आरक्षण की विष-बेल ---
किसका रक्षण ? कैसा आरक्षण ? शिक्षा कुलीन वर्ग के लिए आरक्षित थी। राजा -महाराजा , राजकुमार ,गुरु पुत्र ,वणिक पुत्र आदि ही शिक्षा पाने के अधिकारी थे। जाति प्रथा चरम पर थी। साधारण कुल के व्यक्ति के साथ शिक्षा पाना उच्च कुल के व्यक्ति को भाता नहीं था। अक्षर ज्ञान माँ सरस्वती की कृपा होता है ,धीरे -धीरे समाज शिक्षित होता गया। नगरों में विशाल गुरुकुल और विद्द्यालय बनवाये जाने लगे। पूरी दुनियां से लोग इधर -उधर विद्द्या प्राप्त करने जाने लगे। जाति -भेद ,रंगभेद ,स्थान भेद का कोई स्थान नहीं था।
आरक्षण की जड़ें ऐसी जमी हैं कि आज तक नहीं उखड पाई। शिक्षा से लेकर हर विभाग में आरक्षण का मुद्दा गरमाया रहता है। बीसवीं सदी में शिक्षा ,नौकरी ,भोजन ,स्वास्थ व्यापार हर जगह आरक्षण का काम चलता रहा। राजनीति में भी शुरू हुआ तो सपा ,बसपा ,पिछड़ा ,आदिवासी जाने क्या -क्या पार्टी शुरू हो गई। कॉलेज स्तर पर विद्ध्यार्थियों को बरगलाया जाता है ,उन्हें पार्टी के लोग पैसे देकर मुखिया बनाते हैं और फिर शुरू होता है ,आरोप -प्रत्यारोप का दौर।
जब ,हमारा ज्ञान स्वज्ञान है ,उसके पैमाने हैं , परीक्षा है ,शर्तें हैंतब आरक्षण का क्या काम ? निष्पक्षता है तो ,ज्ञान के क्षेत्र में आओ ,मेहनत करो और मुकाम हासिल करो , ड़ॉक्टर भी बनोगे तो आरक्षण से , इंजीनियर भी बनोगे फिर सड़कें उखड़ेंगी , वृज गिरेंगे , पुल टूटेंगे। आखिर क्या मानसिकता है इस ,नियम की। हमारा समाज स्वस्थ और ग्यानी कैसे होगा यदि यह सब चलता रहेगा। समाज में उत्तेजना ,बौखलाहट ,क्रोध , बदला ,कुंठा आदि मनोविकार पैदा हो रहे हैं। जातिभेद ,रंगभेद बढ़ ही रहा है। इतने बर्षों तक हमने क्या प्रगति की ? हमारे राजनेता भारतीय मर्यादा से ही मज़ाक करने लगे हैं। जब ,वोट डालने का समय आता है सब एक दूसरे पर ,अपशब्दों की बरसात करने लगते हैं। अब ,निजी कंपनियों पर दवाब डाला जा रहा है कि आरक्षण लागू करो। हद ,है किसी पाप की। परिश्रम का क्या हुआ ? पढ़ाई का मतलब क्या हुआ जब , सरकार को यही सब करना है तो। बड़े -बड़े एग्जाम कराने का क्या मतलब हुआ ? कुछ तो बदलाब लाओ।
सभी धर्मों के विद्वानोंने मिलकर संबिधान बना डाला , अब , स्तिथि ये हो गई ,सभी अपने को निम्न वर्ग का घोषित करना चाहते हैं। समाज को पंगु बना रहे हैं। यही कारण है आज पढ़े -लिखे युवा विदेशों का रुख कर रहे हैं , कोई भेद -भाव न हो , जो योग्य होगा ,उसे पढ़ाई भी मिले , नौकरी मिले। अआरक्षण की आग जब ,जब सुलगती है तब ,तब बच्चे , नेता ,व्यापारी ,कामगार सब उस आग में झुलसते हैं। हमारी नस्लें एक अपराध को अपने भीतर बो रहे हैं। सूत्रधार ही यदि घटनाक्रम बदल दे तो कलाकार स्वयं अपना किरदार निभा ले जायेंगे। जाने कहाँ जाकर रुकेगी ये सनक।
रेनू शर्मा
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