इस फ़ोन की घंटी करीब बीस साल से बज रही है लेकिन उस पार की आवाज अब ,कुछ कंपकपाने सी लगी है ,शब्दों के बीच की दूरी थोड़ी बढ़ गई है। कभी मन करता है फ़ोन रख दूँ पर टूटी -फूटी आवाज का क्रम कब बंद हो जाय पता नहीं। कभी , लगता है फ़ोन कट गया परन्तु आवाज फिर से किस्से सुनाने लगती है। कभी ,सोचती हूँ आवाज को रिकार्ड कर लूँ ज्यादा अच्छा रहेगा ,पर ऐसा करना मुझे आता नहीं।
आज फिर से घंटी बजी है ,कौन ? सिया बोल रही है अरे ! फ़ोन उठा लिया कर काम तो मेरे पास भी रहते हैं पर आराम से करती हूँ ,सुन रही है या नहीं ,मौसी !! मैं ,अभी पूजा कर रही थी ,आपको बाद मै कॉल करूँ ,नहीं अभी सुन ,देख तेरे मामा ने सौदा किया है उस फ़कीर वाली जगह का ,पता है कुछ ,कितने का हुआ ? मौसी ! मुझे क्या करना। तोभी पता होना चाहिए। चालीस करोड़ का सौदा है। बढे जतन से तेरे नाना ने जमीन बनाई थी। मुये अंग्रेज सर पर सवार रहते थे। नेहरू को प्रधान मंत्री बना दिया फिर इंद्रा आ गई ,जमीदारों की जमीनें सरकार उठाने लगी। उन्हें लगता था राजा रजवाड़ों ने मुफ्त मै बाँट दी है ,उन्हें क्या पता पीडियां बीत गईं उनकी सेवा करते करते। तब ,खेती करने के लिए खेत दिए वो भी पैसा लिया। कुछ खेत उनसे खरीदे जो पाकिस्तान चले गए। अरे ! सिया सुन ले ,कुछ हाँ हूँ तो कर ,बोलो न मौसी ! तेरे मामा ने हम बहनों से लिखित में ले लिया कि हम बहनों को जमीन बेचने से कोई एतराज न है। मैं ,तो समझती न थी पर तेरी माँ तो सब समझती है। उसने भी कुछ न कहा और अंगूठा लगाकर चली गई ,तभी फ़ोन कट गया।
सिया की जिंदगी में उथल -पुथल करने के लिए मौसी महीने में दो बार फ़ोन कर लेती है। सिया भी जानती है मौसी को कोई मतलब नहीं मामा की दौलत से ,बस यूँ ही मन हल्का करतीं हैं। सोचती होंगी नाना नानी चले गए ,पीहर भी ख़तम हो गया ऊपर से बेचा -बाची चल रही है। बेटियां तो गाय की बच्चियां हैं ,चाहे जिस घंटे से बाँध दो। मौसी ! अकेली रहती हैं ,बेटा शादी होते ही दूसरे शहर रहने लगा। मौसा अपनी दुनियां में मस्त रहते हैं पर मौसी समय मिलते ही कभी ,दिया को फ़ोन लगाती हैं ,कभी सिया को।
सुन ले , सिया -कभी सुलोचना पर भरोसा न करना ,बड़ी शातिर है। क्यों क्या हुआ ?मौसी एक बार नानी से मेरी चुगली लगा दी ,जिस काम को नानी मना करती वही काम करती है सुलोचना। सोच ,तू कितनी बदमाश है वो। मौसी ! मुझे खाना बनाना है ,कल बात करूँ ? तुम लोग मेरी बात सुनना ही नहीं चाहते। ना मौसी ,ऐसी बात नाय कल करती हूँ।
दस दिन बाद मौसी का फोन बज उठा , सिया सुन तो , तेरे मामा ने नौ करोड़ का सौदा किया है , जो लखन वाली जगह थी न उसका। तुहैं कैसे पता मौसी ,अरे ! उसी सुलोचना का फ़ोन आया था ,वही गलती से बक गई , कितनी मेहनत की थी तेरे नाना ने ,आज सब बेच रहे हैं। बेटियां इस लिए दुखी नहीं होतीं कि हिस्सा नहीं दिया जा रहा बल्कि इस बजह से तड़फती हैं क्योंकि माता -पिता ने संघर्ष के जोड़ा था ,जिसमें लड़कियां भी शामिल थीं अब ,जब तबाह कर रहे हैं तब ,उन्हें पूछते भी नहीं। नाना ,खुद कचहरी के चक्कर लगाते थे ,जब जमीन पर कोई और कब्ज़ा करता था तब। मौसी ! परेशान मत हो , आज क्या बनाया खाने मै , अरे ! आज ना बनो ,शाम को आलू के पराठे बना लुंगी ,दही रखो है ,तेरे मौसा खा लेंगे।
