सुबोना की छोटी बहन शीलोना दो भाइयों के बाद पैदा हुई ,तो माँ , पहले ही तीन बच्चों की माँ थी तो , क्या ख़ुशी हुई होगी ? अभी तो दूसरी ही बेटी थी तो ,दुःख या प्रसन्नता का सवाल ही नहीं खड़ा होता। सुब्बो ,की तरह ही घर पर ही अक्षर ज्ञान दिया गया। इतना ज्ञान था कि धर्म -ग्रंथ पढ़ सको , पढ़ना मना नहीं था लेकिन घर में बच्चे सँभालने पड़ें , खाना बनाना पड़े तो ,पढ़ाई पीछे छूट जाती है। बेटियों के लिए पढ़ाई का कोई मायने नहीं था क्योंकि नौकरी नहीं करानी थी , बस एक अदद शादी करनी थी।
बेटी तो पढ़ना चाहती थी पर शादी करने के लिए कभी -कभी ज्यादा पढ़ना बेटी के लिए भारी पड़ जाता था। माँ , बाबा को टोकती रही कि बेटी की शादी करनी है ,बाबा ,रिश्ते की बात करते लेकिन जाने क्यों बात बनती नहीं। शीलोना के जीवन का एक बरस हर बार बढ़ता रहता। ऐसा नहीं होता कि संपन्न घरों की बेटियां अवसाद का शिकार नहीं होतीं सन १९३५ के समय शीलो भी मानसिक रूप से बीमार हो चली थी। तब ,शादी १८ बरस तक हो जाती थी २८ बरस होना तो गजब था।
शीलो , कुछ चिड़चिड़ी हो गई ,एक ही जैसे काम करते हुए उकता गई थी। बाबा की उसके ब्याह के प्रति बेरुखी उसे समझ आ रही थी ,कभी माँ से झगड़ती ,कभी भाभी से ,पूरा दिन बड़ -बड़ करते निकल जाता। समझ नहीं आता क्या करे ? न कोई सखी ,न कोई सहेली ,सब चुकी थीं। बाहर जाने की अनुमति नहीं थी। घर बच्चों से भरा था ,कहाँ जाती।
अचानक से एक रिश्ता बन गया और शीलोना दूसरे शहर चली गई। घर के दूध -दही में मगन रहने वाली बेटी कुछ समय ही ससुराल की तंगियों को सहन कर सकी। पति की नौकरी से पूरा परिवार पलता था। पति भी रुखा हो जाता था। एक बरस तक शीलो माँ ,को दुखड़े रोटी रही ,माँ हर बार समझा देती ,बेटा !! सब सहन करना पड़ता है , सीखो सब , कैसे मिलजुलकर रहा जाता है। शीनो , जब गर्भवती हुई तो , न काम कर सकी न पति को समझ सकी।
माँ , अब न रह सकुंगी , बुला लो। माँ , करती बाबा के सामने रोने लगी ,जरूर बेटी दुखी होगी। बुला लो। बाबा ने भाई भेज दिया। शीलो एक नन्ही सी परी के साथ घर वापस आ गई। कुछ समय के बाद माँ ने प्रयास किया शीलो पति के पास चली जाये लेकिन कुछ महीने रहने के बाद , शीलो हमेशा के लिए माँ के पास आ गई।
जब , शादी शुदा बेटी माँ के पास वापस आती है तब , माँ ,बाबा तो समझ जाते हैं लेकिन घर -परिवार के अन्य लोग कभी नहीं समझ पाते। धीरे -धीरे भाइयों ने अपने घर अलग कर लिए , रोज के झगड़े होने लगे ,बेटी के लिए तो माता -पिता थे लेकिन भाई -बहन का व्यवहार बदलने लगा। माँ -बाबा के बाद शीलो अकेली रह गई अपनी बेटी के साथ।
शीलो अपनी बेटी के साथ रहकर भी एक त्याज्या स्त्री का जीवन जी रही थी , न सुख था न सम्मान था। उसे इस बात का भरोसा था कि भाई बेटी की शादी कर देंगे। पति के घर से अपनापन जोड़ ही नहीं पाई। शीलो की चिंता भाइयों को थी लेकिन खेत का एक टुकड़ा उसके नाम न लिखा सके। पैतृक संम्पत्ति से बेटी को बे दखल कर दिया गया। उसकी बेटी रागी उस अपराध की सजा भोग रही थी ,जो उसने नहीं किया था।
एक रिश्ते में रागी बंध गई और ससुराल आ गई , मामा ने रागी को समझा दिया बेटा !! अब , तुम अपना घर देखो , सुखी रहो। अनुज किसान परिवार से था , शीलो को भी अपने साथ ले गए क्योंकि अब ,शीलो को वही देख सकते थे। कुछ सालों बाद शीलो भी इस दुनिया से चली गई। एक स्त्री का जीवन चक्र यही था।
आगे किसी और नारी की व्यथा -कथा देखेंगे क्रमशः ------
रेनू शर्मा
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