Friday, July 15, 2022

स्वान सेवा

शाखा जब छोटी थी , तभी से देख रही थी कि कुत्ते गली में इधर -उधर घूमते रहते हैं , दादी कहती थी कि शाखा !! जा काले कुत्ते को रोटी डालकर आजा। कभी सफ़ेद गाय को रोटी डालो , कभी बछड़े वाली गाय को। कुत्ते के सामने रोटी तोड़कर डालो , रोटी डालने से पहले ही उसकी दुम हिलने लगती थी , मुंह कभी ऊपर कभी नीचे घूमता रहता था। तब , कभी - सोचती थी , ये कुत्ते कहाँ खाना खाते होंगे , फिर समझ आया जैसे दादी रोटी डलवाती है ,वैसे ही और लोग भी खाना देते होंगे। 

घर के बाहर गाय बंधी रहती है ,उसके खाने का बर्तन भी बड़ा है , जहाँ सुबह -शाम श्यामा उसे चारा डालती है। गाय के लिए  टुकड़े , साग का पानी , अनाज का सालन  जाने क्या -क्या उसके खाने में मिलाया जाता है। वहीँ पर कालू कुत्ते को गाय के बर्तन से रोटी निकालते  देखा है। माँ , शाम को दिन  बची रोटी कालू को डाल  देती थी। कुत्तों की परवरिश गली -मौहल्लों में यूँ  होते देखी गई है। 

एक बार माँ ने एक पामेरियन कुत्ता मंगा लिया ,सोचा घर में कुत्ता रहेगा तो , सुरक्षा भी रहेगी  और मन भी लगा रहेगा। जब उसका डायना का गृह -प्रवेश हुआ तो बाबा खुश नहीं थे। बाबा को जानवर को घर में कैद कर रखना पसंद नहीं था। वे , सोचते थे ,बेचारा अपनी तकलीफ नहीं बता पायेगा ,लेकिन माँ ,भाई शाखा खुश थे। 

सफ़ेद रेशम से मुलायम झबरीले बाल , सुन्दर आँखें जो दिखाई नहीं देती थीं। एक दिन माँ ने डायना मैडम के बाल काट दिए तब जाकर चेहरा दिखाई हुई। दूध रोटी ,फल ,सब कुछ डायना को पसंद था। माँ का कहना मानती थी क्योंकि माँ ही उसे बाहर लेजाकर डोरी से मुक्त करती थीं। माँ , बोलती डायना !! बगल वाले घर में नहीं जाना है ,वरना पिटाई लगेगी तो जरूर जाती थी। जब ,बच्चे मारते ,तब भागती थी। माँ को बुरा  था , पड़ोसन माँ ,बाबा को भला -बुरा सुना देती। जब डायना घर आती तब ,उनकी क्लास लगती थी। माँ ,उसका मुंह पकड़ लेती फिर समझाती ,तुमसे मना किया था न ,वहां नहीं जाना ,फिर क्यों गई ? बोल ,मारुं तुझे ,जाओ  खाना नहीं मिलेगा ,तो माँ की ओर देखती रहती ,आवाज निकालती जिसका साफ़ मतलब होता आज गलती हो गई ,अब नहीं होगी। 

एक दो घंटे माँ डायना  परेशान करती ,बात नहीं करती तब ,माँ के पैर चाटने लगती। तब माँ , उसे प्यार करतीं और खाना देती। दूसरे दिन माँ ,जब बाहर ले जाती  तब, पडोसी घर के सामने दो -चार बार भौंकती फिर भाग जाती। माँ ,के सामने डायना दिखा रही थी कि मुझे पता है यहाँ नहीं जाना है। सारे बच्चे डायना साथ मस्ती  रहते थे। 

कई बार रात को माँ ,को जगा देती क्योकि  चूहा दिख जाता था। कभी पकड़ लेती तो माँ ,उसे खाने नहीं देती थीं। डायना भी समझ गई कि इसे पकड़ना है ,खाना नहीं है। माँ ,जब पूजा घर में जाती तब ,डायना दरवाजे के बाहर बैठ जाती। दस बरस तक डायना हम सब लोगों के साथ रही। उसने घर के बाहर किसी को अपना दोस्त नहीं बनाया , एक साध्वी की तरह घर में रही ,माँ के साथ दोस्ती कर बच्चे की तरह रही। सब कुछ समझती थी ,कहती थी। एक दिन चली गई। 
रेनू शर्मा 












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