मौसी के किसी काम का कोई ठिकाना नहीं ,बस ,मलेरिया बुखार सी कांपती रहती हैं , मामा जे कार्रो है ,मामा वो कार्रो है। कितनी बार समझा दिया है मौसी ! समय बड़ा बलवान है ,सब्र करो। दिया से बात करेंगी तब भी बता देंगी , जब दिया बता देगी कि मौसी का फ़ोन आया था तो ,बोल पड़ेंगी जा ,देख ले ,दिया ने तोसे कह दई। फिर महीने भर की छुट्टी।
मौसी ,गुस्सा हो गईं ,अब ,पहले से बोलतीं देख सिया ! ये तेरे मेरे बीच की बात है ,काउ ते नाय कहनी। हाँ ,मौसी चिंता न करो। हम बहनें तो बात कर लेते हैं पर मौसी को नहीं बताते , ठीक दो महीने बाद मौसी का फ़ोन आया है ,सुलोचना बोल रही है अब ,तो कछु बचो नाय ,इधर -उधर टुकड़े परे हैं अब ,उन्हीं को नंबर लगेगो। सुलोचना भी तो फेंकू है ,मौसी को सब पोक देती है। बीबी -बीबी करके मौसी से इत्ते -बित्ते की सब जानकारी ले लेती है। सिया तू बोलती चों ,नाय। क्या बताऊँ मौसी गई थी ,मामा के घर कछु बात नाय भई। पीहर को अब ,भूल जाओ मौसी , सिया !! तीस बरस तक वहीँ फुदकती रही ,ब्याह ही देर से भयो , नाना नानी मेरे सामने गए , इन्हीं हाथों से सब संभाला कैसे भूल जाऊं ? सिया ! एक बात सुन ले -तेरे मामा की जान को खतरा है , जा सुलोचना को तू कम मत समझियो। मौसी तुम्हें कैसे पता चला , तू जे सब छोड़। बस ,बाते कह दीयो साबधान रहे। चल ,ठीक कल बात करुँगी।
मौसी , अजब प्राणी हैं ,भाई -भाभी से चिढ़ती भी हैं ,चिंता भी रखती हैं। नाना की दौलत बेच दी ,वो सहन नाय ,सिया को फ़ोन करके जिंदगी के दांव -पेच समझाती रहती हैं। सुलोचना ऐसी औरत है जो ,सभी को प्रभावित कर देती है ,लड़ना -झगड़ना उसकी आदत में सुमार है। मौसी ,अभी अस्सी बरस की हो चली है ,अपना काम खुद करती हैं। जब ,अधिक दिनों तक फ़ोन न आये तो ,सिया चिंता करने लगती है।
मौसी बता रही थीं कि सुलोचना इतनी ईर्ष्यालु है कि पडोसी यदि अपना घर ठीक कराये तब ,भी उसे भाता नहीं। हफ्ते में एक बार मौसी सुलोचना का और सुलोचना मौसी का सर खाली कर देती होंगी। बाकी समय में सिया और दिया हैं। मौसी के जीवन की डोर पीहर के इर्द -गिर्द ही घूमती रहती है। जब ,माह तक मौसी का फ़ोन नहीं आया तब ,सिया की चिंता बढ़ गई ,फ़ोन लगाया नहीं उठा ,दुबारा लगाया ,तब मौसा ने उठाया -हेलो !! सिया बेटा बोल रही हो ,आज तुम्हारी मौसी बिस्तर पर हैं ,मुझे बात करने को पहली बार बोला है ,बुखार है ,शरीर दर्द करता है ,कह रही हैं सांस न ली जा रही ,मैंने बोला है ,तो न लो सांस। अरे ! मौसाजी ऐसा न कहो , मौसी के कान पर फ़ोन रख दो ,मौसी !! राम राम ,का भयो ?ठीक ना हूँ ,अभी बोलो ना जारो ,फिर बात करुँगी। फ़ोन कट गया।
सिया के रात -दिन अब ,मुश्किल मै पड़ गए। शाम होते ही अंकुश का फ़ोन आ गया ,दीदी !! माँ ,अब नहीं रहीं। सिया सन्न गई ,अब ,न मौसी रहीं ,ना फोन कॉल्स ,न पीहर की चर्चा ,न मामा की बातें। सिया के दिल से एक हुक निकली और जोर से दहाड़ मारकर रोने लगी। सब ,कुछ एक झटके में पिघलकर बह गया। सिया फुर्सत में मौसी का इन्तजार करती है।
रेनू शर्मा
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