Friday, January 27, 2023

प्रेयसी

बादलों की कतार को 
उमड़ते -घुमड़ते
दूर तलक 
दौड़ लगाते देखा है ,
जाने कौन ?
उन्हें , भागने का 
साहस दे रहा है ,
फैलते -बिखरते 
सिमटते और कभी 
बिछुड़ते इस दृश्य पर 
जादू सा 
छा जाता है। 
अचरज सा पनपता है ,
जाने कहाँ से ,
आकर नटखट 
प्रेयसी से ,ये 
बादल !!
छुपते भी हैं ,
बरसते हैं ,गरजते हैं 
भीतर तक 
सिंचित कर जाते हैं ,
किसी प्रेयसी से। 

रेनू शर्मा 




















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