Monday, January 30, 2023

बचपन के बाद -

आसमान पर बादल घिरते आ रहे हैं ,कहीं काली घटायें जमघट लगाए विकराल रूप धारण कर रही हैं ,कहीं आपस में झगड़ कर दूर हए  बच्चों से सफ़ेद चमकीले बादल श्वेत कपास से इधर -उधर बिखर रहे हैं। दूर पहाड़ी के ऊपर लगता है मेघ बरस रहे हैं। एक क्षितिज सा बन गया है पहाड़ी और आकाश के बीच ,पहाड़ को देख कर लगता है ,दूर कोई दुल्हन बैठी है। खेतों के बीच काली नागिन सी ट्रेन पटरियों पर सरपट दौड़ रही है। कभी ,इंजन से सीटी की आवाज आती है ,कभी धड़धड़ाते पहियों की सरगम सुनाई देती है। बिजली के तारों पर पंछी आकर बैठते हैं ,कभी दूर लहराते खेतों में गाय चरति दिख जाती हैं। बूढ़े बरगद के नीचे ग्वाला हाथ में लाठी लिए बकरी चराता दीखता है ,कभी बैलों की जोड़ी खेतों को समतल करती दिखती है। 

ट्रेन की खिड़की पर निगाहें टिकाये उत्तमा आज समझ पाई है कि दुनिया गोल है। यकायक मुझे घूरती हुई बोलती है सुनो !! सुनयना !!हमारे साथ ही खेत ,पहाड़ ,बादल बकरी सब घूम रहे हैं। अरे !! देखूं तो ,हाँ तुम ठीक समझीं। हमारी ट्रेन आगे जा रही है और सब कुछ पीछे छूट रहा है समझी। ठीक वैसे ही जैसे जीवन के कुछ अनमोल पल हम बिता चुके हैं ,जो पीछे रह गए। हाँ ,पता है सुनयना !! मैं ,एक बार फिल्म देख रही थी ,अपनी दोस्त के साथ।   हमारे साथ ही एक युवा जोड़ा बैठा था जो फिल्म तो कम ही देख रहे थे ,आस -पास के लोगों को डिस्टर्व ज्यादा कर रहे थे। 

सुनयना !! मुझे लगता है ऐसे लोग पागल होते हैं ,घर नहीं होता क्या ? मुझे बड़ी घबराहट होती है ,पर ,बेटा !! आज के लोग होते ही ऐसे हैं ,वे लोग सोचते हैं हम संस्कारों में बंधकर रहेंगे तब ,लोग उन्हें पीछा मानेंगे। उत्तमा !! अगर तुम उस लड़की की जगह होती तो क्या करती ? मैं ,पहले तो ऐसे किसी के साथ फिल्म देखने नहीं जाती जो , उधार बैठा हो ,जिसे मर्यादा की लाज न हो। बाहर जाती घर निकल लेती। 

