Saturday, January 15, 2022

 भाषा की पीड़ा 

साहित्य हमारे समाज का दर्पण होता है ,यह सत्य है। हम हिंदी ,संस्कृत भाषा का हश्र देख ही रहे हैं। भाषा चाहे संस्कृत हो या हिंदी अभिव्यक्ति का माध्यम तो मातृ भाषा ही होती है , हिंदी के ख्यात रचनाकारों मुंशी प्रेमचंद , महादेवी , मैथिलीशरणगुप्त , निराला ,कबीर ,रहीम बिहारी ,कालिदास , बाण , और न जाने कितने लोग भरे हैं। हमारा साहित्य बहुत अमीर है , हम आज तब , किताबों में इन्हीं सब को पढ़कर ,आगे बढे हैं। हिंदी भाषा की बात करें तो भारत भर में इसे बोला और समझा जाता है। 

बच्चों के बौद्धिक ज्ञान का अनुमान इन विशेष साहित्यकारों की रचनाओं को पढ़ाकर ही लगाते हैं। हम लोग अंग्रेजी के प्रति मोह को लगातार बढ़ाते जा रहे हैं। मुंशी जी तत्कालीन समाज की व्यथा को उजागर करते हैं। महादेवी जी का दर्द सभी समझते हैं। प्रसाद जी अपनी रचनाओं में प्रकृति के साथ सौम्यता भी भर देते हैं। आस -पास जैसा देखा वैसा ही अपनी रचनाओं में बुन दिया। 

कालिदास ने अभिज्ञान शाकुंतलम में एक राजा की प्रणय कथा की व्यथा के साथ ही प्रकृति के मनोरम दृश्य चित्रांकित कर दिए। शकुंतला का रूप सौंदर्य ,पशु -पक्षी प्रेम ,विरह की पीड़ा सब कुछ  शब्दों के माध्यम से अपने नाटक में उकेरा है। कालिदास का गीत काव्य मेघदूत बादलों को सन्देश वाहक बना देता है। हम बात हिंदी की भी कर रहे हैं। हजारों ऐसी संस्थाएं हैं जो हिंदी भाषा की सृजन शीलता पर काम करती हैं। मासिक पत्रिका भी निकलते हैं लेकिन एक औपचारिकता के अलावा कुछ समझ नहीं आता। साहित्य के विकास और शुद्धिकरण के लिए कुछ नहीं होता। 

हमारे बच्चे अब ,अंग्रेजी भाषा में सोचने लगे हैं तो हिंदी का विकास कैसे होगा? हिंदी भाषा को अतिरिक्त विषय के रूप में पढ़ाया जाता है , संस्कृत का वजूद अब ख़तम होता जा रहा है। सबके बच्चे या तो डॉक्टर बनेंगे या इंजिनियर ,कोई साहित्य नहीं पढ़ना चाहता , कुछ लोग अपने रिटायरमेंट के बाद कहानी ,कविता लिखकर टाइम पास करते हैं। हिंदी शब्द नहीं सूझता तब उर्दू शब्द उठा लेते हैं ,कभी अरबी शब्द तो कभी अंग्रेजी शब्द ही। भाषाओँ का मिश्रण सा हो गया है। हिंदी की शुद्धता खोती जा रही है। 

साहित्यकार आपस में ही एक दूसरे की रचनाओं पर मंथन करते हैं और किताब छाप दी जाती है। साहित्यक उत्सव का मौका देख भोजन की व्यवस्था कर लेते हैं। कटु सत्य परोसने वाले का तिरस्कार कर दिया जाता है। संपादक कहता है जब तक , अश्लील भाषा या चरित्र का समावेश नहीं होगा ,आपकी रचना कौन पढ़ेगा? उन्हें गरमागरम भाषा शैली चाहिए। पत्रिका के लिए आकर्षण होना चाहिए। विशेष रूप से हिंदी भाषा अपनी गरिमा खोती जा रही है। आनेवाली पीड़ी भाषा को भूल न जाये इसके लिए हिंदी भाषा ज्ञान आवश्यक करना चाहिए।  

रेनू शर्मा 


































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