Wednesday, February 22, 2023

तैयारी

कुनिका अब,पहले से ज्यादा बूढी सास हो गई है ,पहले तो तखत पर बैठी सपने बुना करती थी। सिलाई ,कढ़ाई ,बुनाई से सबको अपना दीवाना बना दिया था। कल्लू की अम्मा कहती थी जा छाया की सास पै कछु काम -धाम तो है नाय ,बैठी -बैठी कसीदा फोड़ती रहती है। गाय -भैंस को काम करे ,चौका -बासन करे ,रोटी पाए तब पतों चले ,काम का होतु है। छाया हंसती हुई भीतर चली गई।  

कुनिका हमेशा से ऐसी नहीं थी ,तीन बच्चे हुए ,कभी नहीं देखा पहले बच्चे ने ब्रश किया या नहीं ,दूसरे ने नहाया या नहीं ,तीसरा स्कूल गया या नहीं। टीक  दोपहरी में बाल्टी भरकर पानी धूप में रख देती थी ,उसी से तीनों बच्चे नहला देती थी। सुबह उठकर खाना बनाओ ,बर्तन साफ़ करो बस हो गया ,दिनभर किताब पढ़ो ,सो लो ,जब मन हो कपडे धो लो ,नहीं तो पड़े रहने दो। चाय पानी का कोई झंझट नहीं। दो बार खाना बनाया जाता है। 

छाया अलग घर से आई है तो ,बच्चों को स्वाद वाली चीजें बनाकर खिलाती रहती है। कभी मटर -पनीर तो कभी कोफ्ता ,कभी मलाई -पनीर तो कभी कढ़ाई पनीर। कुनिका का चौका नहीं जहाँ पतरी  सी दार ,लौकी ,आलू ,तोरैया ,कद्दू के अलावा कोई खाना जानता ही नहीं। जब बच्चे बढे हुए तब ,कचोड़ी , पूए ,खीर सब बनने लगा। छाया का घर हर समय बिखरा रहता कोई व्यवस्था नहीं ,बस चट्ट -पना करने से तो बात न बनती। पहले जैसा नहीं कि तेल ,नमक से काम चल जाय। कुनिका के चूल्हे पर रोटी का टुकड़ा रोज लगा रहता था। अग्नि देव रोज आते थे भोग लगाने। आज तो गाय की रोटी बड़ी मुश्किल से निकलती है। 

छाया ने पंडित को फ़ोन लगाकर सास के बचे समय  गणित लगाया। उसे लगा अब ,अंत समय आ ही गया है। दान -पुण्य का काम शुरू कर दिया गया ,कुनिका सोच में डूब गई ये क्या चल रहा है ? सास ने छाया से मना कर दिया अभी न जा रही , मौत कोई ऐसा अतिथि नहीं जिसे निमंत्रण देकर बुला लिया जायेगा। जब आना होगी ,तभी आएगी। कुनिका दिन पर दिन अस्वस्थ होती गई। छाया चाहती है सास को मुक्ति मिले ,सास चाहती है अभी और जीलूँ। तैयारी किसका साथ देगी ये तो बक्त बताएगा। 

रेनू शर्मा 

























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