Sunday, January 9, 2022

 सौदा 

किस्से कहानियों में सुना है कि युवतियों और किशोरियों की जिस्म की मंडी में बेचने को लाया जाता था।  नवजात कन्याओं को भी बोली लगाने के लिए बाजार में पेश किया जाता था। सोने के सिक्कों , जमीन के टुकड़े , यहाँ तक कि शराब के एक चषक के लिए भी अपनी बेटियों को बेच दिया जाता था। उन्हें पता था अगर सौदा नहीं किया तो , बेटी को छीन लिया जायेगा।  गुप्तकाल में यह सामाजिक क्रूरता थी। कानून राजा के हिसाब से लागू होते थे , प्रजा का हित -अहित देखना आवश्यक नहीं था ,जनता से कर के रूप में उनकी कन्या भी ली जा सकती थी। 

सदियां बीत गईं आज तो हम सतयुग में जी रहे हैं , आध्यात्म हमारी रग -रग में समाया हुआ है ,हजारों देवी देवताओं का वजूद हम मानने लगे हैं ,वैज्ञानिक आधार पर भी हम परम ऊर्जा को स्वीकारने लगे हैं , योग भारत से निकलकर पूरी दुनियां पर छा  गया है। स्त्री -पुरुष की जातीय आवश्यकताएं सर चढ़कर बोलती हैं ,बाल -विवाह से मुक्ति मिली , विवाह की कानूनी उम्र १८ से २१ हो गई लेकिन हर इंसान का जोड़ा समय के चक्र  से बंधा है। 

राजा - महाराजाओं ने बिदा  ली तो ,दूसरे अय्याशों ने जगह ले ली। जिस्म का खेल कभी ख़तम नहीं हुआ। पहले नारी को धकेला जाता था , फिर मज़बूरी बन गई अब शिक्षित औरत अपनी मर्जी से धंधा करती है। संचार के माध्यम बढ़ते ही जा रहे हैं , चंद धन के लालच में युवा ,युवतियां जिस्म फरोशी को ही अपना काम मान लेते हैं। 

सवाल यह नहीं कि क्या सही ,क्या गलत ? यदि यही करना था तो नैतिकता का पाठ पढ़ने का क्या हुआ ? माँ -पिता समझते हैं उनका बच्चा शहर में पढ़ रहा है लेकिन बच्चा क्या कर रहा है , यह जानना उनके लिए जरूरी है। आधुनिक शिक्षा पद्धति बच्चों का रास्ता और आसान कर देती है , उन्हें पता है कैसे बचना है। वात्स्यायन का मान मर्दन करना इन बच्चों को भाता है। 

विवाहित महिलाएं भी अपनी महत्वकांछाओं को शांत करने या पति से बदला लेने की होड़ में अपने कदम काँटों वाली राह पर मोड़ देतीं हैं। हम कब कह पाएंगे कि हमारा समाज संस्कारवान है , नैतिकमूल्यों को समझने वाला , शिक्षित है ? कभी समलिंगी समाज सामने आता है ,कभी ट्रांसजेंडर लोग आते हैं , उनके समर्थन में राजकुमार लोग भी आ जाते हैं। ये तो , पता चल गया कि आज भी सब कुछ यथावत है। हमारे समाज में लूट , चोरी ,वैश्यावृत्ति ,शराबखोरी , ह्त्या , गवन , धोखा सब अपराध सक्रीय हैं। 

हम खुश हों तब गोली चला देते हैं , झगड़ा हो तो , गोली चलाना बनता है। शराखोरी के लिए किसी बहाने की आवश्यकता नहीं वो एक रहीशी दिखाने की आदत है। जितना बड़ा नशेड़ी , उतना बड़ा आदमी। हम विषय से भटक गए , यह बोलने में कोई शर्म नहीं कि औरत खुद ही अपना सौदा करती है। अपनी आत्मा और शरीर का सौदा करना पाप है , परतंत्रता है , स्वयं का पतन है। 

रेनू शर्मा 





































No comments: