गुनी जा उठ बेटा , तुझे कॉलेज जाने में देर होगी , कितनी बार कहा है , घडी में अलार्म लगा लिया करो ,लेकिन सुनाई नहीं देता। अब , मेरी टाँगें जवाब देने लगी हैं , बार बार ऊपर -नीचे नहीं जाया जाता। सुनो जी गुनिया उठती नहीं जरा जाकर देख लो , रीना लगातार चिल्ला रही है ,उधर रसोई में चूला धधक रहा है शायद चाय बन रही है , लेकिन लकड़ी इतनी गीली है कि लकड़ी के छोर से पानी निकल रहा है। रीना , तुम धीरज रखा करो , आज तो चाय भी नहीं बनी , सुबह से शांति रखा करो ,बस बिटिया के पीछे पड़ जाती हो।
अरे ! पीछे क्या पड़ी हूँ , सुनते नहीं , बिहारी जी के मंदिर का घंटा बज रहा है , दीये आरती का बखत हो रहा है ,आपकी बेटी बिस्तर तोड़ रही है।
ये कोई एक घर की कहानी नहीं , बहुत सारे घरों में सुबह से यही सब चलता है। दैनिक क्रियायों के लिए लाइन लगानी पड़ती है , कहीं खाना नहीं बन पाता , कहीं पानी के लिए खींचा तान होती है। लेकिन यहाँ तो गुनी की आफत आई हुई है। बड़े शहर में जाकर पढाई करना कोई आसान बात नहीं है , रोज भाग -दौड़ करने की आदत हो गई है। अशोक भाई जबसे भोपाल गए हैं , महीनों परिवार की खबर नहीं लेते , दीदी की शादी को भी चार साल हो गए , वो भी आती नहीं। माँ बाबा के अलावा गुनी ही बची है इस घर में , रीना कई बार कह चुकी है ,गुनी , ताऊ के बेटे हर्ष से बात करले ,वहीँ रह लिया कर , रात में वापस आना ठीक नहीं है , शहर में ही रहिगी तो पढाई के लिए समय मिलेगा , कहो तो बाबा से बात करूँ , नहीं माँ , मैं देख लुंगी , क्या करना है।
देख तो , बादल घिर रहे हैं , जरा छत से दाल उठा ले और सुन कपडे भी उठा लेना।मैं पूए बना रही हूँ , अपने बाबा को भी बुला ले। लो जी , खाओ ,आज पूए बनाये हैं , गुनी , का कुछ सोचना पड़ेगा , शहर में कहाँ रहे , हर्ष क्या मना कर देगा , उसकी बहु भी तो अच्छी है , ठीक है , कल एक बोरा गेहूं भिजवा दूंगा और बोल दूंगा कि गुनी उसी के पास रहेगी। सावन शुरू हो गया है , रोज की रिम -झिम लगी रहेगी , मंदिर जाना भी मुश्किल हो जाता है ,बाबा हमेशा की तरह खेत पर चले गए।
बाबा , आगरा चले गए , अरे ! चाचा कैसी बात करते हो , गुनी कोई पराई है क्या ? जब हम गांव आते थे , तब गुनी छोटी सी फुदकती रहती थी। आगरा आये अभी सात साल ही हुए हैं। भाई के क्या हाल हैं , नेवी वाले लोगों को क्या छुट्टी नहीं मिलती ? अशोक अब गोवा चला गया है। गांव के तालाब पर मुझे तैरना सिखाने ले जाता था , कहता था भैया भैस की पूंछ पकड़ लेना डूबोगे नहीं। मैं ऊपर बैठा हूँ , दोस्तों को इशारा करता था कि भैस को बिठा दो ,मुझे तैरना नहीं आता था , सब लोग जोर से हँसते थे। मिटटी से सना हुआ घर आता था , माँ , रगड़ कर नहलाती थी। सब याद है चाचा आप चिंता न करो। गुनी को मैं देख लूंगा।सीमा बाबा के पेअर छूने के लिए झुकी ही थी कि बाबा बाहर आ गए , चलता हूँ , ये लो चाचा , रस्ते का खाना।
