घर की चाहरदीवारी अब ,काटने लगी है। लॉक डाउन को महीना बीत गया। तीन सदस्य तीन कमरे ,हर कमरे में ख़ामोशी। सुबह से रात ग्यारह बजे तक काम की चिकचिक ,फिर नींद न आने की कहानी। सब तरफ अजीब सी ,हवा बह रही है। किसी को जुखाम भी हुआ तो ,कोविड का भरम होने लगता है। दीपा इस कदर भयभीत हो गई है कि फ़ोन की घंटी बजने पर कान खड़े हो जाते हैं अब ,कौन ?
रात के सन्नाटे में बेबजह की चिंताएं घेर लेतीं हैं। बेटा ,रात में पढता है तब ,उसका हाथ पकड़कर सो रहती है। माँ ,अपने कमरे में जाओ न। अच्छा ,अब कोरोना सता रहा है ,जब माँ खाना खिलाती है तब कुछ नहीं। कितनी फालतू बात पर बहस कर दीपा चली जाती है। लगता है अब ,डिप्रैशन होने लगा है। दीपा पहले से ही पौधों से बात करती है ,कभी बर्तनों पर गुस्सा निकालती है ,कभी दरवाजे और दीवारों से भी बात कर लेती है। दीपा का लॉक डाउन तो जाने कबसे चल रहा है। उसे लगता है प्राण जिसमें भी हैं वे सब ,देख सुन सकते हैं।
बाहर की दुनियां जीते जी लोगों को मार रही है , एक राज्य से दूसरे राज्य में लोग परिवार सहित पैदल जा रहे हैं। पानी है न खाना है , बच्चों को अलग सर पर बिठाये हैं। आज समझ आया गांव ही अपना घर है ,वहीँ खाना है ,चैन की नींद है। शहर की चकाचौंद ,मॉल ,फिल्म सबको आकर्षित करता है ,पर जब आफत आई तब ,समझे अपने बाप -दादा अपने ही होते हैं। दीपा को लगता है ये प्रकृति का विसर्जन चक्र चल रहा है , कुछ भी आपदाएं आ सकती हैं , बस संभलकर रहना होगा।
दीपा तो न्यूज़ देखकर ही परेशान हो जाती है , क्यों रेल पटरी नहीं दिखी ,वहीँ सोना था। पुलिसिया थानों की तरह सरकारें काम कर रहीं हैं। हजारों लोगों ने रोटी के लिए तरसते लोगों को सहारा दिया। इंसानियत क्या होती है ? युवा लोगों ने सभी को बताया। दीपा पति के साथ ही बाहर जाती है ,ये क्यों छुआ ? मास्क लगाओ ,घर आ गए तो ,मुंह -हाथ धोओ। उसे लगता है मैं ,बचाकर ले आउंगी। लॉक डाउन के यही साइड इफैक्ट हैं। लोग झक्की से हो गए हैं। घर में रहकर ऊब गए हैं। शाम को थोड़ा प्रणायाम कर लेते हैं तब सब ,ठीक है। एक बार झगड़ा तो पक्का है। विज्ञान ने टेक्नोलॉजी दे रखी है तो जो दूर हैं उनसे बात हो जाती है।
कोविड ने दुनियां को दुनियां दारी सिखा दी।
रेनू शर्मा
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