झूला हट गया था ,कड़ी हो जाती थी ,चलने की कोशिश करती थी ,सुधा दी हंसती थी। सुधा दी अब ,मेरे सारे काम करवाती थीं। रति अब स्कूल जाने लगी है सुधा पढ़ाती भी है। माँ ,काम में व्यस्त रहती है ,दादी सोचती है कि बहु तो काम के लिए होती है। रति घर और स्कूल में तालमेल बिठा रही है। अब उसकी सहेलियां भी हैं लेकिन घर में माँ और सुधा दी। सुधा पड़ोस वाली ताई की बेटी है ,माँ के पास कढ़ाई -सिलाई सीखने आती रहती है ,माँ के छोटे -मोटे काम कर देती है। सबसे बड़ा काम रति को देखना है। दादी के काम जैसे ,लाली हुक्का भर ला ,बीड़ी जला ला ,पानी देदे। सुधा अपने घर से ज्यादा चाची के साथ रहती है। बाबा को रति कम पहचानती है ,अब ,बड़ी हुई तब समझ आया ये बाबा हैं।
रति बारहवीं क्लास में आ गई है ,एन ,सी ,सी कैम्प में जाती है। पूरे दिन खेलती -कूदती रहती है ,शाम को थक कर सो जाती है ,भाई झगड़ता है इसलिए अलग खटिया पर सोती है। माँ ,हर समय कुछ न कुछ करती ही रहती है। रति का दम -ख़म दिखाई दे रहा है। खेल में आगे ,पढ़ाई में आगे रहती है ,डरना तो सीखा ही नहीं।लेकिन आगे क्या करना है कोई बताने वाला नहीं ,माँ का जिम्मा तो बस बेटी का ब्याह हो जाये यही पता चलता है ,दादी और बाबा भी कम नहीं ,मदन से रिश्ता करने के बाद सब बड़े खुश हैं। रति क्या चाहती है किसी ने नहीं जाना ,आगे पढ़ना या नौकरी का तो सवाल ही नहीं उठता ,रति मानो समझौता करके जी रही है। दादी जो बचपन में रति के लिए झगड़ती थी ,शादी के पीछे पड़ गई। दो साल बाद एक बेटा आ गया ,उसको सँभालने में रति लग गई ,मदन के ऑफिस जाने पर रति वही सब कर रही थी जो उसकी माँ ,किया करती थी।
माँ और रति के जीवन में क्या अंतर था ,रति थोड़ा पढ़ ली थी बस ,इसी तरह पति और बच्चे को देखते हुए पच्चीस बरस निकल गए ,मणि अब ,नौकरी करने लगा है , मदन अब इस दुनिया में नहीं रहे ,दादी भी चली गई। मणि ने अपने पास बुला लिया है लेकिन ऑफिस जाने के बाद तो रति फिर अकेली ही है। कितना भी प्रयास करलो एकल जीवन में कोई सहारा नहीं रहता ,सुधा कबकी पीछे छूट गई , माँ बाबा ,बिछुड़ गए ,मणि की दुनिया बिलकुल अलग है ,यहाँ मैं फिट नहीं बैठती ,शायद एकांत भीतर घुस चूका है। अब ,सोचती हूँ घर वापस चलूँ ,शायद मेरी नियति यही है।
रेनू शर्मा
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