उमड़ते -घुमड़ते
दूर तलक
दौड़ लगाते देखा है ,
जाने कौन ?
उन्हें , भागने का
साहस दे रहा है ,
फैलते -बिखरते
सिमटते और कभी
बिछुड़ते इस दृश्य पर
जादू सा
छा जाता है।
अचरज सा पनपता है ,
जाने कहाँ से ,
आकर नटखट
प्रेयसी से ,ये
बादल !!
छुपते भी हैं ,
बरसते हैं ,गरजते हैं
भीतर तक
सिंचित कर जाते हैं ,
किसी प्रेयसी से।
रेनू शर्मा
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