मनोविकार जब
घेर लेता है ,
तब , पीर ,पैगम्बर
गुरु ,स्वामी ,देवता सब
अपराधी सा ,
अनुभव करा देते हैं।
पूर्व जन्म के किसी
पाप का साया
बोल देते हैं।
अनसुलझी पीड़ा ,
बढ़ती जाती है।
संसार का चक्र ,
अतीत की गुत्थी
नासमझी पैदा करते हैं।
दूसरे पल ,आस्था
विश्वास ,शृद्धा का सागर
बहता है।
विरक्ति , संशय विराग का
ज्वार उमड़ता है।
मनोविकार है या
आत्मज्ञान ,
एक ,शून्यता शेष
रह जाती है।
रेनू शर्मा
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