सघन ,शीतल
वटवृक्ष सा पिता ,
दूर से आती
घृणा ,अशांति की
आंधी से ,
घरोंदे को बचा लेता हैं।
सूरज की तपती
धूप में ,भीनी
छाँव देता हैं।
खोने लगे अगर
हौसला तो ,
वैशाखी सा टिक
मुस्कराकर आंसू
पीने लगता है।
जीवन पथ का दिया बन
राह दिखाता रहता है।
रेनू शर्मा
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