Monday, February 20, 2023

उसकी पाती माँ के नाम

अंजली पिछले एक बरस से फड़फड़ा रही है ,कहती है रिया सुन -माँ ने कहा मैं ,उनसे मिलने आऊं ,तो जा न ,क्या प्रॉब्लम है ? हाँ ,कुछ नहीं लेकिन स्कूल से लौटकर थक जाती हूँ , फिर घर का काम भी देखना पड़ता है। मैं ,सोच रही हूँ उन्हें फोन लगा लूँ , हां ,लगा न। तुम सोच नहीं सकती रिया मैं पूरी तरह से स्कूल की होगई हूँ। इतना काम रहता है कि क्या बताऊँ ? कोई बात नहीं कल कर लेना ,हाँ लेकिन वो कल पता नहीं कब आएगा। 

अंजली माँ को फोन लगाते समय डर जाती थी कहीं माँ ,नाराज तो नहीं हैं। अब ,याद आई है तुझे ,लेकिन नई उमंग ,नई ऊर्जा से भरी माँ ,हमेशा उसके दर्द को आवाज से ही समझ जातीं थीं। अरे ! तू चिंता न किया कर मैं ,ठीक हूँ ,सुन अंजू ! बाजार जाओ तो मेरे लिए रेशमी धागों का डिब्बा ले आना ,सुई भी लाना और छोटी -छोटी हजार चीजें उनकी लिस्ट में समां जातीं। अंजू अपनी व्यथा -काठ वहीँ भूल जाती ,माँ का सामान पहली फुर्सत में लेने निकल जाती। फिर सोचती देने कब जा पाऊँगी ?माँ ,के शौक अलग से थे ,कभी सिलाई करना ,कभी बुनाई करना ,कभी कढ़ाई करना ,कभी डायरी लिखना। अंजू ,आएगी तो ये ,मॅगाना है। अंजू अपने परिवार के साथ सामंजस्य बनाने में जुगत लगाती रहती है। 

रिया ,ठलुआ समय निकालती है ,कभी कुछ लिख लिया तो पहली श्रोता अंजू होती है ,कभी कुछ पढ़ लिया ,कभी घूमने चली गई। अंजू भी कम नहीं है ,एक पल भी व्यर्थ नहीं जाने देती। लिखती है ,पढ़ती है ,पढ़ाती है ,घर और बच्चे देखती है  ,माँ का सामान लाकर देती है। अंजू ,रिया को फ़ोन करती है -सुन ! माँ की तबियत ठीक नहीं है ,क्या करूँ ,कुछ समझ नहीं आ रहा ,दहाड़ मारकर रोना चालू कर देती है। यार !! माँ को कुछ हो गया तो क्या होगा ? माँ सब जानती हैं ,मुझे देखकर सब जान जाती हैं। भाई बुरा नहीं बस ,उनसे पटती नहीं। थोड़ा -थोड़ा जोड़तीं हैं और मेरी झोली में उड़ेल देती हैं। माँ का दिया एक -एक पैसा बुरे वख्त में काम आया है। माँ ,यूँ ही माँ नहीं होती। अपना कलेजा निकाल देतीं हैं। माँ ,मुझे हिम्मत देतीं हैं ,सहारा देतीं हैं उनसे मुझे हौसला मिलता है। माँ हैं तो सब सह लुंगी ऐसा लगता है। 

रिया ! बाबा तो पहले ही चले गए अब माँ ,को नहीं खोना चाहती। कोविड का रहस्य अभी सुलझा भी नहीं था ,लोग घर से बाहर नहीं निकल पा रहे थे ,माँ ने बिस्तर पकड़ लिया। डॉक्टर भी देखने को तैयार नहीं हो रहे थे ,मर्ज बढ़ता गया। माँ को चैन नहीं पड़ रहा था शायद उन्हें दर्द होता था। मैं ,लाख चाहने पर भी माँ ,को नहीं देख पा रही थी। भाभी फ़ोन पर बात करवा देती थी। रिया ही सहारा थी जो अंजू का मन हल्का करती थी। एक शाम माँ ,को ज्यादा तकलीफ हुई अस्पताल ले गए लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ ,माँ हमेशा के लिए चली गई। सारे दर्द ,पीड़ा ,कराहें सब आँगन की दीवारों में समां गए। 

सब लोग आये और चले गए। सन्नाटा भीतर से बाहर तक छा गया। अंजू तो टुकड़े -टुकड़े बिखर चुकी थी। घर आकर माँ को खत लिखने बैठ गई -

माँ !! मैं ,ठीक  नहीं हूँ ,मुझे तुम्हारी जरुरत थी ,तुम क्यों चलीं गई। तुम्हारे लिए एक कविता लिखी थी -साया --उसमें लिखा था माँ ,तुम मेरे साथ साया जैसी हो ,तुम मेरी सांस थीं ,और न जाने क्या -क्या। माँ ,तुम अपने कष्टों से आजाद हो गई ,मैं कुछ न कर सकी ,अपराध बोध होता है तुमसे मिल भी न सकी. अंतिम समय होश था ,जाने क्या  कहना चाह रही थीं ,कुछ बोल भी न   सकीं। तुम्हारी आँखों की कोरें मुझे सब बता रहीं थीं। तुमने जो दौलत हमें संस्कारों के रूप में दी है ,पीडियां याद करेंगी। तुम विध्या का भण्डार थीं। माँ ,हमेशा मेरी यादों मै जिन्दा रहोगी 

तुम्हारी अंजू 

रिया माँ का खत पढ़ रही है ,शायद माँ ,ने पढ़ लिया होगा। अंजू अब सामान्य होती  है। 

रेनू शर्मा 















































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