दूर दर्शनी दुनियां
माता -पिता हमेशा यही चाहते हैं उनका बच्चा ,संस्कारवान बने। बेटियों से अपेक्षा रहती है ,ससुराल में कोई शिकायत न आने दें। पढ़ी -लिखी बच्ची है तो चार पैसे कमाए ,यही उम्मीद रहती है। अधिकांश बुजुर्ग घर में रहकर दूरदर्शन की दुनियां के सदस्य बन जाते हैं। वही घटनाक्रम उनके दिमाग में घूमते रहते हैं। किस पात्र ने क्या कहा ? क्या चालबाजी की ? क्या अपराध किया यही सब सवाल उनके जहाँ पर छाये रहते हैं। कुछ घरों की कलह का कारण यही सब कहानियां होती हैं।
जिन घरों में बच्चे बड़ों के सामने बात नहीं करते थे वे अब ,तड़ातड़ जवाब देकर निकल जाते हैं। वही पाना चाहते हैं जो देखते हैं। घरेलु हिंसा , व्यवहार ,तनाव ,झगडे का कारन यही सब होता है। टीवी पर हिंसात्मक कहानियां अधिक दिखाई जातीं हैं। भारतीय नारियों को घरों में राजनीति करनेवाली कुटिल महिला के रूप में दिखाया जाता है। विवाहेतर सम्बन्ध , अधिक बच्चे , प्रपंच लड़ाई -झगडे यही कहानी में सिमटा रहता है। भूत प्रेत की कहानियों द्वारा अंध -विश्वास फैला देते हैं। कोई शिकायत करे तो बोलै जाता है समाज में ये होता है। बाजारवाद बढ़ गया है , पंच तंत्र की कहानिया कोई नहीं दिखाना चाहता। बच्चों के मनोविज्ञान को बढ़ने वाली बात कोई नहीं करता। कार्टून दिखाकर बच्चों को सपनों की दुनियां में फंसा दिया जाता है। कोई ही मेन बनकर उड़ता है ,कोई स्पाइडरमेन बनकर खुद को छत से चिपकना चाहता है ,कोई हवा में खुद को उड़ाना चाहता है।माता -पिता अनभिज्ञ रहते हैं ,बच्चा तब तक गिर कर घायल हो चुका होता है। आने वाले समय में सब कुछ बदल जायेगा। माता -पिता के किस्से कहानी और संस्कार सब बेमानी हो जायेगा। स्वार्थ परता बढ़ रही है। सरकार को नियम बनाना चाहिए क्या दिखा सकते हैं ,क्या नहीं। दूरदर्शन को अधिक निकट न आने दें।
रेनू शर्मा
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