Saturday, January 28, 2023

जाने क्यों

 वो ,रोज 

आराम कुर्सी पर 

कुशन बदलती है। 

कभी ,सर्द रात के 

सन्नाटे में ,

कम्बल डाल जाती है ,

कुर्सी के बाजू पर। 

कभी ,बरसात की भींगी 

रातों में ,आँगन में 

उतार देती है ,

कुर्सी को। 

कभी ,जून की तपती 

दोपहर को ,

गीली तौलिया 

सुखाती  है ,कुर्सी पर। 

जाने क्यों ?

वो ,रोज 

आराम कुर्सी पर 

कुशन बदलती है। 


रेनू शर्मा 

















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