Sunday, January 9, 2022

बाबा का भजन 

 मई की भीषण गर्मी हो या सर्दी का मौसम बाबा रोज एक बाल्टी पानी तपती धूप में आँगन में रखवाते थे , दो घंटे बाद नहाने जाते , पहले सब बच्चों को कमरे में बुलाते और बोलते कौन ? तेल मालिश करेगा , इनाम मिलेगा। सारे बच्चे तेल लेकर बाबा की चम्पी करते , जब बाबा हमारे थपेड़ों से थक जाते तब , अब बस करो ,शाम को हिसाब होगा। 

पीकू बड़ा चालाक था ,एक लिस्ट बनाता उसमें अपने सारे बहन -भाइयों का नाम लिखता और बाबा से चवन्नी लेने के लिए झगड़ा करता।  बाबा को बड़ा मजा आता था , बच्चों के साथ खेलने को मिलता , थकान मिट जाती सो अलग। बाबा बहुत काम नहाते थे , मोठे कपडे पहनते थे , जब शरीर में  खुजली बढ़ जाती ,तब सोचते अब नहाना चाहिए। कपडे गरम पानी में धोये जाते , बुआ बड़ी नाराज होती थी। रोज नहाया करो बाबा ,लाली ! आज नहीं ,आज ठंडा है , बाबा का कमरा यदि व्यवस्थित कर दिया जाता तो वो नाराज हो जाते भाई मेरा सामान न छुआ करो , अब फ़ाइल कहाँ देखूं , उनका दिन भर एक वकील से दूसरे के पास घूमने में ,कचहरी के चक्कर लगाने में निकल जाता।  लौटते समय थोड़े चने और मूम्फ़ली खाते  हुए घर आते ,जो बचा हुआ उनकी फतुहि की जेब से निकलता था। 

बाहर का हर व्यक्ति उनसे खुश था लेकिन घर आते ही सब लोग नाराज होते ,न टाइम से खाना खाते हो न ,आराम करते हो , घर खर्च को पैसे देते हो , न दादी के पास बैठते हो। पैदल ही सात किलोमीटर चल पड़ते हो ,रिक्शा क्यों नहीं किया ? बच्चे देखते थे रोज शाम को बाबा की क्लास लगती है लेकिन मालिश करने में कोई पीछे नहीं हटा। 

एक दिन देखा बाबा बाहर धुप में नहाये और वहीँ दीवार के सहारे बैठकर भजन करने लगे , न कोई देवता था ,न कोई तस्वीर , न मंदिर ,न तुलसी का बिरवा। बाबा , उँगलियों के पोरों पर मन्त्र जप रहे थे , आगे बढ़ने के लिए अगला पोर स्पर्श कर लेते। हल्की सी आवाज आ रही थी , समझ नहीं आ रहा था क्या जप चल रहा है। जल्दी -जल्दी वे यही दोहरा   रहे थे मैं , उनके सामने बैठकर वही , कर रही थी , बच्ची थी नहीं समझ सकी  कि ध्यान में बाधा डाल रही हूँ।  बाबा इतने तल्लीन थे कि मेरी दुष्टता का भान उन्हें नहीं था। कितना आत्म नियंत्रण था। 

दादी , पौरी से चिल्ला रही थीं , भजन ही करते रहोगे या बड़ी हो रही बेटी का विवाह  भी करोगे ? बाबा , मुकदद्मे के अतिरिक्त कुछ नहीं सोच पाते थे , बाबा की जमीन उन्हीं लोगों ने कब्जा ली ,जिन्हें बाबा ने खाने -रहने को दिया। जब , कभी मन होता झगड़ने का तो ,दादी के पास आकर कहते , तुम पलंग तोड़ती रहती हो ,क्यों नहीं करती लड़की की शादी ? अच्छा घर बार भी तो मिले। बाबा -दादी का सामंजस्य अजीब था ,रोज लड़ लेते थे लेकिन दादी दलिया दूध देने खुद जाती थीं। बाबा ,चार भाषाओँ हिंदी ,उर्दू ,संस्कृत और इंग्लिश के पक्के ज्ञाता थे। उनके सरकारी कागजों की प्रति मुझसे लिखवाते थे , बाबा अपना काम करवाते तो ५ या १० पैसे दिया करते थे , उन पैसों से ही खाने का बहुत कुछ मिल जाया करता था। माँ हमेशा जानती थीं कि बाबा की चौखट से बाहर हमारी दुनिया नहीं है। कभी ,जब माँ गुस्सा करती तब ,बाबा खुद पढ़ाते थे , बहु ! मारो मत , मेरा काम ही तो करती है , मैं पढ़ा दूंगा। 

बाबा  को  होम्योपैथी का अच्छा ज्ञान था ,जब भी कोई बीमार पढता बाबा के पास आ जाते , एक कटोरी में साफ़ पानी , दवा की कुछ बूंदें बस मरीज ठीक। एक बार मुझे बुखार हो गया बाबा ,ने दिन रात एक कर दिया मैं ठीक हो गई। बाबा , दैव पुरुष थे जो आज भी मेरी स्मृतियों में समाहित हैं। उनकी झिड़की , पैसे ,दवा , भजन ,उनके काम के प्रति समर्पण सब कुछ चित्र से छप गए हैं। बाबा , अजर हैं ,अमर हैं। 

रेनू शर्मा 




















































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