कोई ,द्रुत गति से
रास्ते बना रहा है
कोई ,
राजनीति के झंझट में
उलझा हैं।
कोई ,
परिवार के दांव -पेच में
खुद ही फंस रहा है।
कोई ,
मदिरालय की सीढ़ियां चढ़कर भी
रोज नीचे गिर रहा है।
कोई ,
पंछियों के घरोंदे उजाड़ कर
ईंट -गारे के जंगल
ऊगा रहा है।
कोई ,
भरोसे की हत्या कर
विश्वास का गला दबा रहा है।
कहाँ ,देखे जीवन का उजाला
इस ,आप -धापी में
सब ,भाग रहे हैं।
रेनू शर्मा
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