Friday, January 27, 2023

मैं जिंदगी --

पहाड़ों के शिखर से 

कलकलाती ,सरसराती 

कभी ,

छलांग लगाती हूँ। 

कभी ,

जघन्य वन की 

वक्र वीथियों से 

सिमटती ,सकुचाती 

बहती हूँ। 

कभी ,

हरे -भरे मैदानों में 

सरपट प्रवाहित 

होती हूँ। 

मैं , निरंतर जीवंत 

प्राणदायनी नदिया सी 

विराजती हूँ। 

कभी ,उच्च श्रृंगों पर 

प्रतिष्ठित मणि सी 

विराजती हूँ। 

कभी ,बरसाती नदी सी 

व्यक्त अपने वजूद को 

दर्शाती हूँ। 

कभी  , विरल थपेड़ों  को 

झेलती सुरसरि सी 

जीवन चक्र के 

वायुकृत आवेग को 

स्वयं में समाहित कर 

हौले -हौले सरकती हूँ। 

मैं , जिंदगी हूँ। 

रेणुशर्मा 













































      

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