वाह , माते !! जरा बाहर तो देखो ,तुम्हारी पृथ्वी कितनी गोल होती जा रही है। तभी उत्तमा ने अपने बेडौल होते शरीर पर निगाह डाली और बाहर देखने लगी। सुनयना !! जब हम युवा होते हैं तब ,सब भाता है लेकिन एक उम्र के बाद बदल जाता है। हाँ , एक बार मैं ,पहाड़ी पर बने मंदिर में दर्शन के लिए गई ,सुना था ईशवर ऊपर रहता है ,चलो  कितना ऊपर है। एक हजार  सीढ़ियां चढ़कर हम ऊपर पहुंचे थे। परम आनंद की अनुभूति हुई। हम घुमते हुए पीछे की ओर चले गए , वहां से नीचे का दृश्य बड़ा बिहंगम लग रहा था ,ऐसा लगा मानो बड़ा सा बोर्ड हो ,जिस पर पेंटिंग बनी हो ,कहीं खेत हैं ,कहीं घर दिख रहे हैं ,पेड़ -पौधे सब मनोहर लग रहा था। वहीँ पास में एक जोड़ा किसी बात पर बहस कर रहे थे , पत्नी अचानक से क्रोध से पागल हो गई ,बोली -राकेश अब ,तुमने एक शब्द भी बोलै तो ,मैं यहीं से कूद जाउंगी। मैं ,अवाक थी करूँ ? लड़की थोड़ी दूर चली गई ,मैं उसके पीछे गई उसे पानी दिया , कहाँ तो प्रकृति का आनंद ले रही थी और अब ये मुसीबत , धीरे से उसका नाम पूछा ,उसका हाथ अपने हाथ में थाम लिया ,देखो , सब्र से काम लो ,मुझे नहीं पता आप लोगों की क्या  समस्या है ,लेकिन थोड़ी देर शांत होकर बैठो ,फिर घर जाना। मैं ,इतना बोल  तो गई पर डर था वो मेरे ऊपर ही विफर न जाए ,वे लोग चले गए। 

मेरा मन शाम तक उदास रहा। तुम मेरी जगह होती तो क्या करती उत्तमा !! मैं ,यार पति पत्नी के बीच क्या ही बोलती , पति जब लड़की को समझने की कोशिश भी नहीं करता तब ,ऐसा  होता होगा। मैं ,वहां से हट जाती लो मरो ,कूदो। यार !! अगर लड़की होती तो ,चुप रहती घर आकर उसकी हजामत बनाती। 

सुनयना !! तुम क्या करती बताओ न , मैं , उस समय चुप रहती ,पर हमेशा के लिए वचन लेती कि तुम्हारे साथ तभी बाहर जाउंगी जब, मेरा मान रखोगे ,थोड़ा रो लेती ,कुछ लिख लेती फिर धीरे से अपने अस्तित्व पर नज़र डाली ,एक उम्र के बाद हम हजार नुस्खे बताने को तैयार रहते हैं लेकिन युवाओं की  कुछ और ही होती है। देखो -उत्तमा !! स्टेशन आने वाला है तुम्हारी पृथ्वी भी रुक जाएगी। देखो सुनयना !! लोग कैसे यहाँ -वहां लेटे -बैठे रहते हैं। जब कोई ट्रेन आती है तब ,कितनी आपाधापी रहती है। मुझे याद है उस दिन लोकल ट्रेन में थी ,बेटी का जन्मदिन था तो , जल्दी जाना था। रोज जैसे  ही लोग थे,एक माँ बेटी बार पूछ  रही थीं कौन सा स्टेशन आएगा ? शायद  पहली बार लोकल में चढ़े होंगे , तभी हमारी  बोगी के पीछे वाली बोगी में जोर का धमाका हुआ , एक जोर के झटके के साथ मेरा बैग कहीं ,मैं ,कहीं फिका गए। मेरा पैर फैक्चर हो गया था ,सब एक दूसरे के ऊपर पड़े थे ,जब होश आया तो ,हॉस्पिटल में थी। जाने  कितने लोग मर गए ,कितने लोग घायल हुए ,मैं ,दो माह तक बेड पर रही , ठीक होने पर जन्मदिन मनाया गया। 

उत्तमा !! तुम जिन्दा हो हमारे लिए सबसे ख़ुशी यही है। कुछ हादसे ऐसे  होते हैं जिन्हें भूलना मुश्किल होता है। चाहे जिंदगी हो या प्लेफॉर्म हम लोग दौड़ते ही रहते हैं। देखो -ट्रेन के साथ फिर से पेड़ -पौधे ,नदी ,घर -गांव सब घूम रहे हैं। लेकिन अब ,तुम ये न पूछना कि मैं ,होती तो क्या करती ? चलो अब ,चाय पीनी चाहिए ,हाँ विचार तो अच्छा है। 

