नई नौकरी
सुबह सात बजे से चंपा घर का काम सँभालने में लग जाती है , जब , चाय बन जाएगी तब मेरी आँख खुल पाती है। अभी तो ग्यारह बजा है , मैडम ! उठो सबेरा हो गया। बच्चों को टिफिन दिया ,जी साहब को नास्ता दिया ,नहीं कह रहे थे दोपहर को आएंगे। अरे ! दोपहर तो होने वाली है , चाय ख़तम कर बाथरूम की तरफ दौड़ जाती हूँ। सोचती हूँ अगर चंपा नहीं होती तो , मेरा क्या होता ? क्या करूँ , कभी कोई खाने पर आता है कभी कोई। देर रात तक घर ठीक करती रहती हूँ। राम , मेरा ख्याल रखते हैं।
छोटे कपडे धोकर बाल्टी बाहर रख दी , चंपा जासुखा दे।अभी खाना लग भी नहीं पाया कि राम आ गए ,तभी बच्चों की बस हॉर्न बजाने लगी , कभी कभी सुखी भी आ जाता है चम्पा का पति ,बहुत अच्छा खाना बनाता है। कभी जब छुट्टी होती है तब चम्पा का पूरा परिवार घर पर ही होता है दो बच्चे हैं , यहीं आकर रहते हैं ,रात को सोने भर जाते हैं अपने घर। चम्पा को कहीं काम मिल गया है , वो अब नहीं आ पाती बच्चे भी पढ़ने लगे हैं , सुखी ,सुबह दोपहर शाम को काम कर जाता है।
सुखी , मैंने कल अपनी पायल यहाँ राखी थी ,अभी नहीं मिल रही तुम्हें पता है ? हाँ ,सामने अलमारी में राखी है , मेरी लापरवाही का खामियाजा अब मुझे मिलने लगा है। घर में रखी चीजें अब गायब होने लगीं हैं। गहने भी गुम जाते हैं। कई बार राम की जेब से पैसे गायब हो जाते हैं , वो सोचते हैं मैंने लिए होंगे , मैं सोचती हूँ किसी को दिए होंगे। राम को याद नहीं है। कहीं छुपाकर रखे पैसे भी नहीं मिलते। समझ नहीं आ रहा क्या ,चल रहा है ?
कोई भी सामन तभी गायब होता है जब, कोई परिवार का सदस्य मिलने आता है। चम्पा तो बरसों से काम कर रही है , अभी तक ऐसा नहीं हुआ , अब क्या हुआ। कई दिनों बाद चम्पा घर आई है , उसे पूछ ही लिया ,क्यों री ,चम्पा ! घर का सामान कहाँ जा रहा है , उसके पैर हो गए क्या ? नहीं , आई कसम , मैं क्या करती , सब तो आप देती ,फिर क्यों लुंगी। ठीक है सुखी बता रहा था ,कहीं काम पर जाती है , अकेला साहब है , कभी उसके दोस्त लोग भी आते , हाँ , आते बराबर। पर पैसा देता साब , सुखी कई बार झगड़ा कर चुका है ,लेकिन नहीं मानती।
अब ,अपनी बेटी गुड़िया को भी साथ लेकर जाने लगी है , कह रही थी काम ज्यादा होता है ,कल को उसकी शादी करनी होगी तो , चार पैसा होना , मैं सब ध्यान रखती। चम्पा काम निबटाकर चली गई। दो दिन पहले ही अलमारी में पांच हजार रुपये रखे थे अब , गायब हैं। कहाँ गए ?सुखी से सब बताया ,देखो चम्पा ही कर रही है ,तुम पूछना उससे। सुखी घर चला गया। माँ बेटी ,रात भर घर नहीं आईं। सुखी ,साहब के घर गया तो दरवाजे पर ताला लगा था , पीछे के दरवाजे की चाबी चम्पा के पास है , वो जाती है दो सौ रुपये मिल जाते हैं और गुड़िया को जब ले जाती है तब , पांच सौ मिल जाते हैं। यही सिलसिला चल रहा है , काफी समय से।
युवा मन को भटकते कितना समय लगता है ,माँ ने बेटी को भी गर्त में दाल दिया है। बेटी , अंग्रेजी बोलकर लम्बे शिकार करने लगी है , शहर से बाहर भी जाने लगी है , माँ उसका पूरा साथ दे रही , क्या मजबूरी है ये वही जाने , लेकिन सुखी का घर अब , उजड़ने को है।
जिस्म और दौलत का बाजार साब की आड़ में बखूबी चल रहा है , न समाज का भय , न पिता का डर , न भाई बहन की चिंता। सब कुछ तो किया था इस चम्पा के लिए , घर में रखा , खाना दिया , भरोसा दिया पैसा दिया बच्चों को पढ़ाया , लेकिन क्या हुआ ? आज ,अखबार उठाया तो दिमाग सन्न रह गया , सुखी , देख तो चम्पा का नाम यहाँ क्यों है ? पुलिस की छापामारी में माँ बेटी दोनो को थाने ले जाया गया , यही नई नौकरी थी चम्पा की.. .जो जेल तक ले गई। सुखी , तो घबरा गया , अब क्या करे ? सब कुछ पहले से जनता था लेकिन किसे क्या बताये ? अंधी हो गई थी चम्पा पैसे के लिए।
दूसरे दिन राम ने थाने जाकर पैसे भरे और उन दौनों को छुड़ाया। अधिक समय तक माँ बेटी को घर में नहीं अच्छा लगा। फिर किसी नई नौकरी के लिए चलीं गई। गुड़िया ने किसी बुड्ढे से शादी रचा ली और माँ गुजर गई। सुखी , हांफते हुए जी रहा है , अपने कर्मों का हिसाब चुका रहा है। वो सुबह कब आएगी जब , बच्चियों को समझ आएगी। पढ़ लिखकर इज्जत से घर परिवार के साथ रहना क्या होता है , कब , समझ आएगा ?
रेनू
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