बेटियां ही एक दिन
नारी ,बनती हैं ,
नारी यानि जो
नार धारण करे ,
जो नार से जीवन
दान करे ,
चाहे नर हो या मादा ,
मादा यानि जो मान दे।
जिसमें सहने की ऊर्जा हो।
फिर क्यों ?
बेइन्तहाँ ,बेहिसाब
परीक्षाओं से ,बेटियों को ही
गुजरना पड़ता है।
कभी , तिरस्कार कभी ,
अपमान ,कभी आत्मभंजन
भावाभिव्यक्ति ,
बेटी को ही ,
अहसास कराते हैं ,
पिता हो या माँ
आत्मा को आत्मा से
विभाजित करते हैं।
बेटा ,मृत कर्म करेगा
स्वर्ग मिलेगा ,वंश
पदचिन्ह छोड़ेगा।
बेटी , जब तक ,साथ है ,
तथाकथित घर का
मान -सम्मान धरोहर सा
सम्भालो ,अपने अरमान
खुशियां ,जवानी सब
पीहर की देहरी पर ,
समर्पित कर दो ,
कर्मों का फल ,
पति और बेटे से भोगती रहो।
बेटी के पास न तो ,
पति ,न बेटा ,न घर -परिवार
और न सखी -सहेली।
ऐसी जन्मजात योगिनी !!
किसी रहस्य्मय लोक में ,
निर्विकार स्वकार ले ,निशब्द
नृत्यानन्द करती होगी।
रेनू शर्मा
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