Friday, January 27, 2023

पिता

विस्तृत ,गंभीर 
सघन ,शीतल 
वटवृक्ष सा पिता ,
दूर से आती 
घृणा ,अशांति की 
आंधी से ,
घरोंदे को बचा लेता हैं। 
सूरज की तपती 
धूप  में ,भीनी 
छाँव देता हैं। 
खोने लगे अगर 
हौसला तो ,
वैशाखी सा टिक 
मुस्कराकर आंसू 
पीने लगता है। 
जीवन पथ का दिया बन 
राह दिखाता रहता है। 
रेनू शर्मा 
























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