Wednesday, February 1, 2023

विभाजन

विभाजन  की बात चलती है तब ,हम भारत -पाक के बीच की कडुआहट ,तकरार ,मतभेद ,आरोप -प्रत्यारोप ,नीति -कूटनीति ,धोखा -फरेब की बातें करने लगते हैं। हमारे बुजुर्ग इस बर्बरता पूर्ण बंटवारे को महाकाव्य की तरह सुनाते हैं। इसका दर्शन हम फिल्मों में भी कर चुके हैं। जब ,महत्वपूर्ण लोगों के बीच फ़ाइल साइन की गई ,तब ,जनता के बीच तूफ़ान उठने के अलावा कोई चारा न था। गया 

दौनों मुल्कों के लोग जार -जार रो रहे थे , जीवन भर का संग्रह , संतान ,धन -दौलत , अपने -पराये सब छोड़कर ,खाली  हाथ लौट रहे थे। एक कारवां जा रहा था ,तो दूसरा वापस आने की जुगत लगा रहा था। आवागमन की वीथियाँ शोक ,संताप और भय के पहरेदारों से भर गईं थीं। डेरों पर लूट , व्यभिचार ,मारकाट ,प्रतिशोध का आतंक छाया था। उनके आकाओं के एक फैसले से पूरा देश उजड़ गया। बच्चे ,औरतों ,युवतियों की पीड़ा तो सदियों तक पन्नों पर उकेरी जाती रहेंगी। 

कुनैन के घूँट सी विभाजन के दर्द को झेलने वाले लोग आज भी जिन्दा हैं। इसी तरह का विभाजन हमारे घरों की दीवारों के भीतर भी होता है। पति -पत्नी ,बच्चे ,बुजुर्ग व्यापार ,खेत -खलिहान सब बाँट लिया जाता है। उस पीड़ा और दर्द को जीवन की रीति कहकर हल्का कर दिया जाता है। सब कुछ अचानक से बदल जाता है ,एक दूसरे की आदतें ,व्यवहार सब चुभता है। कुछ लोग बच्चों की खातिर जीवन भर साथ रहने का नाटक करते हैं। 

पुरुष के पास थोथे सहारे होते हैं ,कभी शराब पीता  है ,कभी वैश्यावृति कर लेता है ,युवतियों को इश्कबाजी में फंसाकर सब कुछ आसान कर पाता  है। महिला दिन भर घर के कामों से खुद को सुलझाती ,तार -तार होती रात को शकुन की नींद चाहती है। रात में पति के अपशब्दों को सुनकर सुबह सोचती है ,अब क्या ? कोढ़ से रिश्ते को सहना महिला की मज़बूरी हो जाता है। इस तरह रिश्तों के विभाजन भी कोई कम घातक नहीं होते। पति -पत्नी तो रिश्ते में अंतरंगता की हदें पार करते हैं ,उनका टूटना दर्द ,पीड़ा घुटन से भरा रहता है। 

हमारे समाज में स्त्री होती ही विभाजित होने के लिए है ,पिता के घर में बेटी बनी ,ससुराल में पत्नी ,माँ बनी ,फिर कुछ नहीं रही। विभाजन के समय एक खट की आवाज सिर्फ औरत ही सुन सकती है। जीवन भर रिश्तों के बीच चरमराती औरत वजूद पाकर भी खो देती है। जीती -जागती आध्यात्मिक यज्ञ की देवी सी आहूत होती रहती है। 

रहीम दास जी कहते हैं -रहिमन धागा  प्रेम का ,मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर न जुड़े ,जुड़े गांठ पड़ जाय। 

रेनू शर्मा 


































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