वो , बादलों को देखकर
मुस्करा उठती थी ,
पंछियों के साथ
गप -शप करती थी ,
हमेशा ,ठंडी हवाओं के साथं
उड़ जाती थी ,दूर तक
वो , हर -पल जिन्दा थी ,
खुद से दूर।
वो , दीवारों से घिरी
सिसक उठती है ,
वो , थम सी गई है ,
वो , ठहर सी गई है ,
क्योंकि ,उसने
लिखना छोड़ दिया है।
रेनू शर्मा
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