उत्तमा ,चाय की चुस्कियां ले रही थी मैं ,खिड़की के बाहर घूमती दुनिया देख रही थी  तभी किसी ने ट्रेन की चेन खींच दी ,दूसरी बोगी से पकड़ो -पकड़ो की आवाज आने लगी ,एक लड़के को पकड़कर कुछ लोग धुनाई कर रहे थे। उत्तमा !! एक बार मैं ,माँ से मिलकर अकेली वापस आ रही थी , खाने का सामान एक बैग में अपने सर के पास रखकर मैं ,सो गई। मेरे ऊपर  बर्थ पर एक दुल्हिन लेटी थी , उसके ससुरजी नीचे साइड की बर्थ पर थे ,मेरे पास एक लड़का आया और बैग निकालने लगा ,ससुरजी देख रहे थे ,उन्होंने शोर कर दिया , मैं ,उठी इधर -उधर देखा तो बुजुर्ग बोले आपका बैग ले जा रहा था लड़का , माँ ,की दी मिठाई ,लड्डू ,खाना उसी में था ,मुझे धक्का लगा। तभी ,बोगी में हलचल मच गई अरे ! मेरा पर्स नहीं है , मेरा मोबाईल नहीं है,लड़के को पकड़ा दो चार हाथ जमाये तब तक    ट्रेन धीमी हुई वो  भाग लिया। ट्रेन चलने लगी लोग अंदर आ गए। तभी ,बुजुर्ग को उस लड़के ने ईंट से मारा ,जो भाग्य से उनको लग नहीं पाई। वे बहुत घबरा गए। मेरी ओर देखते हुए बोले -आपकी वजह से मुझे लगी है। 

तभी  जीआरपी सिपाही वहां से निकला ,उसे बताया अभी घटना हुई है वो  बोला -मैडम !! मेरी ड्यूटी ख़तम गई है ,छटी बोगी में दो सिपाही सो रहे हैं आप जगा लो। मैं , गुस्से से फोन तो  पति को लगा रही थी पर उसे बोला डीएसपी साब को फोन लगाती हूँ ,सिपाही तुरंत गया उन्हे बुला लाया। अब ,बन्दुक धारी सिपाही बुजुर्ग के पास बैठ गए ,तब जाकर राहत हुई। 

सुनयना !! तुम कैसे सिपाही को हड़का सकीं , अरे ! उनकी ड्यूटी है ,पर मक्कारी करते हैं। डरना किस बात का  .अब ,तुम पूछो उससे पहले ही बता दूँ मैं ,भैया -भैया  करने वाली नहीं हूँ। घर आकर कहती अब , अकेली कभी न जाउंगी। हाँ ,अभी तो ऐसा  नहीं सोचुंगी। चलो ,भूख लगी है ,ट्रेन में खाना खाने में अच्छा लगता है। तुम क्या लाइ हो ? देखो -कढ़ी -चावल  ,पराठा , आम का अचार , और तुम उत्तमा !! आलू की सब्जी ,पूड़ी और चिक्की। अरे ! वाह आज तो मज़ा आने वाला है। उत्तमा !! कैसा लगता है हम इस उम्र में भी इतनी मस्ती करते हैं। हाँ ,अब अँधेरे में खिड़की के बाहर कितनी तस्वीर बदल चुकी होगी ,हम लोग अब ,फ्री हुए हैं ,तब  ही न मस्ती कर रहे हैं। सुनयना !! जब तुम घर पर  होती हो ,तब क्या करती हो , वो समय ध्यान करती हूँ। बड़ा सकूँ मिलता है जब ,हम  अपनी सांसों को अनुभव  कर सकते हैं। अपने मन के दुष्विचारों को ख़तम कर पाते हैं। हमारा स्टेशन आने वाला है ,चलो आगे फिर मिलने की कामना के साथ ,आज का सफर यहीं रोकते हैं। 

रेनू शर्मा   

























 


























 


















































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