जब से गुनी आगरा आई है ,थोड़ी चिंता कम हुई है , सीमा कोई काम नहीं करने देती , जाओ गुनी तुम , पढ़ो ,मैं कर लुंगी। सब ठीक चल रहा है। हर्ष रोज रात को देर से घर आता है , सीमा से उसका व्यवहार कुछ ठीक नहीं लगता , शायद पार्टी से देर से लौटता है , सीमा पत्रिकाएं पलटती रहती है और सो जाती है , बात बात पर उससे झगड़ता है , जब से गुनी आई है यही क्रम जारी है। गुनी के कमरे से ही अंदर जाने का रास्ता है ,एक पर्दा ही कमरे को अलग करता है , गुनी कई बार सीमा से बात कर चुकी है भाभी , क्या बात है ? भाई ऐसा क्यों करता है ? सीमा आंसू बहाने के अलावा कुछ नहीं बोलती। गुनी एक समस्या से निकली तो दूसरी में फंस गई है। कुछ समझ नहीं आता क्या करे। अब , न पढाई हो रही है और न नींद आती है।
अचानक रात में किसी के रोने की आवाज आई , सीमा ही होगी , हर्ष सोया हुआ है , सीमा बाहर छत पर बैठी है ,गुनी भी उसके पास चली गई ,क्या हुआ भाभी ? सीमा का चेहरा लाल हो रहा था , गुनी के सामने अब चुप न रह सकी, तुम्हारे भैया , रोज शराब पीते हैं , मुझे परेशां करते हैं। पत्नी नहीं मुझसे वैश्याओं जैसा व्यव्हार करते हैं , गन्दी किताबें पढ़ते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि मेरे कारन ऐसा हो रहा हो भाभी मैं कल ही गांव चली जाउंगी , आप चिंता न करना , आप घर देखो। नहीं ऐसी बात नहीं है गुनी , ऐसा काफी समय से चल रहा है , मेरे ऊपर हाथ उठा कर मुझे जलील किया है , मैं कल ही माँ के पास जा रही हूँ , हो सके तो तुम अपने भैया को समझा देना। भाभी इतनी जल्दी कोई निर्णय मत लो , खुलकर बात करो भाई से , ताई से बात करो , लेकिन इस बार तो सीमा अधिक नाराज थी। गुनी सारा तमाशा देखती रही और सीमा अपना बैग पैक कर चली गई।
गुनी तैयार होकर कॉलेज आ गई ,हर्ष सोया पड़ा था , सीमा जा चुकी थी। डरती हुई गुनी शाम को घर वापस आई , खाना बनाया ,काम समेटती रही , हर्ष का खाना भी रख दिया। भैया भाभी के बीच कुछ ठीक नहीं है ,सोचकर ही गुनी की हालत ख़राब हो रही थी , आज तो भाई भी जल्दी आ गया है , गुनी , चाय ला तो , गुनी सोच रही थी भाभी से बात की होगी शायद दुखी होगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं था। गुनी जब चाय लेकर गई तो बोलै उसकी बात मत करना , ठीक हुआ चली गई , गुनी बाहर जाने लगी तो उसका हाथ पकड़ लिया , बैठ ,मैं बोल दूंगा सॉरी , नहीं तुम ,अभी जाओ ,उन्हें लेकर आओ , मुझे ठीक नहीं लग रहा है। ठीक है कल जाऊंगा अब ,खाना तो खिला दे ,गुनी थाली लेकर भीतर गई तो , नग्न पत्रिकाओं को देख रहा था। पर्दा खींचकर गुनी अपने कमरे में चली गई
