Wednesday, February 22, 2023

एक रात की सुबह

एक रात मैं ,

बेकरारी और विकार 

के आलम में ,

जकड गई ,न 

नींद आई ,न ख्वाबों ने 

दस्तक दी। 

अलसाई सी ,सुबह आई 

तो ,नई मुसीबत गले पड़ गई। 

राष्ट्र के नाम सन्देश था ,

कोविड  आया है ,कोई 

भीतर -बाहर न होगा। 

आज पता चला ,

दादी जिसे हउआ कहती थी ,

वो ,दीखता नहीं बस ,

वार करता है। 

कहीं ,बिछुड़ गए कहीं 

मिल गए ,कहीं 

श्वांस को निश्वांस कर गए। 

कहीं भरोसा टूटा ,

विश्वास घात हुआ ,

शब्दों की भीनी चादर से 

अपनों को ,छुपाया गया। 

कहीं जान बचाने की जुगत में 

जान दिए जा रहे थे। 

मृत देह का बहिस्कार ,

बुजुर्गों का तिरस्कार हो गया। 

रोज ,अपनों को गिनती हूँ ,

ये कैसा मंजर है ,

हर रात लम्बी हो रही है। 

रेनू शर्मा 

































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