दूसरे दिन गुनी जब कॉलेज से लौटी तो सबसे पहले हर्ष के कमरे को साफ़ किया , हर जगह गन्दी पत्रिकाएं पड़ीं थीं। शराब की बोतल रखीं थीं। सब ठीक किया और पढ़ने का प्रयास करने लगी। शाम का काम समेटकर गुनी फिर पढ़ने लगी कल टैस्ट जो होना था। देर रात हर्ष ने दरवाजे पर दस्तक दी , गिरते पड़ते अपने कमरे तक आ गए , गुनी का पारा सातवें आसमान पर था , तुम्हें शर्म नहीं आती , भाभी को दुखी करते हो , आज भी उन्हें लेने नहीं गए हो , इस हालत में आये हो , बाबा को बताना पड़ेगा। रोते हुए गुनी खाना परोसकर भाई को देने गई ,मेरी कोई गलती नहीं है गुनी , तेरी भाभी मुझे संतुष्ट नहीं कर पाती , अब देख दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गई ,वो वहीँ पड़ी है। देख तो लड़कियां क्या -क्या नहीं करतीं। भइया तुम होश में नहीं हो सुबह बात करते हैं , खाना खा लो और सो जाओ। गुनी बाहर आ गई।
अभी एक घंटा ही हुआ होगा , गुनी सोने लगी ,तभी उसे अपने वदन पर कुछ गर्माहट सी महसूस हुई , सीधा होकर बैठना चाह रही थी , तभी हर्ष ने दबोच लिया , कुछ बोल नहीं पाई ,मुंह जो दबा रखा था। भाई -बहन का पवित्र रिश्ता तार -तार हो गया। गुनी का बचपन एक बहशी भाई के हाथों बिखर गया। बिस्तर पर लाश की तरह छोड़कर भाई चला गया। गुनी बाथरूम में जाकर अपने शरीर को बार -बार धोती रही , न बाबा आये न माँ आई ,इस स्याह रात में। सोच रही थी घर के पीछे से जाती रेल के नीचे सो जाएगी ,पर बाबा और माँ की आवाजें उसका पीछा कर रहीं थीं। कांपते हुए शरीर से तैयार हुई और कॉलेज आ गई।
क्या हुआ गुनी , चेहरा इतना लटका हुआ क्यों है ? नहीं कोई बात नहीं। सुनो ! गीता ,क्या तुम एक क्लास छोड़ सकती हो , मेरे लिए ,हाँ क्यों नहीं। चलो कहाँ चलना हैं , नहीं ,कहीं जाना नहीं है , तुमसे बात करनी है। हम वहां बैठे , हाँ चलो। रोते हुए गुनी ने सारी बात गीता को बता दी। मरने से पहले मैं सब कुछ तुम्हें बताना चाहती थी जिससे कोई मुझे गलत न समझे। तुम माँ को बता देना गुनी अच्छी लड़की थी। गीता , उसी समय गुनी को अपने घर ले गई। घर जाकर कपडे उठाये , माँ को बताया हम साथ में पढ़ रहे हैं , एग्जाम होने तक गुनी गीता के घर में ही रही।
जब गुनी घर गई तो ,माँ से लिपटकर रोने लगी , माँ मुझे शहर नहीं जाना ,एक दिन सब माँ को बता दिया , तेरे बाबा तो जीते जी मर जायेंगे ,उन्हें कैसे बताऊँ ? माँ की नींद उड़ गई , हर पल गुनी के साथ साये सी रहने लगी। गीता को फोन पर धन्यवाद किया , मेरी बच्ची को सुरक्षा दी उसके लिए बेटा , शुक्रिया ईश्वर तुम्हें हमेशा खुश रखे। अरे ! आंटी आप अपना ध्यान रखो ,गुनी को मेरे पास भेज देना।
औरत अपना वजूद बिखरने के बाद भी सब कुछ ठीक ही करना चाहती है,चाहे रिश्ते हों या परिवार। अस्मिता खोने की चुभन तो मरने तक रहेगी ,लेकिन माँ पल -पल मर रही थी कैसे बेटी को भरोसा दिलाये कि रिश्ते क्या होते हैं। शहर जाकर पढाई करना , भाई के पास रहना एक कठिन परीक्षा बन गई। अब , गीता के साथ रहकर आगे पढ़ने के लिए फार्म भरकर आई है गुनी। बाबा , गीता के बाबा से मिल लिए हैं।
रेनू
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